Friday, September 27, 2013

कश्मीरी शालें


कल सुबह एक छोटा सा झूठ बेवजह ही बोल दिया, चाहे कितना ही निर्दोष क्यों न हो, झूठ तो झूठ ही है. आत्मा पर एक दाग लगा ही जाता है. जाने कितने दाग लग चुके हैं चादर पर. दास कबीरा ने जतन से ओढ़ी थी चदरिया, पर उसने तो हर दिन उसे मैला ही किया है और साफ करने की आदत भी भूलती जा रही है. कल एक पुस्तक लायी है लेकिन पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ..... मन का बैर तो ढाई आखर पढ़ने से ही मिलेगा न, और वे ढाई आखर भी कभी धुंधला जाते हैं. आज नन्हे को असेम्बली में एक कहानी पढ़नी है और उम्मीद है कि वह अपनी स्पष्ट आवाज में पढ़ पायेगा. इस समय सुबह के दस बजे हैं, काम लगभग हो गया है, पर मन है कि टिक ही नहीं रहा है, इतनी सी देर में सिन्धवा जाकर ब्रज, सुमन, शिव और रुकमणी से भी मिल आया है.

आज भूतपूर्व प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी का जन्मदिन है, सुबह के समाचारों में इसका जिक्र होना चाहिए था. नन्हे को आज फिर असेम्बली में समाचार बोलने हैं स्कूल में. कल उसकी कहानी ठीक रही. सभी ने उसकी तारीफ़ की, उसे पुरस्कार भी मिल सकता है . बच्चों के भोलेपन पर रश्क आता है, उनकी निर्दोष बातें बड़ों के दुराव-छिपाव के आगे कितनी बड़ी लगती हैं. नन्हा अपनी कई बातों से कई बार कितना कुछ सिखा जाता है. आज नूना को हिंदी कक्षा में जाना है वापसी में प्रदर्शनी देखते हुए आएगी, कश्मीरी सामानों की प्रदर्शनी आई है. आजकल फोन से सबसे बात हो जाती है, उसके पत्र लिखने कम हो गये हैं. कल वह नई परिचिता आई थी, उसकी बातों से लगा कि वह अपने पति से पूरी तरह जुड़ नहीं पा रही है. वह अपना व्यक्तित्व बनाये रखना चाहती है, एक अलग पहचान, सिर्फ किसी की पत्नी बन कर जीना उसे मंजूर नहीं. पर सही मायनों में एक होने के लिए दोनों को अपना-अपना अहम् छोडकर एक-दूसरे के सुख-दुःख को स्वयं महसूस करना होगा.

दोपहर का वक्त है, दूर से एक पक्षी की आवाज निस्तब्धता को भंग कर रही है, अभी-अभी वह पिता की फरमाइश पर शाम के नाश्ते के लिए कस्टर्ड बनाकर आई है. जून दफ्तर से आते समय लाये थे, माँ-बाप जब वृद्ध हो जाते हैं तो बच्चे उनका बच्चों की तरह ख्याल रखते हैं. सही कहा है कवि ने child is the father of man. वे दोनों(माँ-पिता) सो रहे हैं, बस तीन दिन और रह गये  हैं उनके प्रवास के. वह पिता के लिए एक टोपी बना रही है. आज माली ने डायन्थस व फ्लौक्स के पौधे लगा दिए.



हवाई जहाज की दुर्घटना


..और आखिर आज धूप निकल आई है, इतने दिनों के बाद पेड़, पौधे, घास सभी को धूप अच्छी लग रही होगी. पंछियों को भी, जैसे उन्हें इसका स्पर्श कोमल लग रहा है. यहाँ उसके कमरे में खिड़की से आती हल्की तपन भली लग रही है. कल रात आठ बजे वे तीनों आये, थके हुए थे पर स्वस्थ थे. पिता इतना सारा सामान लाये हैं, और माँ उन सबके लिए वस्त्र लायी हैं सदा की तरह, उसे अपनी ड्रेस उतनी अच्छी नहीं लगी, क्यों कि वे बहुत गहरे रंग के रेशमी वस्त्र लाती हैं. वह हल्के और सूती कपड़े पहनना पसंद करती है, पर वह उन पर यह बात जाहिर नहीं करेगी. कल शाम को इंतजार करते समय और आज सुबह भी कुछ देर आचार्य रजनीश की किताब पढ़ी, मन को बांध लेते हैं उनके शब्द, उसे उनकी कुछ बातें अच्छी लगीं कुछ नहीं भी लगीं. कुछ बातें समझ में आती हैं, कुछ बहुत मुश्किल हैं और कुछ पर विश्वास ही नहीं होता.


जून उनकी डाइनिंग टेबल लाने तिनसुकिया गये हैं और कार की बैटरी भी जो परसों गोहाटी से वापस आने पर उन्हें खराब मिली. नन्हा आज देर से आयेगा उसकी असमिया कक्षा होगी. सारी सुबह आजकल कैसे बीत जाती है पता ही नहीं चलता, इस समय पिता टीवी पर क्रिकेट मैच देख रहे और माँ ने स्वेटर बनाना शुरू किया है. घर में चुप्पी है, सिवाय टीवी की हल्की आवाज के या किचन में नैनी के बर्तनों की आवाज के. कल शाम उनके एक मित्र स्वयं ही आ गये, उसने देखा है, यदि लोगों के पीछे भागो तो दूर भागते हैं उन्हें छोड़ दो तो स्वयं ही निकट आते हैं.  और आचार्य के शब्दों में मित्रता सिर्फ प्रसन्नता का आभास मात्र देती है वह भी प्रारम्भ में, बाद में उससे उदासी ही ज्यादा मिलती है. सो जैसा मार्ग में आता जाये वैसा ही लेकर चलते रहना चाहिए. किसी से बंधने की कोशिश करना व्यर्थ है. इन्सान जब स्वयं अपने आप का मित्र नहीं रह पाता है कई अवसरों पर, तो वह दूसरों से हर वक्त ऐसी उम्मीद कैसे कर सकता है ? लेकिन पहले कई बार उसे ऐसा लगा है और आगे भी लगता रहेगा कि दोस्ती भी एक सच्चाई है और वे उससे मुंह नहीं मोड़ सकते, they need friends and they matter for them. आज भी मौसम अच्छा है, यानि बगीचे में काम किया जा सकता है. आज सभी को भाईदूज की चिट्ठियां लिख दीं.

आज बहुत दिनों के बाद लिख रही है, सुबह उसकी लापरवाही से बाएं हाथ की छोटी ऊँगली जल गयी, हल्की जलन है पर उसे सावधान रहना चाहिए था. शाम को मार्किट जाना है, दीवाली की पूजा का सामान लाना है तथा उसके अगले दिन होने वाले विशेष भोज के लिए भी. मौसम आजकल सुहाना है, न ठंड न गर्मी, दीवाली के लिए आदर्श मौसम.

दीवाली आई और चली भी गयी और उन्होंने दीवाली की ख़ुशी में पार्टी का आयोजन भी सफलता पूर्वक किया, और आज घर पहले की तरह व्यवस्थित हो चुका है. पिछले दिनों लिख नहीं सकी और इसी का परिणाम है शायद उसका विचलित मन, पता नहीं कहाँ से आते हैं, छोटे, नाटे, व्यर्थ विचार जो मन को हिला देते हैं और यकीनन चेहरे पर उनकी झलक पडती ही होगी. पर अब जैसे धुंध छंटने लगी है और सूरज निकलने लगा है.

अभी कुछ देर पूर्व पिछले साल का इसी दिन का पन्ना पढ़ा, अच्छा लगा, आज भी सब कुछ ठीक है, वे तीनो स्वस्थ हैं, कोई उलझन नहीं और न किसी प्रकार की प्रतीक्षा, किसी वस्तु, घटना या किसी प्राणी की. दोपहर का वक्त है, धूप जो सुबह बहुत तेज थी, अब गायब हो गयी है. थोड़ी देर में जून माँ को अस्पताल ले जाने के लिए आने वाले हैं, नन्हे के लिए चार्ट पेपर्स पर उसे बाउंड्री लाइन्स खीचनी हैं. आज पिछले दो दिन का अख़बार पढ़ा, दोनों पर मुख्य समाचार हवाई जहाज की दुर्घटना का है. दिल्ली हवाई अड्डे से उड़ान भरना सुरक्षित नहीं है, black listed है हमारा सबसे बड़ा हवाई अड्डा, कमी हर चीज में है फिर भी हम भारतीय सन्तोषी जीव हैं, काम चलाना जानते हैं. पर कभी-कभी ऐसी भयंकर दुर्घटनाओं का सामना करना ही पड़ता है. परसों नन्हे के लिए नानी का बनाया सुंदर सा स्वेटर मिला. कल वे पड़ोस के बच्चे के जन्मदिन की पार्टी में गये, नन्हे ने उसकी सहायता की, दोपहर को गुब्बारे लगाने में और बाद में बच्चों के लिए गेम करवाने में, और उसे इस बात पर कोई अभिमान नहीं था, he was just a helping friend. कभी-कभी बड़े बच्चों से बहुत कुछ सीख सकते हैं.


