Sunday, September 23, 2012

क्यों चुप हैं तारे



साढ़े ग्यारह बज चुके हैं, रोज वे लोग इस समय तक दोपहर का भोजन खा चुके होते हैं, आज पिता गली में लगा चापाकल ठीक करने गए हैं, यह नल अगर खराब हो जाये तो उसे ठीक करने की जिम्मेदारी पिता और बाबूजी(मकान मालिक) की है, और अगर ठीक रहे तो इस्तेमाल सारा मोहल्ला करता है. पिता का व्यवहार कभी-कभी उसके समझ में नहीं आता, कभी इतने कठोर, कभी इतने उदार. कल जून का पत्र आया, उसे नहीं लगता कि वह भी उसके पिताजी की सेवानिवृत्ति के उत्सव पर घर जाने की बात पर राजी होंगे, उसने सोचा है वह दस दिन वहाँ रहेगी, कितने दिन हो गए हैं उन सब से मिले हुए, विशेषतया माँ-पिता से.
कल अंततः उसकी पासबुक बनवाने के लिए बैंक से देवर के एक मित्र आकर फार्म भरवा कर ले गए. वह ड्राफ्ट ऐसे ही पड़ा था, जो जून ने उसके लिए भेजा था. उसके पास पैसे खत्म हो गए थे, आखिर उसने माँ से कह ही दिया.
कल सुबह से समय ही नहीं मिला कि अपने निकट आ सके, यानि उसके पास, दिन भर कैसे बीत  गया पता ही नहीं चला. दिन में सोना हर तरह से हानिप्रद है, कल रात देर तक नींद नहीं आ रही थी, जिससे सुबह भी देर से उठी, और दिन में पढ़ नहीं पाई वह अलग. आज नन्हा उसके साथ ही सुबह पांच बजे ही उठ गया था, सो उसका स्नान, नाश्ता भी हो चुका है. वे दोनों ऊपर बैठे हैं, उसने सोचा एक घंटा यहाँ पढ़ाई करके ही नीचे जायेगी, यहाँ कितना शांत है वातावरण, नीचे तो शब्दों का शोर ही शोर हर तरफ.. जून के मित्र भी अजीब हैं, टिकट के पैसे ही नहीं ले रहे, अब आज तो वह आ नहीं रहे, कल आएंगे तो किसी भी तरह उन्हें पैसे देने हैं. एक अजीब तरह की बेचैनी छायी है मन पर कल शाम से जब से उन्होंने पैसे वापस किये. रात अजीब-अजीब स्वप्न देखती रही.

आज शायद उसकी दो भांजियों में से किसी एक का जन्मदिन है, कितनी बार सोचा कि चारों बच्चों  के जन्मदिन डायरी में नोट करने हैं पर ऐसा कभी कर नहीं पायी. कल रात एक फ्रेंच फिल्म देखने नीचे कमरे में गयी, नन्हा छत पर सो चुका था, पर निर्धारित समय पर फिल्म शुरू नहीं हुई, वह बैठे-बैठे ही सो गयी, फिर अचानक नींद खुली तो फिल्म शुरू हो चुकी थी, नींद का आवेग मन पर छाया था, सो वह समझ नहीं पायी कि पर्दे पर क्या चल रहा है, सो वापस छत पर आ गयी, पर आश्चर्यचकित रह गयी कि आकाश पर चमकते तारे देखकर नींद पता नहीं कहाँ खो गयी और काफी देर वह तारे ही गिनती रही. अभी कुछ देर पूर्व ही वह स्नान करने गयी, पानी में ठंडक नहीं थी और पानी की बहुत कमी भी है यहाँ, सो स्नान के बाद भी तन में ठंडक नहीं समायी है. उस जून का ख्याल आया, वह भी तैयार हो रहे होंगे. पांच दिनों बाद उन्हें भी एक परीक्षा देनी है, खूब पढ़ाई हो रही होगी. कल उसकी पासबुक व चेकबुक मिल गयी, उसने सोचा आज बैंक जाना चाहिए, देखेगी.
कल शाम जून के मित्र आए और उसने टिकट के पैसे दे दिए, कल बैंक भी गयी. उसके पेन की रीफिल खत्म हो गयी, सो घर में पड़ा एक पेन उसने उठाया, पर वह भी रुक-रुक कर चल रहा है.


