Tuesday, September 10, 2013

अनाम दास का पोथा


टीवी पर भारत और अर्जेंटीना के बीच हॉकी मैच चल रहा है और लगता है भारत यह मैच हार जायेगा, फाइनल में पहुंचने का उसका स्वप्न अधूरा ही रह जायेगा. जैसे कि किसी व्यक्ति का स्वप्न एक निस्वार्थ औए सच्चा मित्र पाने का होता है, जो उसे, वह जैसा है, स्वीकार कर सके, इसी तरह वह खुद भी उसे जैसा वह है स्वीकारे, क्योंकि उनके मध्य केवल प्रेम हो. इस समय भारतीय खिलाडियों की जो हालत हो रही है वह  उसे अच्छी तरह महसूस कर सकती है, पूरे देश में लाखों लोगों के दिल इसी तरह धडक रहे होंगे, लेकिन अगर भारत हार जाता है तो भी उन्हें उदास नहीं होना चाहिए, क्योंकि इन्सान का बस कभी-कभी नहीं भी चलता है.

आज सोमवार है, अभी-अभी उसकी एक सखी का फोन आया और पीड़ा जो परसों शाम  महसूस की थी, कल दोपहर से लग रहा था खत्म हो गयी थी, फिर उभर आई है. उस दिन की सारी घटनाएँ एक-एक कर सम्मुख आ रही हैं, एक बार फिर उसकी मित्रता का अपमान हुआ, फिर भी जाने क्यों उसके भीतर का स्नेह कभी खत्म नहीं होता. कल वे तिनसुकिया गये थे, उसका नया चश्मा बन कर आया, नन्हे के लिए स्केट्स और जून की नई हवाई चप्पल.

आज उसका मस्तिष्क बहुत उर्वर हो गया है, भावों के बीज हैं कि फूटते जा रहे हैं और विचारों की नई-नई कोंपलें स्वतः ही उग रही हैं. सब कुछ जैसे व्यवस्थित हो गया है, संसार कोई अजनबी स्थान नहीं रह गया बल्कि एक सुंदर मैत्री पूर्ण स्थल बन गया है जहाँ लोग एकदूसरे की कद्र करते हैं, हृदय कृतज्ञता से भरे होते हैं. आज एक अजनबी ने कहा, आपका बगीचा बहुत सुंदर है, और लो, उसका बगीचा इतना सुंदर हो गया है कि वह उसके बारे में एक कविता लिखने की सोच रही है. जून अभी तक नहीं आए हैं, आजकल वह ‘स्ट्रेस मैनेजमेंट’ पर एक कोर्स अटेंड कर रहे हैं एक ट्रेनिंग प्रोग्राम, कल उन्होंने बहुत रोचक बातें बतायीं, वह कुछ बहुत अच्छा सीख रहे हैं.

कल रात से ही उसकी पीठ में दर्द है, इतने वर्षों में पहली बार इस तरह का दर्द महसूस कर रही है, उठने-बैठने यहाँ तक की हल्का सा खांसने या उबासी लेने में भी दर्द बढ़ जाता है. दोपहर को गाने की प्रैक्टिस के लिए जाना है, जून के आने का समय हो रहा है, पर फुल्के बनाने का उसमें सामर्थ्य नहीं है, जून आकर सहायता करेंगे. पीठ का दर्द इतना तकलीफदेह होता है पहले उसे पता नहीं था.

आज पीठ में दर्द नहीं है पर पूरी तरह से स्वस्थ अनुभव नहीं कर रही है, अभी गरारे करते समय याद आ रही थी परसों सुबह की ख़ुशी, हर ख़ुशी की कीमत चुकानी पडती है न. आज टीवी पर एक अच्छी फिल्म देखी, ‘एक फूल चार कांटे’, वहीदा रहमान इतनी सुंदर है और उतनी ही अच्छी अदाकारा है, इस फिल्म में उसका चरित्र बहुत जानदार है.

आज कल से बेहतर है. सुबह सारे कार्य किये, सिर्फ योगासन छोड़कर. दोपहर पढ़ाई भी की. कल शाम को ‘अनाम दास का पोथा’ पढ़ना शुरू किया, उसे भी काफी पढ़ चुकी है और यह एक ऐसी पुस्तक है जिसे बार-बार पढ़ते रहना चाहिए. मन, बुद्धि, आत्मा के रहस्यों को खोलती हुई वह जीवन का सीधा-सच्चा मार्ग दिखलाती है. फेमिना में एक ब्रह्मकुमारी का आत्मकथ्य पढ़ा और एक लेख, quality in death भी, दोनों ही लेख अच्छे लगे. सुबह-सवेरे जागरण में life after death सुनकर मृत्यु उसके लिए पहले जैसी रहस्यमयी और क्रूर नहीं रह गयी है. मृत्यु स्वाभाविक है और उसे इसी रूप में ग्रहण करना चाहिए. there must be quality in death like in life. आज रिहर्सल में शाम को जाना है.

थोड़ा सा वक्त है, सोचा क्यों न इसका उपयोग कर ले. अभी नन्हे के लिए टिफिन बनाना है, उसकी पसंद के भरवां आलू बन रहे हैं. सुबह-सुबह ‘रैक्य आख्यान’ का अंतिम भाग पढ़ा था सो अंतरात्मा की निकटता महसूस कर पा रही है. वह उसे गाइड ही नहीं कर रही, एक अनोखे सुख से उसका अंतर भर गया है. असीम सम्भावनाओं के द्वार खुल गये हों जैसे, कहीं कोई भय नहीं कोई उहापोह नहीं. परसों क्लब में वह कार्यक्रम है जिसकी तैयारी इतने दिनों से चल रही है, उन्हें वहाँ इडली खिलानी है, उम्मीद है सब ठीक होगा. खाने की जिम्मेदारी उसकी सहयोगिनी की है और कोरस की उस पर. उसे ईश्वर पर विश्वास है, वह उसकी सहायता करेगा, वह जो उसके दिल में रहता है और दिल की हर बात जानता है, यह भी कि उसे उसी की लगन है. वह जो सारी उलझनों को सुलझा देता है.

तुम ! मात्र तुम शाश्वत हो
हे अखिलेश्वर ! और तुम्हारा अंश जो समाया है मुझमें
ब्रह्मांड की विशालता
आकाश की निस्सीमता
और धरा की दृढ़ता में मात्र तुम जाग्रत हो !
सूर्य, चन्द्र और कोटि तारागण के प्रकाश में
अन्तरिक्ष के शून्य में
सागर के विस्तृत फैलाव में
मात्र तुम दृष्टिगोचर हो
जो बीत गया, होने वाला है जो
उन सबमें
मात्र तुम गतिमान हो !



2 comments:

  1. यादों के द्वीपों में विचरण भी एक अलग ही अनुभव है। लेकिन जब यादें वर्तमान होती हैं तब कितनी अलग होती हैं।

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  2. जब हम यादों के द्वीप में विचरण करते हैं तो केवल सुखद बातों को ही याद करते हैं पर वास्तव में तो दुःख भी उनमें घुलामिला होता है

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