Wednesday, September 25, 2013

कबीर के दोहे


केवल चार दिन रह गये हैं, माँ-पापा को यहाँ आने में, उसे अभी सफाई का बहुत सा काम करना है. लिखना शुरू करते ही मन में आया कि यही सही होता इस वक्त वह कोई काम कर रही होती क्यों कि इन सामान्य बातों को लिखने से कोई फायदा नहीं, पर कुछ देर थककर/ थमकर आराम से बैठकर दिल को टटोलना भी तो आवश्यक है. दिल में क्या उमड़ रहा है, कहीं कोई रोष तो नहीं या शिकायत किसी के प्रति, कोई उलझन या परेशानी.. और अगर यह सब नहीं तो क्या दिल खुश है ? पर दिल की ख़ुशी को इतनी महत्ता ही क्यों दी जाये ? अपना कर्त्तव्य निभाते हुए यानि रोज के नियत काम करते हुए जो समझ आये जैसे स्थिति आये उसे वैसे ही लिया जाये. सुबह  बापू को सुना अब उनकी बातें समझ में आने लगी हैं, कहते हैं सत्संग मनुष्य को मालामाल कर देता है, पर सत्संग से हटते ही मनुष्य फिर कंगाल हो जाता है. कंगाल मनुष्य दुनिया को क्या दे सकता है, ईश्वर में विश्वास हमें अच्छाई में विश्वास सिखाता है. आध्यात्मिकता की पहली सीढ़ी नैतिकता है, सो चाहे उसे अपने मन के भावों को परखना हो और प्रतिदिन एक पन्ने को भरना हो, सच्ची निष्ठा के साथ करना है.

दस बजे हैं, उसका सिर भारी है, कल रात वर्षा हुई, आवाज से उसकी नींद खुल गयी और फिर आई भी तो एक लम्बा स्वप्न लिए, सुबह उठी तो मन ताजा नहीं लग रहा था. आज बहुत दिनों बाद नन्हे का स्कूल खुला है, कल जून गोहाटी जा रहे हैं, माँ-पापा को लाने. मन में एक के बाद विचार आ रहे हैं, पर पकड़ में नहीं आते. उसने जब से आँख के लिए होमियोपथिक दवा लेना शुरू किया है पानी आना कम हो गया है. जिन्दगी तो हर हाल में गुजर जाएगी, देखना है, खुद अपनी ही नजर में शर्मिंदा तो नहीं !

जून का फोन आखिर पौने आठ बजे आ ही गया, कल रात ग्यारह बजे उनका फोन आया था, पर दिन भर उन्हें समय नहीं मिल पाया होगा. आज उनकी पुरानी डाइनिंग टेबल चली गयी, जाते समय मन भर आया, किते वर्ष वह मेज उनके जीवन का अंग रही थी, अब किसी और परिवार की बातें सुनेगी. नन्हे के जाने के बाद उसने रजाई का कवर सिला. दोपहर को फिर ‘स्वामी रामतीर्थ’ की किताब से एक अध्याय पढ़ा, पत्रों के जवाब दिए, शाम को नन्हे को पढ़ाना और फिर टीवी...

And she has decided to write a beautiful prose piece describing a cold rainy day. It is raining continuously day and night since last three days. It stops for a while and then again starts. Nanha and herself had to wear woolen and she took out for jun, from the big trunk.

 सुबह एक बार नींद खुली, फिर सो गयी और सवा छह बजे आँख खुली, कल से सबको जल्दी उठना होगा, अगले एक महीने तक उनका घर भरा-भरा रहेगा. पिछले दिनों उसने कोई अच्छी पुस्तक नहीं पढ़ी, शायद यही कारण है कि शब्दों की कमी महसूस होती है, यूँही रोजमर्रा काम में आने वाले शब्दों से काम चलाना पड़ता है. कबीर के दोहे भी कई दिनों से नहीं दोहराए, सो मन ऐसे रहता है जैसे जल्दी में हो. नन्हे को सुबह तैयार होने में यूँही झुझलाहट का सामना करना पड़ता है और तना-तना सा मन लिए वह खुद भी अपराध भाव से ग्रसित रहती है. उसे लगता है वह समय का सही उपयोग नहीं कर पा रही है, समय के सही उपयोग की उसकी परिभाषा भी स्वयं को स्पष्ट रूप से नहीं समझा पाती. खैर आज शाम से इन सारी बातों का समाधान होने वाला है. वह व्यस्त रहेगी तो समय व्यर्थ जा रहा है यह भाव मन में आयेगा ही नहीं. लेकिन अभी मात्र साढ़े ग्यारह बजे हैं और शाम साढ़े छह बजे तक सात घंटे हैं जिन्हें उसे अच्छी तरह गुजारना है. हर पल का आनन्द उठाते हुए, क्योंकि ये साथ घंटे तो लौटकर आने वाले नहीं न !





डॉ जगदीश चन्द्र बसु - एक महान वैज्ञानिक


कल फिर नहीं लिख सकी, सुबह घर के कामों में व्यस्त थी, दोपहर को एक सखी के यहाँ गयी. आज भी सुबह के कामों में कपड़े प्रेस करने शेष हैं, यूँही रोजमर्रा के साधारण कार्यों में व्यस्त रहते हुए उसकी साधारण सी जिन्दगी गुजर जाएगी और तब मन से सवाल पूछेगा क उसने जीवन भर क्या किया ? छोटी-छोटी बातों में यूँ अपने को खपाए रहने वाला मन, और उस मन को इतना महत्व देने वाली वह, क्यों नहीं अपने समय व जीवन को सही ढंग से बिताने का प्रयत्न करती. अपना स्वाभाविक कर्म ‘कविता’ भी हफ्तों से नहीं उपजी है, मन उस उच्च भाव को प्राप्त हो ही नहीं सका जिसमें कविता का जन्म होता है. पिछले दिनों उसने अच्छी पुस्तकें भी नहीं पढ़ीं. आज यह सब सोचने की प्रेरणा भी नन्हे द्वारा पढ़े जा रहे ‘डॉ जगदीश चन्द्र बसु’ पाठ को सुनकर हुई है. जीवन में उन्होंने एक लक्ष्य बना लिया था और फिर उस लक्ष्य को पूरा करने की ठान ली. उसके जीवन का लक्ष्य है बहुत सारी कविताएँ लिखना और लिखते ही जाना... पर इसके लिए प्रयास वह बहुत कम करती है. अपने समय के एक-एक मिनट का उपयोग करना चाहिए, यह बात सुनने और पढ़ने में तो अच्छी लगती है, पर व्यवहार में लायी नहीं जाती. फिर भी कोशिश करेगी की व्यर्थ समय न बिताये. फ़िलहाल तो कपड़ों का ढेर निमन्त्रण दे रहा है और उसके बाद जून आ जायेंगे, फोन करके पूछा था आज नाश्ता कर लिया या नहीं. आज से नन्हे की पूजा की छुट्टियाँ भी शुरू हो गयी हैं और अब उसका काफी वक्त तो उसके साथ बीतेगा.

आज सुबह माली ने टमाटर, गोभी, शिमला मिर्च तथा जीनिया के बीज पौध बनाने के लिए लगा दिए. मिटटी डालने के लिए सिविल विभाग से मजदूर भी आ गये हैं. धीरे-धीरे सभी काम हो जाते हैं, व्यर्थ ही जल्दी मचाने व परेशान होने की जरूरत नहीं है. आज सुबह जागरण में मुरारी बापू को सुना, आज वह प्रसन्न मुद्रा में थे, कभी-कभी तो इतने उदास हो जाते हैं कि लोगों की आँखों में आंसू आ जाते थे, जिससे उसे अच्छा नहीं लगता था. कल गाउन की कटिंग भी कर दी, रिसीवर का कवर भी अभी थोड़ा सा बाकी है, क्रोशिये का काम उसे अच्छा लगता है, जून का वह स्वेटर भी बन गया है. लेकिन जो नहीं हो पा रहा है वह है निरंतर मन का संतुलन, थोड़ी सी बात को दिल पर लेना और उस भाव को चेहरे पर भी ले आना, यह तो कमजोर मन की निशानी है. आज सुबह एक दुखद घटना हुई, बिल्ली का वह बच्चा जो कल शाम तक बहुत चिल्ला रहा था, रात में सम्भवतः ठंड से मर गया था, या फिर जिस डब्बे में उसे रखा था, उसमें से न निकल पाने के कारण, उसकी माँ ने उसे बिलकुल ही त्याग दिया था, अनाथ का यही हश्र होना था.