  

Saturday, September 22, 2012

जश्न का माहौल



कल रात वे लोग साढ़े दस बजे वापस आए. कार्यक्रम अच्छा था, पर पार्टी का या शादी-ब्याह का भोजन गरिष्ठ तो होता ही है, पेट अभी भी इसकी खबर दे रहा है. समारोह में न सादगी ही थी, न कोई नियम, बस अपने आप चलता जा रहा था, नन्हा तो वहाँ की भीड़, रोशनियों और बच्चों में कैसा घुलमिल गया, उसे बड़ा आनंद आ रहा था था. माँ पहले तो वहाँ जाने के नाम से ही मना कर रही थीं, शुरू में वहाँ अपने को अनफिट भी समझती रहीं पर बाद में बहुत आनंद ले रही थीं. सब मिलाकर देखा जाये तो सब ठीकठाक ही था. आज उसने सभी भाई-बहनों को पत्र लिखे, और एक छोटा सा पत्र जून को भी, उसे कैसा लगेगा इतना छोटा पत्र देख कर. वह उसे एक पेज पर लिख कर ले जायेगी, बाजार से पुस्तकें भी लाएगी और भी कुछ सामान यदि सम्भव हुआ. आज सुबह तीन बजे ही वह छत से नीचे आ गयी थी, ऊपर ठंड बढ़ गयी थी. नन्हे की नाक बंद हो गयी है, उसका बिस्तर पिताजी ने नीचे लगा दिया. वह भी कुछ देर सोयी एक स्वप्न देखा कि कॉलेज में या हॉस्टल में उसके कमरे का ताला बदमाशों ने तोड़ दिया है और उसकी किताब कॉपी चुरा ली है. रो ही पड़ी होती कि नींद खुल गयी. पर अब पढ़ते-पढ़ते उसकी आँखें बंद हो रही हैं, उसने सोचा पहले स्नान करना ही ठीक रहेगा.

