Wednesday, September 25, 2013

कबीर के दोहे


केवल चार दिन रह गये हैं, माँ-पापा को यहाँ आने में, उसे अभी सफाई का बहुत सा काम करना है. लिखना शुरू करते ही मन में आया कि यही सही होता इस वक्त वह कोई काम कर रही होती क्यों कि इन सामान्य बातों को लिखने से कोई फायदा नहीं, पर कुछ देर थककर/ थमकर आराम से बैठकर दिल को टटोलना भी तो आवश्यक है. दिल में क्या उमड़ रहा है, कहीं कोई रोष तो नहीं या शिकायत किसी के प्रति, कोई उलझन या परेशानी.. और अगर यह सब नहीं तो क्या दिल खुश है ? पर दिल की ख़ुशी को इतनी महत्ता ही क्यों दी जाये ? अपना कर्त्तव्य निभाते हुए यानि रोज के नियत काम करते हुए जो समझ आये जैसे स्थिति आये उसे वैसे ही लिया जाये. सुबह  बापू को सुना अब उनकी बातें समझ में आने लगी हैं, कहते हैं सत्संग मनुष्य को मालामाल कर देता है, पर सत्संग से हटते ही मनुष्य फिर कंगाल हो जाता है. कंगाल मनुष्य दुनिया को क्या दे सकता है, ईश्वर में विश्वास हमें अच्छाई में विश्वास सिखाता है. आध्यात्मिकता की पहली सीढ़ी नैतिकता है, सो चाहे उसे अपने मन के भावों को परखना हो और प्रतिदिन एक पन्ने को भरना हो, सच्ची निष्ठा के साथ करना है.

दस बजे हैं, उसका सिर भारी है, कल रात वर्षा हुई, आवाज से उसकी नींद खुल गयी और फिर आई भी तो एक लम्बा स्वप्न लिए, सुबह उठी तो मन ताजा नहीं लग रहा था. आज बहुत दिनों बाद नन्हे का स्कूल खुला है, कल जून गोहाटी जा रहे हैं, माँ-पापा को लाने. मन में एक के बाद विचार आ रहे हैं, पर पकड़ में नहीं आते. उसने जब से आँख के लिए होमियोपथिक दवा लेना शुरू किया है पानी आना कम हो गया है. जिन्दगी तो हर हाल में गुजर जाएगी, देखना है, खुद अपनी ही नजर में शर्मिंदा तो नहीं !

जून का फोन आखिर पौने आठ बजे आ ही गया, कल रात ग्यारह बजे उनका फोन आया था, पर दिन भर उन्हें समय नहीं मिल पाया होगा. आज उनकी पुरानी डाइनिंग टेबल चली गयी, जाते समय मन भर आया, किते वर्ष वह मेज उनके जीवन का अंग रही थी, अब किसी और परिवार की बातें सुनेगी. नन्हे के जाने के बाद उसने रजाई का कवर सिला. दोपहर को फिर ‘स्वामी रामतीर्थ’ की किताब से एक अध्याय पढ़ा, पत्रों के जवाब दिए, शाम को नन्हे को पढ़ाना और फिर टीवी...

And she has decided to write a beautiful prose piece describing a cold rainy day. It is raining continuously day and night since last three days. It stops for a while and then again starts. Nanha and herself had to wear woolen and she took out for jun, from the big trunk.

 सुबह एक बार नींद खुली, फिर सो गयी और सवा छह बजे आँख खुली, कल से सबको जल्दी उठना होगा, अगले एक महीने तक उनका घर भरा-भरा रहेगा. पिछले दिनों उसने कोई अच्छी पुस्तक नहीं पढ़ी, शायद यही कारण है कि शब्दों की कमी महसूस होती है, यूँही रोजमर्रा काम में आने वाले शब्दों से काम चलाना पड़ता है. कबीर के दोहे भी कई दिनों से नहीं दोहराए, सो मन ऐसे रहता है जैसे जल्दी में हो. नन्हे को सुबह तैयार होने में यूँही झुझलाहट का सामना करना पड़ता है और तना-तना सा मन लिए वह खुद भी अपराध भाव से ग्रसित रहती है. उसे लगता है वह समय का सही उपयोग नहीं कर पा रही है, समय के सही उपयोग की उसकी परिभाषा भी स्वयं को स्पष्ट रूप से नहीं समझा पाती. खैर आज शाम से इन सारी बातों का समाधान होने वाला है. वह व्यस्त रहेगी तो समय व्यर्थ जा रहा है यह भाव मन में आयेगा ही नहीं. लेकिन अभी मात्र साढ़े ग्यारह बजे हैं और शाम साढ़े छह बजे तक सात घंटे हैं जिन्हें उसे अच्छी तरह गुजारना है. हर पल का आनन्द उठाते हुए, क्योंकि ये साथ घंटे तो लौटकर आने वाले नहीं न !





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