परसों वे खुंसा गये थे, सुबह नौ बजे यहाँ से रवाना हुए, एक परिवार और था, उनकी मारुति वैन में यात्रा अच्छी रही, वहाँ जिस गेस्ट हाउस में ठहरे थे, सफाई नहीं थी, सिर्फ एक रात ही वे रुके. शनिवार को वह अस्पताल गयी थी, आँख में पानी आना बंद नहीं हुआ है, डॉ ने छोटे से आपरेशन के लिए कह दिया है. नैनी को दूध न रहने के कारण सुबह से चाय नहीं मिली शायद इसी कारण उसका मुख उतरा हुआ है.



Tuesday, September 24, 2013

इक़बाल की शायरी


आज मदहोश हुआ जाये रे...मेरा मन..मेरा मन...शरारत करने को ललचाये रे..मेरा मन ..और सचमुच मन बेकाबू हो गया है. इस उम्र में यूँ बहकना कोई शराफत तो नहीं, पर आँखें हैं कि उम्र का लिहाज नहीं करतीं, फिर दिल तो है दिल लेकिन वह सरसराहट जो बरसों पहले महसूस की थी, सोचती थी वह सब पीछे छूट गया पर दुनिया में इतने अफसाने यूँ ही तो नहीं लिखे गये, हर उम्र में एक बचपन छुपा होता है और उसी तरह एक यौवन भी. उसका सुबह का काम हो चुका है, आज बहुत दिनों बाद धनिये की चटनी बनाई है, यहाँ के बड़े-बड़े नीबुओं में रस बहुत होता है, उसी को डाला है खटाई के लिए, उसका अचार भी बन सकता है पर मुश्किल यह है कि खायेगा कौन ? कल दोपहर एक सखी के यहाँ गयी, उसकी छत पर पर एक अपने-आप उग आया एक जंगली बगीचा देखा, अच्छा लग रहा था. जून की गाड़ी खिड़की से दिखाई दी सो उसने लिखना बंद किया.

कल जो तामसिकता मन पर छाई थी आज उतर गयी है और एक बार फिर हे ईश्वर ! वह उसकी कृपा के घेरे में आ गयी है. रास्ता भटक गयी भेड़ फिर चरवाहे के पीछे-पीछे चलने लगी है. भटकाव में काँटों ने उसे लहुलुहान कर दिया था और आँखों में जहरीले पत्तों का रस चला गया था, वह जो कुछ देख रही थी वह भ्रामक था पर अब चरवाहे ने उसको पहले सा स्वस्थ कर दिया है. आज भी हल्की-हल्की फुहार के बीच बसंती बयार बह रही है. पीटीवी पर इक़बाल की नज्म सुनी- ‘सूरज’

चाँद तारों के ऊपर जाते-जाते सूरज
श्याम सियाह अमा को उफक से लाली के फूल दे गया...

कुछ ऐसे ही थी पहली लाइन, इक़बाल की शायरी की एक किताब उसके पास भी है, उसने सोचा आज पढ़ेगी. और better sight without glasses पढ़ने का विचार भी कई दिनों से है. स्वामी रामतीर्थ की पुस्तक भी अभी पढ़नी शेष है. पिछले दिनों उसने अख़बार और पत्रिकाओं के अलावा कुछ नहीं पढ़ा, शायद इसी का असर हो कल की अहमकाना हरकतों पर..खैर, अब आज का तस्सवुर करना चाहिए.

किन राहों पर चलना होगा कितनी दूर ठिकाना है
तेरी आवाजों के पीछे और कहाँ तक जाना है

यह शेर किसी हद तक उसके दिल की हालत बयाँ करता है. अक्टूबर का महीना शुरू हो गया है यानि हरसिंगार की भीनी-भीनी खुशबू का महीना, दीवाली की तैयारी और घर की सफाई का महीना. २९ अक्तूबर को माँ-पापा भी आ रहे हैं उनके आने से दीवाली की खुशी दुगनी हो जाएगी. नन्हा आज भी cubs की ड्रेस पहन कर गया है, उसके स्कूल में इंस्पेक्शन है. कल कह रहा था की हिंदी के टीचर कह रहे हैं, दो दिन स्कूल में ड्रामा चलेगा. हर जगह आडम्बर है, ऊपर से कुछ अंदर से कुछ, सच से लोगों को घबराहट होती है, डर भी लगता है.

आज से ठंड का अहसास बढ़ गया है, सुबह स्नान करते समय भी गर्म पानी की आवश्यकता महसूस हुई और इस समय पंखा चलाने पर ठंडक महसूस हुई. गुलाबी ठंड वाली सर्दियां उसे अच्छी लगती हैं आज एक तेलुगु सखी जा रही है, पिछले दस-बारह वर्षों का उनका परिचय था, एक बार मिलकर आने का मन है. जून को एक-दो बार कहना पड़ेगा लेकिन फिर वह मान ही जायेंगे. आज वह नन्हे के खिलौनों का शोकेस भी साफ करेगी. कल उसके हिंदी अध्यापक ने एक लेख लिखने को कहा था, स्कूल जाने तक लिख रहा था.

परसों वे तिनसुकिया गये और डाइनिंग टेबल का ऑर्डर दे ही दिया, कल यानि मंगलवार को यहाँ आ भी जाएगी, थोड़ी मंहगी है पर जून को सस्ती चीजें पसंद भी कहाँ आती हैं. उनके घर के बाहर किचन गार्डन में डालने के लिये जो मिट्टी का ढेर पड़ा है उस पर चढ़कर बच्चे खेल रहे हैं, दिल कहता है खेलने दो पर दिमाग का तकाजा है कि मिटटी बिखर जाएगी और व्यर्थ जाएगी. सो मना करन ही ठीक है. उसकी बांयी आँख से कुछ दिन से पानी आ रहा है, शायद tear duct block हो गयी है. मेडिकल गाइड में पढ़ा अपने आप भी खुल सकती है. कल छोटे भाई और दीदी के पत्र मिले, विस्तृत पत्र.. बड़े मन से लिखे गये हों जैसे. उसका मन कृतज्ञता से भर गया.





Monday, September 23, 2013

काले चने की सूखी सब्जी



थोड़ा सा वक्त था, सोचा कल दोपहर से जो बातें मन में उमड़ रही हैं उनको अपनी डायरी से साझा कर ले, “ख़ामोशी” जैसी फिल्म सदियों में एक बार बनती है, पूरी फिल्म एक कविता सी  लगती है, मन को गहरे तक छू जाने वाली कविता. नन्हा और जून दोनों मन के और करीब हो गये, मन में गहराई तक सिर्फ प्यार भर गया, सारी दुनिया के लिए, ऐसी अच्छे भाव जगाने वाली फिल्म को अच्छा न कहे तो क्या कहे. रात को मिली का कुछ भाग देखा, वह भी अच्छी फिल्म है पर इतने विज्ञापनों की वजह से वे पूरी नहीं देख पाए. आज भी नन्हे का स्कूल बंद है, कल ‘असम बंद’ के कारण जून का दफ्तर भी बंद रहा, शाम को वे एक मित्र के यहाँ गये, जहाँ उसके कम्प्यूटर शिक्षा प्राप्त करने की बात हुई, जून NIIT के बारे में विस्तार से जानकारी पता करके आएंगे.

पीटीवी पर पुराने वक्तों के फ़िल्मी गाने आ रहे हैं, शायद तब के जब दोनों मुल्कों का फिल्म  संगीत एक था, कितने अपने से जाने-पहचाने लगते हैं ये गीत. नूरजहाँ और के.एल. सहगल के जमाने के. हिंदी के कितने शब्द वहाँ भी हैं, जैसे उर्दू के यहाँ, आखिर स्रोत तो दोनों का एक ही है. पता नहीं कब उसका यह ख्वाब पूरा होगा.. या नहीं कि दोनों मुल्क दोस्ती की राह पर चलेंगे. परसों यानि सोमवार को उसने एक सखी को लंच पर बुलाया था, वह अपने पुत्र के साथ आई जो नन्हे का मित्र भी है. शाम तक वे सब साथ रहे. कुछ मन की बातें कहीं-सुनीं, उसने अपनी एक दो कविताएं भी सुनायीं. कल ‘विश्वकर्मा पूजा’ थी, जून के दफ्तर में पूजा के बाद भोजन का भी प्रबंध था. कल से उसने चश्मा लगाना शुरू किया है, जून ने कहा उसके सर दर्द का कारण चश्मा न लगाना भी हो सकता है. आश्चर्य की बात तो यह कि दर्द ठीक भी हो गया.