एक सुंदर पन्ने पर उसने लिखा- मिसेज एस ने बैठक के दरवाजे पर खड़े होकर कमरे पर आखिरी नजर डाली, हाँ, अब ठीक है. कल ही उन्होंने सारे पर्दे, कुशन, चादरें आदि धुले-धुलाए प्रेस किए हुए बिछाये थे. कमरे की एक-एक वस्तु को पोंछ कर नए सिरे से रखा गया था. कमरा निखरा-निखरा सा लग रहा था. दूसरे कमरों में भी कुछ न कुछ बदलाव तो आए थे और रसोईघर में भी. हों भी क्यों न मिस्टर एस अगले हफ्ते सेवा निवृत्त हो रहे थे. उस अवसर पर उनके सभी बच्चे अपने-अपने परिवारों के साथ आ रहे थे. घर में जश्न का सा माहौल रहेगा. पति-पत्नी दोनों अपने-अपने विचारों में खोये रहते थे. एक-दूसरे से कहे या पूछे बिना ही उनके चेहरे देखकर जाना जा सकता था की वे अपने भविष्य के बारे में सोच रहे हैं. पत्नी प्रसन्न थी कि सेवा निवृत्ति के बाद दोनों साथ-साथ समय बिताएंगे. कम बोलने वाले उनके पति यह सोचा करते थे की अपना समय संगीत, पुस्तकों और बागवानी को देंगे. जाहिर है इसमें पत्नी का साथ तो रहेगा ही. दोनों को साथ-साथ बिताए वर्षों की खट्टी-मीठी स्मृतियाँ बार-बार आकर घेर लेती थीं. मिसेज एस की आँखों में कई बार एक शिकायत झलक जाती थी जो कड़वी स्मृतियों का परिणाम थी और कभी-कभी एक स्निग्ध आभा जो सार्थक क्षणों की देन होती थी. वह  कब चाहती थीं कि उन सब बीती बातों को याद करें पर स्मृतियों पर किसी का वश तो नहीं. यही हाल कमोबेश श्री एस का था, यह अलग बात थी कि उनकी यादों का दायरा कभी घर-परिवार में सिमट जाता था और कभी कार्यालय व सहयोगियों में. अपने विभाग में एक उच्च अधिकारी रहे थे पिछले कई वर्षों से, जिम्मेदारियां काफी थी, जिन्हें वह अच्छी तरह से निभा रहे थे. स्वभाव से मितभाषी, उदार, कोमल हृदयी वह कभी अपने परिवार के प्रति कठोर हो सके थे अब सोचकर जैसे उन्हें विश्वास नहीं होता था. हो सकता है ऐसे किन्हीं दुर्बल क्षणों में उनका हृदय अपनी जीवन संगिनी के प्रति किये गए जाने-अनजाने अपराधों के लिए क्षमा मांग चुका हो. बड़ा पुत्र उनके कठोर अनुशासन में पला जिसका असर उसके मन-मस्तिष्क पर कितना पड़ा यह तो नहीं कहा जा सकता पर यह जरूर है कि वह अंतर्मुखी है मंझले और छोटे बेटे के आते-आते यह अनुशासन काफी ढीला पढ़ गया और सबसे छोटी बेटी तक तो समाप्त प्रायः ही हो गया. अब सभी आ रहे हैं. कभी-कभी किसी विवाह अथवा त्यौहार के अवसर पर ही ऐसा हो पाता है.
आज वह दिन आ ही गया. पिछली रात देर तक बातें होती रहीं. वे दोनों तो मुश्किल से दो-तीन घंटे ही सो पाये होंगे. और सुबह पाँच बजे ही आदत के अनुसार उठ गए हैं. प्रातः भ्रमण उनका पुराना शौक है. पिछले कुछ वर्षों से श्रीमती एस का भी, पहले उन्हें कहाँ वक्त मिल पाता था. जब सब बच्चे छोटे थे. सुबह उठते ही घर के कामों में लग जाना पड़ता था. बच्चे जब तक जगें वह कितना कम निपटा चुकी होती थीं. तब खर्च अधिक था सभी काम उन्हें अपने हाथों से करने होते थे. घर में गैस का चूल्हा भी नहीं था तब. वे दिन क्या वह कभी भूल सकती हैं, सर्दी हो या गर्मी उनके दिन की शुरुआत पाँच बजे ही हो जाती थी. अपनी पूरी मेहनत और आंतरिक शक्ति के बल पर उन्होंने सभी बच्चों को अच्छे संस्कार दिए, आधुनिक माता-पिता की तरह उन्होंने बच्चों के पालन-पोषण पर पुस्तकें तो नहीं पढ़ी थीं बस जो कुछ अपने आस-पास देखा था और जो उनके मन को अच्छा लगा वही शिक्षा उन्हें दी. पर जब परिवार बड़ा हो तो कोई न कोई पक्ष छूट ही जाता है बच्चों को बाहर की दुनिया के जिस कुप्रभाव से बचाकर रखा वहीं घर में उन पर होता अन्याय शायद वे देख नहीं पाए. रोजी-रोटी की फ़िक्र ने तथा परिवार पर विश्वास ने जो कि सामान्यतः हर घर मे होता ही है. बड़ा पुत्र और उसकी पत्नी परसों ही आ गए थे. बेटा अच्छे पद पर है, पत्नी भी मिलनसार और शौक़ीन मिजाज की पाई है. पर ईश्वर जहां फूल खिलाता है कांटे भी उगाता है. बेटे की शादी को दस-ग्यारह साल हो गए हैं पर आंगन अभी तक सूना है. मंझले बेटे की नौकरी भी अच्छी है, वह पत्नी के साथ दो हफ्ते पहले आ गया है. और तीसरे बेटे की शादी अभी हाल में ही हुई है. छोटी बेटी अभी पढ़ाई कर रही है, उसकी शादी को छोडकर सभी बच्चे अपने अपने परिवार में व्यवस्थित हैं. सांसारिक दृष्टि से देखें तो सभी खुश हैं.
वह जो शब्द-चित्र लिख रही थी लगता है, पूरा हो गया है क्योंकि अब कलम रुक-रुक जाती है.

Friday, September 21, 2012

गहराई कितनी गहरी...



कल रात वर्षा ने आंखमिचौली खेली, दो बार बिस्तर ऊपर-नीचे हुआ, फिर उन्हें नीचे कमरे में सोना पड़ा, इतनी घुटन, इतनी बंद हवा कि अभी तक सिर भारी लग रहा है, और नींद भी कैसी स्वप्नों भरी थी. इस समय भी मौसम बेहद गर्म है. नन्हा इन सारी परेशानियों के बीच कैसे आराम से सोया है, बच्चे आखिर बच्चे ही होते हैं, बादशाह अपने मन के. दिन में जब वह सोया न हो, उसके हाथ, पैर तथा मुंह चलते ही हैं, न चलते-चलते थकता है न बोलते-बोलते. जून को पत्र लिखते समय वह हर बात लिख देती है, छोटी-बड़ी अपने मन की, और उसके बाद एक अजीब सा खालीपन महसूस होता है, यह अपना आप उड़ेंल देना, अपने को निर्वस्त्र कर देने सा ही है न, कहीं कुछ तो बचा कर रखना ही चाहिए, भले ही जून उसका ‘स्वयं’ ही क्यों न हो, स्वयं से भी कुछ बातें छिपी रहें तो रहस्य बना रहता है, कौतूहल भी. कल रात से उसे खत लिखने के बाद से ही एक रीतापन सा महसूस हो रहा है अब उसका अगला पत्र आने तक ऐसा ही रहेगा.

