उस दिन आधा वाक्य बीच में ही छोडकर जो डायरी बंद की तो
आज चौथे दिन ही खुल पायी है. नन्हा पिछले दो दिनों से अपने आप उठ जाता है, इस समय
कम्प्यूटर क्लास गया है, कल घर की मासिक सफाई की, साफ-सुथरा घर सुंदर लग रहा है.
कल शाम वे एक मित्र के यहाँ गये उनका तबादला हो गया है, सारे वक्त श्रीमती कपड़ों,
गहनों, सामान की ही बातें करती रहीं, पूरी तरह से भौतिकवादी, इसके उपर वह कुछ
सोचना ही नहीं चाहतीं, पर उसे इस बात पर कोई आपत्ति क्यों होनी चाहिए भला ?
टीवी पर एक नया कार्यक्रम
देखा, अच्छा लगा, दिमाग को सोचने पर विवश करता है, उसका व्यवहार, उसका चिन्तन
कितना सही है, कितना गलत, इसे आईने की तरह दिखाता है. लेकिन इन्सान अपने-आप को जिस
ढर्रे में ढाल लेता है उससे बाहर निकलना उसे नहीं आता है. जून ने कहा फोन पर उसका
अपनी सखी से बात करने का तरीका rude था और बजाय इसके कि वह अपनी गलती स्वीकारती,
उसने सिरे से उसकी बात को ही काट दिया, क्योंकि गलत मान लेने से पीड़ा होती, शायद
उसी पीड़ा को गुस्से के रूप में निकाल रही थी, पर हुआ उसका उल्टा ही, क्रोध से और
पीड़ा उत्पन्न हुई.
कल रात पता नहीं कब वर्षा
शुरू हुई और अभी तक रुक-रुक कर हो रही है. वातावरण ठंडा और नम हो गया है, उसके सिर
में हल्का दर्द है जो कुछ तो उसकी उसी परिचित अवस्था के कारण है और कुछ आज सुबह से
शुरू हुई व्यस्तता के कारण. लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि इंतजार करने पर देर होती
है. वैसे यह बात जीवन के हर क्षेत्र के लिए किसी सीमा तक सत्य है, कोई जिस चीज के
पीछे भागता है वह उतनी ही दूर जाती है, और लोग तभी तक किसी वस्तु की चाहना भी करते
हैं जब तक वह मिल नहीं जाती. सुबह ढेर सारे कपड़े प्रेस किये, दोपहर को हिंदी कक्षा
लेने गयी, शाम की नन्हे को पढ़ाया, अगले हफ्ते से उसके यूनिट टेस्ट शुरू हो रहे
हैं, आज से उसके लिए तैयारी आरम्भ कर दी है. सो सुबह से न तो टहलने गयी न व्यायाम
किया, कमर का घेरा फिर बढ़ता जा रहा है, पैदल चलना कितना आवश्यक है. कल उसने उस सखी
से पूछा क्या उसका फोन पर बात करना उसे खटका था, तो उसने ‘न’ में उत्तर दिया, लेकिन
इससे उसे अपने फोन वार्तालाप पर गर्व नहीं होना चाहिए, क्योंकि उसे स्वयं पता है
कि फोन पर शीघ्र सामान्य नहीं हो पाती.
परसों रात को उनके बगीचे व
गैराज में भागता हुआ एक चोर घुस आया था, नैनी व उसके परिवार ने दूर से देखा बाद
में उसे पकड़ लिया गया. रात के साढ़े बारह हुए थे, उसकी नींद एक बार दूर से चोर-चोर
की आवाज सुनकर खुल तो गयी थी, शायद जून की भी, पर उठकर बाहर जाने की जरूरत महसूस
नहीं की. क्योंकि एक तो शोर स्पष्ट नहीं था, दूसरे नींद में थे, थोड़ा सा डर भी लगा
था कुछ क्षण के लिए, पर बाद में निर्भयता का पाठ स्मरण हो आया, आजकल जरूरत होने पर
उसे पढ़ी-सुनी वे बातें याद आ जाती हैं जो अँधेरी राह में जलते दीये का काम करती
हैं.
आज जून का जन्मदिन है, कल
उनके लिए कार्ड बनाया था लगभग इसी वक्त, उसमें रंग भर भर रही थी पर वह जब लंच पर
आये तो छोटी सी बात ने बड़ा रूप ले लिया जैसे कि एक चिंगारी पल भर में विशाल आग का
रूप ले लेती है और बाद में वे दोनों ही मन ही मन पछताए, शरमाये. पिछले दिनों कई
बार उसके मन में यह विचार आता रहा था कि आजकल सही अर्थों में वे साथी का जीवन बिता
रहे हैं, एक-दूसरे को समझने लगे हैं, और एक-दूसरे को उसकी सारी खामियों सहित अपना
चुके हैं, वे हर वक्त साथ थे ऐसा लग रहा था, तन से ही नहीं मन से भी, पर कल जो भी
कुछ हुआ उसने एक बड़ा झटका दिया है और एक सच को सामने लाकर खड़ा कर दिया है कि इस जग
में कुछ भी निश्चित नहीं है, कुछ भी शाश्वत नहीं है, कुछ भी ऐसा नहीं है जिस पर पूरी
तरह भरोसा कर लिया जाये. पति-पत्नी के रिश्ते में भी एक-दूसरे पर अन्धविश्वास उचित
नहीं. लेकिन शाम को और रात्रि सोने से पूर्व वे दोनों एक-दूसरे से बिना कुछ कहे
बहुत कुछ कहते जा रहे थे. वे डरे हुए थे कहीं ऐसा दोबारा न हो, कहीं उनके घर की और
मनों की शांति फिर से न उजड़ जाये, वे एक-दूसरे को खो देने के भय से भी ग्रसित थे.
पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ रहते हुए इतने जुड़ जाते हैं कि उन्हें खुद भी इसका अहसास
नहीं होता, उनकी हर बात एक-दूसरे में उलझी हुई होती है, जकड़े हुए, एक-दूसरे में
बंधे हुए कि थोड़ी सी दूरी जैसे लहुलुहान कर जाती है, छिल जाता है मन और रूह भी
काँप जाती है. जून के बिना उसका जीवन खोखला है, अधूरा, निरर्थक और नितांत अनचाहा !
उनकी सांसें आपस में घुल
गयी हैं
सिर्फ तन ही नहीं मन भी हर
क्षण जुड़ता है
और अब पकड़ इतनी मजबूत हो
गयी है कि
दुनिया की बड़ी से बड़ी
तलवार भी इसे काट नहीं सकती
कोई किसी को यूँ ही नहीं
सौप देता
अपना आप, अपनी आत्मा
प्यार के अनमोल खजाने को
पाकर ही अपना सब कुछ खाली कर दिया है
किसी के नाम लिख दिया है
मन को
फिर सपने सा क्यों लगता है
कभी–कभी संसार
शायद इसलिए कि.. यहाँ सब
कुछ बदलने वाला है...