मौसम आज भी मेहरबान है. कल रात की वर्षा के बाद सब कुछ हरा-भरा और धुला–धुला लग रहा है. बाहर झांकने पर, कल शाम उन्होंने दूब घास की कटिंग भी की. इस वक्त मन में (जैसे कोई संकरी गली का रास्ता बंद कर दे) एक ठहराव या घुटन सी महसूस हो रही है, कारण कोई एक नहीं है. सुबह देर से उठी और रात्रि को बिना शुभरात्रि किये ही सो गयी थी., कल खतों के जवाब भी दिए पर मन खोल कर रख दें ऐसे नहीं. कुछ देर पूर्व एक ड्रामा देखा उससे पहले एक पुराना गीत EL पर देखा, ‘महलों का राजा मिला, तुम्हारी बेटी राज करेगी...’, अच्छा लगा यह गीत, जाहिरा जो इसे गा रही थी कितनी उदास थी, शायद वही उदासी मन में कहीं से घुस गयी है.. नन्हा आज रोज से जल्दी उठा और फरमाइश की, कि काले चने की सूखी सब्जी ले जायेगा टिफिन में, रात को बिना भिगोये चने आखिर उसके स्कूल जाने तक तीन बार उबालने पर तैयार हुए. आज उसका टेस्ट है, पर वह निश्चिन्त था, टेस्ट में ग्रेड मिलने वाला है मार्क्स नहीं.

सुबह से कई बार लिखने की बात सोच चुकी है वह, पर हर बार किसी न किसी काम में उलझ कर रह गयी. पर मन में हर वक्त यह विचार रहा कि कुछ लिखना है. आँखों की चुभन या कहें चुनचुनाहट अभी भी बरकरार है. ऐसा लग रहा है कि सुबह से कुछ किया ही नहीं, जून आज दिगबोई गये थे, लंच उसने अकेले ही खाया. सुबह दो सखियों से फोन पर भी बात की, पर न जाने क्यों एक अकेलेपन का अहसास( शायद आँख की तकलीफ की वजह से) है. स्वामी रामतीर्थ की पुस्तक में पढ़ा कि, काम करना, बस काम करने के लिए काम करना, सच्चे वेदांती की निशानी है. तो उसे मुक्ति काम में ही मिल सकती है आराम में नहीं, दूसरी बात थी उसमें, त्याग की और आत्म निरीक्षण की, सो त्याग करना होगा अकर्मण्यता का और निरीक्षण करना होगा अपनी कमियों का. कल शाम क्लब में टीटी खेलते वक्त कैसे सब कुछ भूलकर बस टीटी खेल रही थी, इसी तरह किसी काम में इस कदर लीन हो जाना कि स्वयं को भुला देना पड़े वेदांती का लक्षण है. भुलाना मात्र ईगो को है, कि वह यह करने वाली है, she is the doer ! सुबह से वर्षा तो नहीं हुई है पर बादल बने हुए हैं, वे भी अपने बने रहने का काम कर रहे हैं.  







Saturday, September 21, 2013

ब्रोकेन एरो


कल शाम को ‘स्वामी रामतीर्थ’ के भाषण पढ़े और अभी कुछ देर पूर्व भी वही पढ़ रही थी. उनके शब्दों में ओज है और आत्मा को जगाने की शक्ति, कल से कई बार इन्हीं शब्दों के प्रभाव के कारण मन को व्यर्थ के जोड़-तोड़ से बचा पायी है. उसे लगा, वे अपना कितना सारा वक्त यूँही व्यर्थ की बातों में बिता देते हैं और मन की ऊर्जा जिसे किसी अच्छे काम में लगाना चाहिए, इधर-उधर की बातों को सोचने में खर्च कर देते हैं.

आज उनके बगीचे में लगे झूले पर पेंट हो रहा है, हरी-हरी घास में हरा झूला बहुत भला लग रहा है, इस पर बैठ कर नन्हे ने कितनी तस्वीरें खिंचवाई हैं. अचानक उसने आँखें बंद करके भीतर देखा, मन की आवाज के पीछे बुद्धि तक ही जा सकी, यह आत्मा की आवाज कैसी होती होगी, उसे रोमांच हो आया. हरेक में ईश्वर का अंश है, यह बात तो समझ में आती है और इसका जीता-जागता उदाहरण हैं सन्त-महात्मा जो इस अंश को पाकर अपने कार्यों और विचारों से चरितार्थ कर  देते हैं, जो साधारण मानवों की श्रेणी से ऊपर उठ जाते हैं. अभी तो वह यह जान लेने मात्र से ही शांत है कि वह मात्र देह या मन नहीं है, कि वह जिन सुखों-दुखों को शरीर या मन के स्तर पर महसूस करेगी वही उसे व्यापेंगे बाकी नहीं.

ईश्वर उसके साथ है. तभी मन शांत है और इस वक्त कोई ऐसी वस्तु नहीं जिसकी उसे लालसा हो अपने लिए. देश तरक्की करे, राजनीतिज्ञों के मन पलटें, भ्रष्टाचार का राज खत्म हो, यही प्रार्थना करेगी आज से. आज नन्हे का स्कूल बंद है, सारी सुबह उसके सवालों का जवाब देते-देते गुजरी, उसके बाद से वह अपने मनपसन्द कामों में लगा है. आजादी सभी को प्रिय है, चाहे वह छोटा बच्चा हो या अस्सी वर्ष का बूढ़ा. इस समय वह  हल्की भुनी हुई मूंगफली खा रही है, मीठी-मीठी बहुत स्वादिष्ट लग रही है, यूँ उसे जून की बात भी याद आ रही है, कि भूख लगी हो तो प्याज भी मीठा लगता है. वह आज लंच पर नहीं आयेंगे, उसने भिंडी बनाई है, एक डिश तो नन्हे की फरमाइश पर बनाएगी ही बाद में. आज बहुत दिनों बाद turning point देखा, तिब्बती इलाज की पद्धति में शरीर, मन व् विचार सभी का ध्यान रखा जाता है. गेंदे के फूल का उपयोग मधुमेह के इलाज में कर सकते हैं, यह भी आज सुना.

आज सुबह स्कूल जाने से पहले नन्हा थोड़ा सुस्त लग रहा था, उसे अपना आप भी स्फूर्ति से भरा हुआ नहीं लग रहा, शायद मौसम की बेरहमी के कारण, कितनी उमस है आज, साँस लेने में भी सुकून नहीं मिल रहा है, शायद उसे भी ऐसा ही लगा होगा. यूँ अपने सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती हुई परेशानियों की सूची बनाने के लिए उसने लिखना शुरू नहीं किया था बल्कि अपने करीब आने की परसों से मन में पनप रही ख्वाहिश के लिए. कल शाम और कल सुबह भी वह अपने कार्य-कलापों पर नियन्त्रण नहीं कर पा रही थी, धारा के वेग में बिना पतवार की नाव सी बहती जा रही थी. कभी इसी में अच्छा लगता था पर अब नहीं लगता और तब आवश्यकता होती है आत्म निरीक्षण की. आज सुबह-सुबह एक परिचिता का फोन आया, वह एक दिन, दिन में आएगी और लाटरी के बारे में कुछ बात करना चाहती है ऐसा उसने कहा. पता नहीं कौन सी लाटरी के बारे में, अजीब लडकी है, ख्वाहमखाहमन suspense में डाल दिया है, खैर जो भी. कल माँ-पिता का पत्र आया, दीदी के घर के बारे में बहुत सी बाते लिखी हैं, वे यहाँ नहीं आ रहे हैं, उनकी तरह वे भी सफर से घबरा गये हैं, खास तौर पर बस के सफर से. कल फेमिना में पढ़े एक लेख का असर था कि रात को सपने में एक कमजोर व मासूम सी दिखने वाली लड़की उसे एक गिरोह में फंसा देती है, वह पुलिस-पुलिस पुकारती है और तब नींद खुल जाती है. सपने मन का आईना होते हैं. लिखना शुरू करने से पूर्व जो सुस्ती थी थोड़ी और बढ़ गयी है, चुपचाप सो जाने का मन होता है.