परसों उसने सौ रुपये के नोट का फुटकर करवाया, दो ही दिन में आधे पैसे खर्च हो गए, जब तक नोट बंद था ठीक था. ननद के पेपर चल रहे हैं. सोनू और वह छत पर हैं, माँ किचन में. बिना प्रेस किये कपड़े पहने हों कभी याद नहीं पड़ता, सातवीं-आठवीं में पढ़ती थी उसके बाद से तो कभी भी नहीं, यहाँ प्रेस खराब है, पैसे देकर कपड़े प्रेस करना खलता है, पर क्या करें. कल शाम को गर्मी ज्यादा थी उसने स्नान किया, बाल पोंछे ही नहीं, देर तक ठंडक साथ रही. अभी फिर रीठा आदि लगाकर बाल धोए हैं, छींके आनी शुरू हो गयी हैं, लगता है सर्दी होगी, वही कॉमन कोल्ड...

जून का खत आया है, सो मन तो खुश है, पंछी की तरह उन्मुक्त खुले-खुले गगन में उड़ता हुआ सा..उसने भी उसे लिखा है, उस भोले, उदार मित्र को, वह स्वयं भी नहीं जानती थी कि उसके लिए इतना प्यार छिपा है उसके मन में , उसके मन में उसके सिवा और कुछ है भी कहाँ. वह खुश रहे, सुखी रहे यही दुआ निकलती है हर पल. उसको खुश रखना उसका सर्वप्रिय कार्य है. आज घर का माहौल हल्का-हल्का है, माँ भी ठीक हैं, पर उनका दुःख कितना गहरा है उसका अनुमान कोई और नहीं लगा सकता. पर फिर भी जीना तो है ही, खुश भी रहना है, क्यों कि जीवन है तो खुश रहने की इच्छा भी है, सुख की आकांक्षा भी है. दुःख को भुला कर मुस्कुराना भी है. समाचारों का समय हो रहा है, जून भी समाचार दख रहे होंगे.

कल रात उसने ‘गहराई’ फिल्म देखी, फिल्म के दृश्य बार-बार स्वप्न में आ रहे थे. पहले कभी इसके बारे में सुना था. आज इतवार है, वह स्नान करके लिखने बैठी है, नन्हा सो रहा है. जून भी शायद चाय की चुस्कियां ले रहे होंगे. आज शाम को उन्हें चाची की लड़की की मंगनी में जाना है. माँ-पापा का खत भी आया है, उसे घर जाना ही चाहिए. उसने सोचा २८ या २९ को जायेगी, रिजर्वेशन के लिए जून के मित्र को कहना होगा.

 



Thursday, September 20, 2012

बढता हुआ शोर...



प्रातः के साढ़े छह बजे हैं. घर में इतनी आवाजें हैं कि मन को एकाग्र कर पाना मुश्किल लगता है. नीचे बाबूजी के कमरे में उच्च स्वर में बजता ट्रांजिस्टर, साथ वाले घर में झाड़ू और बाल्टी की उठापटक की आवाजें, उस घर की महिला शायद घर धो रही हैं. ऊपर से ननद और पड़ोसी के बच्चे की जोर-जोर से बातें करने की आवाज. गनीमत है नन्हा अभी सोया है, नहीं तो यह जो इतना एकांत मिला है, वह भी नहीं मिलता. अब उसके उठने पर या टीवी समाचारों के बाद ही वह ऊपर जायेगी दोनों में से जो भी पहले हुआ. जून को कल शाम को एक और पत्र लिखा, जब कुछ और नहीं सूझता तो पत्र ही लिखती है और दस-पन्द्रह मिनट में पत्र का एक-एक कोना भर जाता है पता नहीं कैसे. उसको लिख दिया है भूल से कि एक ही पत्र मिला जबकि पिछले हफ्ते दो पत्र मिले थे. उसने सोचा है कि माँ-पिता के लिए एक शब्द-चित्र लिख कर भेजेगी इकतीस मई के लिए जब पिताजी रिटायर हो रहे हैं. शोर बढता ही जा रहा है, वहाँ असम के घर में कितनी शांति रहती थी सुबह-सुबह...जल्दी से ये दिन बीत जाएँ और वह जून के पास वापस.. अखबार वाले ने दो दिन बाद आज फिर पेपर दिया है.