कल शाम वे क्लब गये Broken Arrow देखी, उसे बहुत अच्छी लगी. इस समय पीटीवी पर नुसरत अली शाह का एक गीत बज रहा है. सुगम संगीत के कई कार्यक्रम टीवी पर आते हैं, जिनका उन्हें नाम भी पता नहीं है, ‘सानीधापा’ नाम का एक प्रग्राम देखा. आज उसने त्रिदाली बनाई है, जून को बहुत पसंद है.





Thursday, September 19, 2013

जलेबी का प्रसाद


नन्हे को सर्दी लग गयी है, वह स्कूल नहीं जा रहा है, पर शाम को कम्प्यूटर क्लास अवश्य जाता है, दिन भर उसको व्यस्त रखना होता है, नूना के गले में भी हल्की खराश महसूस हो रही है. उसने देखा है कि नन्हे को कुछ होने पर उसके खुद के भीतर भी वही लक्षण दिखने लगते हैं, पर इतनी कमजोर नहीं होना है उसे, छोटी बहन को बहादुर बनने की शिक्षा देते हुए एक पत्र लिखा था परसों. नन्हा इस समय ब्लॉक्स से घर बना रहा है, कभी-कभी पूरा एक घंटा उसे लग जाता है, छोटे छोटे प्लास्टिक के ब्लॉक्स से इमारत बनाने में. वह उसकी एक किताब ‘हमारी पुस्तकें’ पढ़ रही थी, उसमें वेद, पुराण, उपनिषद, कथा सरित सागर, जातक कथाएं आदि के बारे में पढ़ा. कुल उपनिषद १०८ हैं, जिनमें से दस प्रमुख हैं, ईश, केन, मुण्डक, माण्डुक्य, तैतरीय, छान्दोग्य, कथा, प्रश्न, कैवल्य, एतरिय आदि.

नन्हे को जून अस्पताल ले गये थे, पर डॉक्टर से मिल नहीं पाए, रात भर की वर्षा के बाद हॉस्पिटल में पानी भर गया है, जिससे वे लोग कार से उतर ही नहीं सके, उसका स्कूल भी वर्षा के कारण बंद है. उसने महसूस किया नन्हे की अस्वस्थता के कारण वह कुछ परेशान हो गयी है. जो उसके चेहरे पर भी झलक रही है. दोपहर को जब वह सो गया, वह उपनिषद पढ़ती रही कुछ समझ में आया, कुछ नहीं, कल शाम को जितने अध्याय पढ़े, ज्यादा समझ पायी थी. सारी पुस्तक का सार निकाला जाये तो यह होगा कि- ‘आत्मा मानव के हृदय में विराजमान है, आत्मा ही ब्रह्म है, जिसका दर्शन मानव ध्यान द्वारा कर सकता है. इन्द्रियों को वश में करके, मन का निग्रह करके, सदाचरण करके, ॐ का उच्चारण करके, जप द्वारा ध्यान करके आत्मा को जाना सकता है. सारे उपनिषदों में भिन्न-भिन्न प्रकार से ब्रह्म की अखंड सत्ता का, एकमात्र शाश्वत ब्रह्म का वर्णन किया है’.
कुछ देर पहले वह छाता लेकर बाहर टहलने गयी क्रिसेंथमम के पौधे कुम्हला से गये हैं, उनमें खुरपी लगाई, मन थोड़ा शांत हुआ, वैसे अशांत कब और कैसे हुआ उसे पता ही नहीं चला, फिर कैसेट लगाकर व्यायाम किया, वर्षा के कारण टहलना बंद है. अज शाम उन्हें क्लब भी जाना है, नन्हे को क्विज़ में भाग लेना है. आज सुबह जब नींद खुली थी तो दूर से आती मद्धिम सी आवाज थी, नींद में कभी लग रहा था फोन बज रहा है कभी अलार्म. कल जन्माष्टमी की छुट्टी है,  शाम को वे राधा-कृष्ण मन्दिर की सजावट देखने जायेंगे.

कल वे कृष्ण मन्दिर देखने के बाद कालीबाड़ी भी गये, पता नहीं क्यों पर ईश्वर का निराकार रूप ही उसे वास्तविक लगता है, मूर्ति या फोटो देखकर मन में श्रद्धा नहीं होती. वहीं से वे उस सखी के यहाँ गये जो वस्त्रों पर पेंटिग सीख रही है, आजकल दीवान का कवर पेंट कर रही है, रंगशोख और चटख हैं. कल दोपहर बैकडोर पड़ोसी के यहाँ सिंथेसाइजर बजाया, उसने एक गाने की स्वरलिपि भी बताई. उसकी आवाज काफी तेज थी, काफी बड़ा भी था. नन्हे ने मन्दिर सजाया है और शाम को वह जलेबी का प्रसाद भी बनाने वाली है. आज शिक्षक दिवस भी है. संयोग ही है की उसके पास डॉ राधा कृष्णन की एक पुस्तक है, जो लाइब्रेरी से लायी थी.


कल शाम को ‘स्वामी रामतीर्थ’ के भाषण पढ़े और अभी कुछ देर पूर्व भी वही पढ़ रही थी. उनके शब्दों में ओज है और आत्मा को जगाने की शक्ति, कल से कई बार इन्ही शब्दों के प्रभाव के कारण मन को व्यर्थ के जोड़-तोड़ से बचा पायी है. उसे लगा, वे अपना कितना सारा वक्त यूँही व्यर्थ की बातों में बिता देते हैं और मन की ऊर्जा जिसे किसी अच्छे काम में लगाना चाहिए, इधर-उधर की बातों को सोचने में खर्च कर देते हैं. 

Tuesday, September 17, 2013

धर्मयुग - एक सम्पूर्ण पत्रिका


आज सुबह जब पांच बजे वे उठे तो अजीब ही नजारा था, धूप के कारण रौशनी तेज थी पर जोरदार बारिश हो रही थी. इस वक्त मौसम ठीक है. अभी टीवी पर स्वतन्त्रता सेनानियों पर एक कार्यक्रम देखा, देश की आजादी के लिए हजारों शहीद हुए, उनके जज्बे पर, उनकी देशभक्ति की भावना पर गर्व होता है, और यह भी लगता है कि वह देश के लिए क्या कर रही है. सुबह उसने छोटे भाई-बहन को फोन मिलाया दोनों अपने-अपने घरों में सो रहे थे, पर उठ गये. दीदी का पत्र बहुत दिनों से नहीं आया है, उन्हें घर-बाहर सारा काम खुद ही देखना होता होगा. आज सुबह जागरण में बापू का प्रवचन सुना, बातों बातों में वह इतनी गहरी, गूढ़ बातें समझा जाते हैं. राग-द्वेष से मुक्त रहकर ही मन में प्रसन्नता रह सकती है, इसे कितने आसान शब्दों में सिखाया. मानव किस प्रकार योगी बन सकता है, मात्र तपस्वी, कर्मी या ज्ञानी बनकर योग नहीं आ सकता, वरन् योगी, ये तीनों भी बन सकता है. उसे आजकल गूढ़ बातें जल्दी समझ में नहीं आती, सात्विक प्रवृत्ति पर राजसिक व तामसिक का प्रभाव ज्यादा है. माली ने आज दो पेड़ों की कटिंग की, कमला (संतरे) के पेड़ के लिए नमक लाने को कहा है.

कल शाम को वह अचानक आ गयी, वही खूब बोलने वाली उसकी नई परिचिता, जिसे कई बार फोन पर बात करने का उसका मन हुआ, पर उसके ‘हेलो’ कहने के लहजे के कारण या किसी झिझक के कारण बात नहीं की. ऊर्जा से भरी हुई, गुलाबी सिल्क की साड़ी, खुले हुए लम्बे बाल, लम्बी तो वह है ही, सुंदर लग रही थी, कुछ करने का उत्साह है मन में. और वह करने के योग्य भी है, लोगों से जान-पहचान बढ़ाना चाहती है. उसने सोचा इतनी जल्दी किसी से प्रभावित होना मात्र दो दिन की पहचान में राय बना लेना क्या जल्दबाजी नहीं होगी, उम्र में वह उससे छोटी है, दोनों के सोचने के ढंग में अंतर स्वाभाविक है. आज सुबह हरी घास के नर्म व ठंडे गलीचे पर घूमना तन-मन तथा आत्मा यानि अंतर्मन को छू गया, आत्मा कहाँ है, उसके दर्शन कैसे होंगे इतना तो जान लिया है पर आत्म दर्शन के लिए जिस अभ्यास की आवश्यकता है वह सधता नहीं है. नन्हे के इम्तहान अच्छे हो रहे हैं, सारी शाम वह पढ़ता है, आजकल खेलने नहीं जाता, पर बात-बात में गुस्सा दिखाता है और उसका गुस्सा मात्र एक पल का होता है, अगर वह उसकी कोई मनपसन्द बात कह दे तो सब भूल जाएगा और उस बात को सुनने लगता है. आज बहुत दिनों बाद Kashmir dairy कार्यक्रम देखा, इसके अनुसार हालात सुधर रहे हैं वादी में, कई साल पहले जब वहाँ शांति थी एक नाटक रेडियो पर सुना था, जिसमें एक कश्मीरी युवक सन्तूर बजाता है और एक टूरिस्ट लडकी से उसको लगाव हो जाता है. उसके सन्तूर की आवाज अब भी उसे याद है. उसने सोचा जून के आने से पहले पडोस में ही रहने वाली लेडीज क्लब की एक मेम्बर से मीटिंग में हुए कार्यक्रम के फोटो ले आयेगी.  
“The whole secret is a hearty love of  God, and the only way to attaining that love is by loving ! You learn to speak by speaking, work by working and just so you learn to love God and man by loving. !”
 Ah ! what a wonderful secret. And who loves does not see fault but only goodness.she wishes her heart to be filled with love for all, for each and every thing on this earth, this universe, creation of God.  This book “The Perennial Philosophy” is full of such noble ideas. She intends to write some more quotations from this book, some day she has to return this book to library. Yesterday she read Dharmyug,  धर्मयुग से बचपन की कई यादें जुडी हैं, अपनी सी बेहद अपनी सी लगती है यह पत्रिका.

जून अभी तक नहीं आये हैं, उस दिन उसने उन्हें वक्त की पाबंदी पर जो भाषण पिलाया था (जिसके कारण वह थोड़े उदास भी थे.) शायद उसी का असर है, उनका फलसफा है कि हरेक को काम पर जाने व आने की आजादी होनी चाहिए, उसे नहीं पता क्या सही है, पर इतना तो पता है कि हरेक को अपना रास्ता खुद चुनना होता है तो उन्हें भी अपने विचार के अनुसार ही चलना चाहिए, सुबह उसकी नैनी के पति के देहांत की खबर मिली, तीन दिन के लिए घर गयी है, मरने के बाद सब अपराध भुला दिए जाते हैं.


Saturday, September 14, 2013

मेले में झूला


अभी कुछ देर पहले वे टहलने के लिए निकले ही थे कि गले में कुछ चुभता सा महसूस हुआ, कुछ अजीब सा जैसे कोई लम्प हो और अभी-अभी मेडिकल गाइड में lump in throat पर पढ़ा, लिखा है, कभी-कभी यह सिर्फ तनाव की वजह से भी होता है. पर उसे लगता है यह केवल फिजिकल कारण से है, कल सलाइवा ग्लैंड में pain था उसी से जुड़ा कोई मर्ज है. आज १५ अगस्त है, आजादी के ढेर सारे तराने सुने, देवेगौड़ा जी का भाषण भी सुना. दोपहर को मित्रों के साथ सहभोज भी अच्छा रहा. इस समय टीवी पर ‘फौजी’ आया रहा है, जिससे थोड़ी देर के लिए वह lump के बारे में सोचना भी भूल गयी थी, पर अब सीरियल खत्म हो गया है और लम्प फिर याद आ गया है.

जून क्लब गये हैं, Treasure Hunt में भाग लेने, अभी दो भी नहीं बजे हैं और उसे अकेलापन (शनिवार के दिन) खटक रहा है. नन्हे के आने में अभी पूरा एक घंटा है. कुछ देर एक पत्रिका से कटिंग्स करती रही, कुछ देर पढ़ी भी और अब टीवी, पर मन कहीं  स्थिर नहीं हो रहा है. उस दिन गीता में पढ़ा ही था, राजसिक वृत्ति वाले थोड़ी देर स्थिर नहीं बैठ सकते. उनका चित्त इधर-उधर दौड़ता रहता है. सात्विक गुणों से वह दूर है और तामसिक भी ज्यादातर समय तो नहीं है फिर राजसिक प्रवृत्ति ही है जो एक कार्य में मन लगाने नहीं देती. मन को शांत, स्थिर करना ही तो अध्यात्मिक, धार्मिक व नैतिक कर्त्तव्य है. मन को साधै सब सधे.. ठीक ही कहा है किसी कवि ने. इस हफ्ते छोटे व मंझले भाई के पत्र आए हैं, सोमवार को जवाब लिखेगी जो उसका खतों के उत्तर लिखने का दिन है.

आज मौसम सुहाना है, न सर्दी न गर्मी..और वह भी ऐसी ही होना चाहती है. सुबह नन्हे को डांट कर उठाया तो, पर बाद में सुना, खुश रहने का उपाय है दूसरों को ख़ुशी देना. कल वे मेला देखने गये, ऊँचे झूले पर बैठे वह आँखें नहीं खोल पायी डर से कुछ पल के लिए, जबकि नन्हा आराम से मजे ले रहा था. उसे देखकर वह भी सामान्य हो गयी. उस दिन किसी भी टीम को खजाना नहीं मिला, इतने कठिन क्लू थे कि समय सीमा समाप्त हो गयी थी. उनके आने में अभी एक घंटा है, वह आज पहली बार coconut rice बना रही है, इस उम्मीद पर की उन्हें पसंद आयेगा.


अभी-अभी एक सखी से फोन पर बात की और दिल जैसे सुकून से भर गया. बंगाली सखी ने खत में लिखा है, मैत्री बहुमूल्य है उसे वह खोना नहीं चाहती, वह भी मित्रता खोना नहीं चाहती, किसी हद तक यह नितांत आवश्यक है. आज टीवी पर खाना खजाना में मसाला दोसा व साम्भर बनाने की विधि सीखी और उस सीखे हुए का उपयोग कर  साम्भर बना रही है. जून और नन्हे दोनों को ही पसंद है. अभी-अभी एक सखी से बात की वह मेंहदी लगाना सीखने के बाद अब पेंटिंग सीख रही है. और इसके बाद सिलाई सीखेगी. उसे भी कुछ सीखना चाहिए जैसे कि मीठा बोलना, अच्छी सी कविता लिखना, ऐसी जो उत्साह से भर दे या फिर मित्रता निभाना और पत्र लिखना. खुद को व जून और नन्हे को स्वस्थ रखना, घर का माहौल शांत व साफ-सुथरा बनाना और सुबह सवेरे जल्दी उठना. जून ने भी कहा आज, वह उठ जल्दी उठेगी तो सारा घर उठ जायेगा. और भी कुछ सीखना है पर पहले घड़ी की तरफ नजर डाल ली जाये उसने सोचा, ग्यारह बजे से पहले-पहले ही खाना तैयार हो जाना चाहिए.



  

Friday, September 13, 2013

फोन की घंटी


उस दिन आधा वाक्य बीच में ही छोडकर जो डायरी बंद की तो आज चौथे दिन ही खुल पायी है. नन्हा पिछले दो दिनों से अपने आप उठ जाता है, इस समय कम्प्यूटर क्लास गया है, कल घर की मासिक सफाई की, साफ-सुथरा घर सुंदर लग रहा है. कल शाम वे एक मित्र के यहाँ गये उनका तबादला हो गया है, सारे वक्त श्रीमती कपड़ों, गहनों, सामान की ही बातें करती रहीं, पूरी तरह से भौतिकवादी, इसके उपर वह कुछ सोचना ही नहीं चाहतीं, पर उसे इस बात पर कोई आपत्ति क्यों होनी चाहिए भला ?

टीवी पर एक नया कार्यक्रम देखा, अच्छा लगा, दिमाग को सोचने पर विवश करता है, उसका व्यवहार, उसका चिन्तन कितना सही है, कितना गलत, इसे आईने की तरह दिखाता है. लेकिन इन्सान अपने-आप को जिस ढर्रे में ढाल लेता है उससे बाहर निकलना उसे नहीं आता है. जून ने कहा फोन पर उसका अपनी सखी से बात करने का तरीका rude था और बजाय इसके कि वह अपनी गलती स्वीकारती, उसने सिरे से उसकी बात को ही काट दिया, क्योंकि गलत मान लेने से पीड़ा होती, शायद उसी पीड़ा को गुस्से के रूप में निकाल रही थी, पर हुआ उसका उल्टा ही, क्रोध से और पीड़ा उत्पन्न हुई.