सुबह के पाँच बज कर दस मिनट. उसने सोचा है एक घंटा पढ़ाई कर छह दस से कार्य आरम्भ करेगी. देखे कहाँ तक सफल होती है अर्थात शोर शुरू हो गया तो...अभी तक तो सब कुछ शांत है. कहीं से लाउडस्पीकर की आवाज भी नहीं आ रही है. अब उसे लगता है कि नीचे ही बैठना चाहिए. नन्हे को छत पर से उठाकर ला रही थी तो वह रोने लगा कि छत पर ही सोना है, पर उसे अकेले छोड़ा नहीं जा सकता था. मना कर लायी, ये छोटे-छोटे बच्चे भी भी...बस, अब कैसे चुपचाप सोया है.

मई का प्रथम दिन..मई का महीना यानि उसके जन्मदिन का महीना..इस वर्ष वह एक कम तीस की हो जायेगी. उसे खुद नहीं लगता कि उम्र इतनी हो गयी है न तन से न मन से. तभी उसे ख्याल आया देखें, जून उसके जन्मदिन पर क्या देंगे. ३१ को पिताजी रिटायर हो रहे हैं, यानि उनकी उम्र ५८ की हो गयी है. उससे दुगनी. दीदी तेतीस की हो गयी. आजकल में सभी के पत्रों के जवाब देने हैं. सुबह के सवा छह बजे हैं बनिस्बत आज शोर कम है वह ऊपर के कमरे कम किचन में बैठी है, नन्हा पास ही सोया है. कल देखी हुई फिल्म आयी थी पर बोर नहीं लगी, कहीं पढ़ा था कि देखे हुए टीवी कार्यक्रम या फिल्म मस्तिष्क को ऊर्जा से भर देते हैं. आज उसका मन शांत है, मई आरम्भ हुआ है शायद उसी का असर है, शांत पानी पर तिरती नाव का सा शांत. वह शब्द चित्र जिसके लिखने की बात उसने तय की थी आज से ही आरम्भ करेगी. इसी डायरी के खाली पन्नों पर. जून तो ऑफिस जाने की तयारी में लगे होंगे शायद स्नान कर रहे हों, या तैयार होकर उसे पत्र ही लिख रहे हों उसने मन ही मन उसे शुभ प्रभात कहा.


 

Wednesday, September 19, 2012

आई लव लूसी



आज सुबह से अब समय मिला है, उसका खत नहीं आता जिस दिन कैसा अधूरा-अधूरा लगता है और फिर आज तो हल्का सा दर्द भी है. उदासी भरा माहौल, उखड़ा-उखड़ा सा मन फिर जून की बेतहाशा याद...कितना ख्याल रखता था वह ऐसे में. जाने कैसा होगा. एकाएक वोल्टेज काफी तेज हो गया है. सोनू का विकास जिस तरह यहाँ हो रहा है कभी तो ठीक लगता है, कभी डर लगता है उसे. उसकी भाषा, बातचीत करने का तरीका कैसे बदलता जा रहा है. उसकी कोई बात वह सुनता ही नहीं है. हर समय उसे किसी न किसी के पास जाना रहता है कुछ न कुछ करना रहता है. आठ बजने को हैं, उसे ख्याल आया जून क्या कर रहा होगा इस वक्त. अगर ऐसा हो जाये की ननद को बैंक की नौकरी मिल जाये तो.. बहुत अच्छा होगा उन सभी के लिए. जून के लिए भी जो भविष्य की चिंता में हैं और उनके अधूरे स्वप्नों के लिए भी. उसने मन ही मन जून से कहा कि वह उसे खत लिखे बिना रह नहीं सकती पर ...एक ही तो अन्तर्देशीय लिफाफा बचा है.

कल से अखबार वाले ने ‘आज’ देना शुरू किया है. जब आयी थी तभी से चाहती थी कि ‘हिंदुस्तान’ या ‘नवभारत टाइम्स’ रोज आए पर ऐसा किसी न किसी कारण से हो न सका. चलो ‘आज’ ही सही पर अभी तक तो पेपर आया नहीं है. अप्रैल का महीना खत्म होने को है, फिर आएंगे मई और जून के महीने, भीषण गर्मी के, जिस तरह यहाँ सभी डरा रहे हैं. नन्हे को रात जल्दी नींद नहीं आती और सुबह छत से जल्दी आना पड़ता ही है, सुबह कैसा चिड़चिड़ा हो गया था वह. टीवी पर पीठ और गर्दन के कुछ व्यायाम दिखाए जा रहे हैं यह आकर उसका व्यायाम करना तो जैसे बंद ही हो गया है. उसने सोचा पुनः शुरू तो कर ही सकती है. परीक्षा की तैयारी पिछले कुछ दिनों से विशेष नही हो पा रही है, सुबह पढ़ नहीं पाती है, दोपहर को नींद आ जाती है और शाम को ही एकाध घंटा पढ़ पाती है. लगता है कुछ परिवर्तन करना होगा. समाचारों में सुना ‘लूसी’ अब नहीं रही, कितनी सशक्त हास्य अभिनेत्री थी वह.

सुबह की शीतल ताजा हवा यहाँ कमरे में बैठे ही महसूस हो रही है, कल भी मौसम गर्म नहीं था, न आज है बल्कि कल रात छत पर सोये थे तो काफी ठंड लग रही थी. सुबह साढ़े चार बजे ही वह नन्हे को लेकर नीचे आ गयी, उसे ठंड नहीं लगती, चादर ओढने पर उतार देता है और अभी कुछ देर पूर्व रोते-रोते उठा, पूछा उसने बहुत कि क्या बात है, पर वह नहीं बोला. कोई स्वप्न देखकर डर  गया होगा.
सांय पांच बजे हैं, अभी कुछ देर पूर्व नींद खुली, तीन बजे सभी सोये. ननद का इंटरव्यू अच्छा रहा. छोटे भाई का पत्र आया है, पिताजी के रिटायरमेंट के अवसर पर यदि उसे जाना हो तो वह आकर उन्हें ले जायेगा. वह जून से पूछ सकती है पर निर्णय तो उसे ही लेना है. लेकिन वह उतनी भीड़-भाड़ में वहाँ जाना नहीं चाहती. उसके पीछे कारण क्या है वह भी तो स्पष्ट होना चाहिए. वह और नन्हा कुछ दिन माँ-पिता के साथ रहें ऐसी इच्छा है, सब साथ हों तो ठीक से बात करने का भी वक्त नहीं मिल पायेगा, पर पिताजी को वह इस अवसर पर कोई उपहार देना चाहती है, किताबों का एक सेट ही सब्बे उत्तम उपहार रहेगा और एक पत्र भी. लाइट नहीं है पर सोनू कैसे आराम से सोया है, सोते समय आजकल बहुत परेशान करता है.


Tuesday, September 18, 2012

आपके अनुरोध पर..



आज सुबह घर में सत्यनारायण की कथा हुई थी, दिन भर उसकी सुगंध फैली रही. नन्हा भी आज जल्दी उठ गया था, शाम को उसे लेकर माँ के साथ गंगा घाट तक गयी, वह बेहद खुश था, नदी को देखते ही दूर से बोला, गंगा जी ..वापसी में जैसे ताकत भर गयी थी उसमें. इस समय रात्रि के साढ़े आठ बजे हैं, ननद ने पेठे की मिठाई का एक टुकड़ा दिया, उसके मुख में दाहिने तरफ दांत में दर्द होने लगा है.
आज का दिन शायद उनके लिए कोई विशेष अर्थ रखता है, जून को भी याद होगा, यही तारीख तो थी कितना इंतजार किया होगा उसने उसके पत्र का तब..और आज भी उतना ही इंतजार रहता है. जब तक यह इंतजार बरकरार है, प्यार भी बरकरार है. आज सुबह नींद पौने छह बजे खुली. एक बार सुबह उठी थी, सोनू ने पानी माँगा था, तब चार बजे थे, सोचा इतनी शीघ्र उठके क्या करेगी, लेकिन उसके बाद नींद खुली तो..दिन काफी चढ़ आया था. शायद आजकल साढ़े पाँच बजे से भी पहले सूर्योदय हो जाता है. अप्रैल समाप्ति पर है. उसे याद आया आज इतवार है, जून भी सुबह की चाय पी रहे होंगे, उसने पूछा, बोलो क्या कार्यक्रम है आजका ?