कल रात पता नहीं कब वर्षा शुरू हुई और अभी तक रुक-रुक कर हो रही है. वातावरण ठंडा और नम हो गया है, उसके सिर में हल्का दर्द है जो कुछ तो उसकी उसी परिचित अवस्था के कारण है और कुछ आज सुबह से शुरू हुई व्यस्तता के कारण. लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि इंतजार करने पर देर होती है. वैसे यह बात जीवन के हर क्षेत्र के लिए किसी सीमा तक सत्य है, कोई जिस चीज के पीछे भागता है वह उतनी ही दूर जाती है, और लोग तभी तक किसी वस्तु की चाहना भी करते हैं जब तक वह मिल नहीं जाती. सुबह ढेर सारे कपड़े प्रेस किये, दोपहर को हिंदी कक्षा लेने गयी, शाम की नन्हे को पढ़ाया, अगले हफ्ते से उसके यूनिट टेस्ट शुरू हो रहे हैं, आज से उसके लिए तैयारी आरम्भ कर दी है. सो सुबह से न तो टहलने गयी न व्यायाम किया, कमर का घेरा फिर बढ़ता जा रहा है, पैदल चलना कितना आवश्यक है. कल उसने उस सखी से पूछा क्या उसका फोन पर बात करना उसे खटका था, तो उसने ‘न’ में उत्तर दिया, लेकिन इससे उसे अपने फोन वार्तालाप पर गर्व नहीं होना चाहिए, क्योंकि उसे स्वयं पता है कि फोन पर शीघ्र सामान्य नहीं हो पाती.

परसों रात को उनके बगीचे व गैराज में भागता हुआ एक चोर घुस आया था, नैनी व उसके परिवार ने दूर से देखा बाद में उसे पकड़ लिया गया. रात के साढ़े बारह हुए थे, उसकी नींद एक बार दूर से चोर-चोर की आवाज सुनकर खुल तो गयी थी, शायद जून की भी, पर उठकर बाहर जाने की जरूरत महसूस नहीं की. क्योंकि एक तो शोर स्पष्ट नहीं था, दूसरे नींद में थे, थोड़ा सा डर भी लगा था कुछ क्षण के लिए, पर बाद में निर्भयता का पाठ स्मरण हो आया, आजकल जरूरत होने पर उसे पढ़ी-सुनी वे बातें याद आ जाती हैं जो अँधेरी राह में जलते दीये का काम करती हैं.

आज जून का जन्मदिन है, कल उनके लिए कार्ड बनाया था लगभग इसी वक्त, उसमें रंग भर भर रही थी पर वह जब लंच पर आये तो छोटी सी बात ने बड़ा रूप ले लिया जैसे कि एक चिंगारी पल भर में विशाल आग का रूप ले लेती है और बाद में वे दोनों ही मन ही मन पछताए, शरमाये. पिछले दिनों कई बार उसके मन में यह विचार आता रहा था कि आजकल सही अर्थों में वे साथी का जीवन बिता रहे हैं, एक-दूसरे को समझने लगे हैं, और एक-दूसरे को उसकी सारी खामियों सहित अपना चुके हैं, वे हर वक्त साथ थे ऐसा लग रहा था, तन से ही नहीं मन से भी, पर कल जो भी कुछ हुआ उसने एक बड़ा झटका दिया है और एक सच को सामने लाकर खड़ा कर दिया है कि इस जग में कुछ भी निश्चित नहीं है, कुछ भी शाश्वत नहीं है, कुछ भी ऐसा नहीं है जिस पर पूरी तरह भरोसा कर लिया जाये. पति-पत्नी के रिश्ते में भी एक-दूसरे पर अन्धविश्वास उचित नहीं. लेकिन शाम को और रात्रि सोने से पूर्व वे दोनों एक-दूसरे से बिना कुछ कहे बहुत कुछ कहते जा रहे थे. वे डरे हुए थे कहीं ऐसा दोबारा न हो, कहीं उनके घर की और मनों की शांति फिर से न उजड़ जाये, वे एक-दूसरे को खो देने के भय से भी ग्रसित थे. पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ रहते हुए इतने जुड़ जाते हैं कि उन्हें खुद भी इसका अहसास नहीं होता, उनकी हर बात एक-दूसरे में उलझी हुई होती है, जकड़े हुए, एक-दूसरे में बंधे हुए कि थोड़ी सी दूरी जैसे लहुलुहान कर जाती है, छिल जाता है मन और रूह भी काँप जाती है. जून के बिना उसका जीवन खोखला है, अधूरा, निरर्थक और नितांत अनचाहा !

उनकी सांसें आपस में घुल गयी हैं
सिर्फ तन ही नहीं मन भी हर क्षण जुड़ता है
और अब पकड़ इतनी मजबूत हो गयी है कि
दुनिया की बड़ी से बड़ी तलवार भी इसे काट नहीं सकती
कोई किसी को यूँ ही नहीं सौप देता
अपना आप, अपनी आत्मा
प्यार के अनमोल खजाने को पाकर ही अपना सब कुछ खाली कर दिया है
किसी के नाम लिख दिया है मन को
फिर सपने सा क्यों लगता है कभी–कभी संसार
शायद इसलिए कि.. यहाँ सब कुछ बदलने वाला है...




Wednesday, September 11, 2013

अमरूद का पेड़


आज सुबह वह एक नई परिचिता से मिलने गयी, अच्छा लगा उसका घर, बातें कुछ ज्यादा ही करती है, इतनी सी देर में अपने घर-परिवार के बारे में कई बातें बता गयी. वाणी पर संयम तो वह खुद भी नहीं रख पाती है, जून को कितनी बातें कह दीं, आत्मसंतोष में डूबा हुआ मन हवा के एक झोंके से बिखर गया, शायद यह उसका संस्कार है, innate quality, जून के शब्दों में. पिता का पत्र आया है, उन्होंने उन प्रश्नों एक उत्तर या कहें उन शब्दों के अर्थ लिख भेजे हैं जो उसने पूछे थे. कल से हक्सले की किताब भी पढ़ेगी, संसार में इतना ज्ञान है कि सौ जन्म भी लेने पड़ें तो पूरा ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता, किन्तु आत्मज्ञान से बढकर कोई ज्ञान नहीं, उसकी जैसे स्थिति है उसमें तो यह बहुत आवश्यक है कि मन को सदा सजग रख पाए, विकारों से दूर, शांत और पवित्र, कहीं कोई उहापोह नहीं, कोई विक्षोभ नहीं, हर स्थिति में गम्भीर, एकाग्र, उस एक में जो अनेक रूपों में दिखाई देता है. वह जो अंदर कहीं सोया हुआ है.

आँखें नींद से बोझिल थीं और मन जैसे पूरी तरह सजग नहीं था, प्रमादवश सुस्ता रहा था और उसके हाथों की किताब The perennial philosophy by Aldous Huxley कब गिर गयी पता ही नहीं चला. दोपहर से जून के जाने के बाद से यह पुस्तक पढ़ने का प्रयत्न कर रही थी पर विषय इतना गम्भीर है और वैसे भी लंच में दही-चावल खाया था, शायद इसी कारण नींद ने धर दबोचा. कई दिनों से अलमारियां ठीक करने की सोच रही थी पर लगता है आज नहीं होंगी. नन्हे के आने का वक्त हो चला है. बहुत दिनों के बाद टीवी खोला है, ‘शांति’ इतना आगे बढ़ गया है की कुछ समझ में नहीं आ रहा, वैसे भी अब इसमें मन नहीं लगता.

शाम के पांच बजने को हैं, जून दफ्तर से आकर आराम कर रहे हैं, नन्हा टीवी देखते हुए ड्राइंग बना रहा है, उसे बगीचे में गुलाब के पौधों की देख रेख के लिए जाना है, पर धूप अभी भी तेज है. सुबह दादा की बातें सुनीं, उनसे प्रेरित होकर उसने मृत्यु पर एक कविता लिखी, आज एक सुंदर वाक्य उन्होंने कहा-
In other living creatures ignorance of self is nature; in man it is vice.

आज शाम वे एक मित्र के यहाँ गये और अपने पेड़ के अमरूद भी दिए, यानि उस पेड़ के जो खुशकिस्मती से उनके बगीचे में लगा है लेकिन न ही उन्होंने इसे लगाया है और न ही जब वे यह घर छोडकर जायेंगे तो उनके साथ जायेगा यानि अपना तो नहीं हुआ न, पर लोकाचार की भाषा में ऐसा ही कहते हैं, पर जब मन सजग रहे और भाषा व वाणी पर नजर रखे तो अपना पेड़ कहना खटकता जरुर है.