सुबह के पाँच बजे हैं, ऊपर छत पर सोने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि सुबह नींद जल्दी खुल जाती है. वरना पिछले दो-तीन दिन पौने छह बजे से पूर्व उठ ही नहीं पाती थी. अभी सूर्योदय नहीं हुआ है, दिन और रात के मिलन का समय कितना भला होता है, आकाश हल्की कालिमा की चादर ओढ़ लेता है कि सब कुछ छिपा भी रहे और दिखाई भी दे. नन्हा सो रहा होगा. वह नीचे सीढ़ियों पर बैठी है, यहाँ हवा रुकी हुई सी है. बैठना तो ऊपर ही चाहती थी पर छत पर और भी लोग सो रहे हैं.

..पर अब वह ऊपर आ गयी है, ऊपर काफी रोशनी है ठंडक भी एक टेबिल फैन जो चल रहा है. आज जून का पत्र आना ही चाहिए, अन्यथा...अन्यथा क्या, कुछ भी तो नहीं, इंतजार करेंगे और क्या. कल शाम टीवी पर ‘अनुरोध’ फिल्म दिखाई गयी थी, वर्षों पूर्व माँ-पिता, भाई-बहनें सभी मिलकर गए थे यह फिल्म देखने, कहाँ पर, यह तो याद नहीं, शायद बनारस में ही, पर बहुत अच्छी लगी थी सभी को यह फिल्म, उसे लगा कि इसी तरह उन सभी को भी यह बात जरूर याद आयी होगी, यदि वे भी इतवार शाम की फिल्म देखते होंगे.

कल जून का एक पत्र मिला और एक बैंक ड्राफ्ट भी, समझ नहीं आता कि इससे उसे खुशी हुई है या परेशानी बढ़ी है. उसे कल रात पहली बार स्वप्न देखा, कितना दुबला-पतला, खोया-खोया सा लग रहा था, दाढ़ी बढ़ी हुई थी. किन्ही परिचित के यहाँ जाने की बात कह रहा था, कोई डिपार्टमेंटल समस्या थी. उसने मन ही मन उसे शुभ प्रभात कहा और स्नेह भेजा. इस समय सुबह के सवा छह बजे हैं, नन्हा सोया है और छत पर आए बंदरों के कारण आँगन में शोर मचा हुआ है. उसे नीचे जाकर पढ़ने की बात सोचनी चाहिए पर उस कमरे में कितनी घुटन होगी रात भर बंद रहने के कारण. रात फिर छत पर सोये थे, शाम से ही लाइट गायब थी. अँधेरे में और गर्मी में किचन में अकेले रहने का उसका कोई इरादा नहीं था, सो खाने में उसने सिर्फ नमकीन चावल बना दिए थे, जो पिताजी को पसंद नहीं आया, उनके अनुसार पूरा खाना बनना चाहिए था. कल उसने जून को पत्र लिखा. याद आया कि कितने दिन हो गए दीदी का पत्र नहीं आया. उसका मन शांत नहीं है, तनाव से जैसे मस्तिष्क तना है, वजह, चारों और से आती आवाजें, एकांत अब सम्भव नहीं है, सर्दियों की बात और थी, सुबह जल्दी उठकर एक घंटा स्वयं के साथ हो सकती थी.


 



Sunday, September 16, 2012

छत पर बंदर



कल जून को पत्र लिखा, कहीं वह नाराज न हो गए हों कि उसने उन्हें मेस ज्वाइन करने को कहा, अब यह तो उनका पत्र आने पर ही मालूम होगा. उसे पूरी आशा है आज उसका पत्र भी आयेगा. सुबह पांच बजे से पहले ही उसकी नींद खुल गयी उमस और गर्मी के कारण. उसने सोचा आज रात से यहीं छत पर सोयेगी जब सुबह छत पर टहलने गयी, हवा बहुत ठंडी थी, तन-मन को सहलाने वाली. उसे कालेज के जमाने में घर के सामने वाले बगीचे में गुलाबों की झाड़ी से निकलने वाली खुशबू और सुबह की शीतल पवन याद आ गयी. अगले महीने पिता रिटायर हो रहे हैं अब वह कभी उस मकान में नहीं रह सकेगी. कल देवर के मित्र अपने एक मित्र की पत्नी को लेकर आए, उसकी बातें और स्टाइल देखकर उसे भाभी व उनकी बहन की याद आ रही थी. पर उसकी कुछ बातें सुनने में कानों को चुभने वाली थीं, सो वह उठकर चली गयी.