कल इतवार था, बहुत दिनों के बाद जून ने सिन्धी कढ़ी बनाई, उसने सारे खतों के जवाब दिए, मंझले भाई को भी राखी भेज दी, आजकल वह नियमित और अच्छे खत लिखता है. आजकल सुबह नन्हे को जबरदस्ती उठाने में फिर मेहनत करनी पडती है, पर जब क्लब से टाईकांडू सीखकर आता है तो बहुत खुश होता है. सुबह-सुबह डांटना उसे अच्छा तो नहीं लगता पर सोचती है सीखने का उसे शौक है तो कुछ तो त्याग करना ही पड़ेगा. उसे लगा घंटी बजी, पर बाहर जाकर देखा तो कोई नहीं था, लगा, कहानियाँ सोचती है तो कहानियाँ गढती भी है.

शाम के सवा छह बजे हैं, जून अभी तक दफ्तर से नहीं आए हैं, ईश्वर से प्रार्थना है उनका वह उपकरण ठीक हो जाये जिस ठीक करने कोई इंजीनियर आए हैं, और जिसकी वजह से कल भी वह सात बजे आए. नन्हा आज सुबह क्लब गया तो नौ बजे वापस आया जबकि रोज साढ़े छह बजे आ जाता है, पर वह परेशान नहीं हुई, जून की कही बात याद थी, कभी भी नकारात्मक नहीं सोचना चाहिए. आज कई दिनों से चल रही स्वीपर्स की हड़ताल भी खत्म हो गयी.

होठों पे हँसी आँखों में ख़ुशी सी क्यों है
महकी-महकी सी हवा धूप गुनगुनी क्यों है

पा चुके क्या उसका पता ओ मुसाफिर
जमीं थी कदमों तले आसमा क्यों है

दिल ही दिल में बुने ख्वाब उल्फत के
मौसमों को फिर इनकी खबर क्यों है




Tuesday, September 10, 2013

अनाम दास का पोथा


टीवी पर भारत और अर्जेंटीना के बीच हॉकी मैच चल रहा है और लगता है भारत यह मैच हार जायेगा, फाइनल में पहुंचने का उसका स्वप्न अधूरा ही रह जायेगा. जैसे कि किसी व्यक्ति का स्वप्न एक निस्वार्थ औए सच्चा मित्र पाने का होता है, जो उसे, वह जैसा है, स्वीकार कर सके, इसी तरह वह खुद भी उसे जैसा वह है स्वीकारे, क्योंकि उनके मध्य केवल प्रेम हो. इस समय भारतीय खिलाडियों की जो हालत हो रही है वह  उसे अच्छी तरह महसूस कर सकती है, पूरे देश में लाखों लोगों के दिल इसी तरह धडक रहे होंगे, लेकिन अगर भारत हार जाता है तो भी उन्हें उदास नहीं होना चाहिए, क्योंकि इन्सान का बस कभी-कभी नहीं भी चलता है.

आज सोमवार है, अभी-अभी उसकी एक सखी का फोन आया और पीड़ा जो परसों शाम  महसूस की थी, कल दोपहर से लग रहा था खत्म हो गयी थी, फिर उभर आई है. उस दिन की सारी घटनाएँ एक-एक कर सम्मुख आ रही हैं, एक बार फिर उसकी मित्रता का अपमान हुआ, फिर भी जाने क्यों उसके भीतर का स्नेह कभी खत्म नहीं होता. कल वे तिनसुकिया गये थे, उसका नया चश्मा बन कर आया, नन्हे के लिए स्केट्स और जून की नई हवाई चप्पल.

आज उसका मस्तिष्क बहुत उर्वर हो गया है, भावों के बीज हैं कि फूटते जा रहे हैं और विचारों की नई-नई कोंपलें स्वतः ही उग रही हैं. सब कुछ जैसे व्यवस्थित हो गया है, संसार कोई अजनबी स्थान नहीं रह गया बल्कि एक सुंदर मैत्री पूर्ण स्थल बन गया है जहाँ लोग एकदूसरे की कद्र करते हैं, हृदय कृतज्ञता से भरे होते हैं. आज एक अजनबी ने कहा, आपका बगीचा बहुत सुंदर है, और लो, उसका बगीचा इतना सुंदर हो गया है कि वह उसके बारे में एक कविता लिखने की सोच रही है. जून अभी तक नहीं आए हैं, आजकल वह ‘स्ट्रेस मैनेजमेंट’ पर एक कोर्स अटेंड कर रहे हैं एक ट्रेनिंग प्रोग्राम, कल उन्होंने बहुत रोचक बातें बतायीं, वह कुछ बहुत अच्छा सीख रहे हैं.

कल रात से ही उसकी पीठ में दर्द है, इतने वर्षों में पहली बार इस तरह का दर्द महसूस कर रही है, उठने-बैठने यहाँ तक की हल्का सा खांसने या उबासी लेने में भी दर्द बढ़ जाता है. दोपहर को गाने की प्रैक्टिस के लिए जाना है, जून के आने का समय हो रहा है, पर फुल्के बनाने का उसमें सामर्थ्य नहीं है, जून आकर सहायता करेंगे. पीठ का दर्द इतना तकलीफदेह होता है पहले उसे पता नहीं था.

आज पीठ में दर्द नहीं है पर पूरी तरह से स्वस्थ अनुभव नहीं कर रही है, अभी गरारे करते समय याद आ रही थी परसों सुबह की ख़ुशी, हर ख़ुशी की कीमत चुकानी पडती है न. आज टीवी पर एक अच्छी फिल्म देखी, ‘एक फूल चार कांटे’, वहीदा रहमान इतनी सुंदर है और उतनी ही अच्छी अदाकारा है, इस फिल्म में उसका चरित्र बहुत जानदार है.

आज कल से बेहतर है. सुबह सारे कार्य किये, सिर्फ योगासन छोड़कर. दोपहर पढ़ाई भी की. कल शाम को ‘अनाम दास का पोथा’ पढ़ना शुरू किया, उसे भी काफी पढ़ चुकी है और यह एक ऐसी पुस्तक है जिसे बार-बार पढ़ते रहना चाहिए. मन, बुद्धि, आत्मा के रहस्यों को खोलती हुई वह जीवन का सीधा-सच्चा मार्ग दिखलाती है. फेमिना में एक ब्रह्मकुमारी का आत्मकथ्य पढ़ा और एक लेख, quality in death भी, दोनों ही लेख अच्छे लगे. सुबह-सवेरे जागरण में life after death सुनकर मृत्यु उसके लिए पहले जैसी रहस्यमयी और क्रूर नहीं रह गयी है. मृत्यु स्वाभाविक है और उसे इसी रूप में ग्रहण करना चाहिए. there must be quality in death like in life. आज रिहर्सल में शाम को जाना है.

थोड़ा सा वक्त है, सोचा क्यों न इसका उपयोग कर ले. अभी नन्हे के लिए टिफिन बनाना है, उसकी पसंद के भरवां आलू बन रहे हैं. सुबह-सुबह ‘रैक्य आख्यान’ का अंतिम भाग पढ़ा था सो अंतरात्मा की निकटता महसूस कर पा रही है. वह उसे गाइड ही नहीं कर रही, एक अनोखे सुख से उसका अंतर भर गया है. असीम सम्भावनाओं के द्वार खुल गये हों जैसे, कहीं कोई भय नहीं कोई उहापोह नहीं. परसों क्लब में वह कार्यक्रम है जिसकी तैयारी इतने दिनों से चल रही है, उन्हें वहाँ इडली खिलानी है, उम्मीद है सब ठीक होगा. खाने की जिम्मेदारी उसकी सहयोगिनी की है और कोरस की उस पर. उसे ईश्वर पर विश्वास है, वह उसकी सहायता करेगा, वह जो उसके दिल में रहता है और दिल की हर बात जानता है, यह भी कि उसे उसी की लगन है. वह जो सारी उलझनों को सुलझा देता है.

तुम ! मात्र तुम शाश्वत हो
हे अखिलेश्वर ! और तुम्हारा अंश जो समाया है मुझमें
ब्रह्मांड की विशालता
आकाश की निस्सीमता
और धरा की दृढ़ता में मात्र तुम जाग्रत हो !
सूर्य, चन्द्र और कोटि तारागण के प्रकाश में
अन्तरिक्ष के शून्य में
सागर के विस्तृत फैलाव में
मात्र तुम दृष्टिगोचर हो
जो बीत गया, होने वाला है जो
उन सबमें
मात्र तुम गतिमान हो !