कल उसका पेन फिर कहीं खो गया, सो सुबह डायरी नहीं लिख पायी थी. इस समय सुबह के साढ़े छह बजे हैं पर कमरे में गर्मी बहुत है. कल रात वे सभी छत पर सोये. कितने वर्षों बाद उसे छत पर सोने का मौका मिला है, खुले आसमान के नीचे. बचपन में वे सभी किस्से कहानी कहते हुए छत पर सोया करते थे गर्मियों में. आरम्भ में इतने लोगों के कारण नींद ही नहीं आ रही थी, पर बाद में, कब सो गयी पता ही नहीं चला. सुबह पौने पांच बजे के लगभग नींद खुली, कानों में मंदिर से आती मंत्र ध्वनि व स्तुति सुनाई दी जो प्रातःकालीन मंद शीतल हवा में भली लग रही थी तो बनारस की सुबह के प्रसिद्ध होने का अर्थ समझ में आया. नन्हा अभी तक सोया है. छत पर से आकर यहाँ इस कमरे में. सुबह-सुबह मकानों की छतों पर यहाँ कितने बंदर भी घूमते दिखाई देते हैं. कल महावीर जयंती का अवकाश था सो पोस्टमैन नहीं आया. जून को खत भेजने का दिन आज है, पर वह उसका पत्र आने पर ही लिखेगी.
कल जून का पत्र मिला एक नहीं दो पत्र एक साथ. वह भी उसकी तरह परेशान था पत्र न मिलने से. विवाह से पूर्व जिस तरह लम्बे पत्र लिखता था वैसा ही स्नेह भरा पत्र पाकर उसकी ऑंखें भर आयीं, ऐसा तो उसे उसका पत्र पाकर कितनी ही बार हुआ है पर इसको सामान्य ढंग से न लेकर माँ-पिताजी यह सोचने और फिर कहने लगे कि यहाँ उसका मन नहीं लगता. एक महीना हो गया है उसे यहाँ रहते याद नहीं कि कभी ऐसा उन्हें महसूस होने दिया हो. नन्हा अस्वस्थ होने के कारण या उसका पूरा ध्यान न मिलने के कारण परेशान कर रहा था, उसका मन पहले से ही भरा था. उसने तय किया है आज से सोनू का पूरा ध्यान रखेगी, चाहे पढ़ाई हो या न हो. घड़ी देखी, साढ़े पांच बजने को थे वह दिन का कार्य आरम्भ करने के लिए उठी.

 










   

Saturday, September 15, 2012

उपलों का धुआँ



सुबह के साढ़े छह बजे हैं, कुछ देर पहले वह नन्हे को उठाकर ऊपर ले आयी है, नीचे का कमरा इतना गर्म था कि उसे वहाँ छोड़ने का उसका मन नहीं हुआ. उसकी बुआ को भी उठाकर आयी थी, पर वह अभी तक सोयी है. कल जून के दो पत्र मिले, उसने जवाब भी दे दिये. हँसेगा वह पढ़कर शायद दो पल के लिए उदास भी हो जायेगा. पर उसकी कुछ बातें उसे अच्छी नहीं लगीं, एक तो कुक के बनाये खाने की तारीफ करना और दूसरा यह कहना कि वह उसे सबसे अधिक नहीं, सबके समान ही चाहता है. वैसे उसे इन बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं थी, उनके सम्बन्ध को अब तक इतना परिपक्व तो हो जाना चाहिए कि... या उसे भी अपने को इतना बड़ा तो समझना चाहिए. संभवतः विवाह सम्बन्ध एक कभी न पुराना होने वाला रिश्ता है, नित नूतन. आज भी उसका किसी और की तारीफ करना उसे उतना ही दंश देता है जितना विवाह के तुरंत बाद. उसके पत्र से यह भी पता नहीं चला कि वह उसकी कमी महसूस करता है या यह लिखकर वह अपने को कमजोर नहीं कहना चाहता. उसे आश्चर्य हुआ, एक और तो वह उसे इतना प्यार करने का दम भरती है, दूसरी और उसके ही विरुद्ध सोचती है, उससे नाराज होती है, क्या यह भी प्यार है या यह है उसका अहम्,  प्यार तो देने का नाम है, मांगने का नहीं, लेने का भी नहीं. वह खुश रहे, स्वस्थ रहे, बस यही उसका अभीष्ट होना चाहिए, उसके स्नेह की धूप उसे चारों और से घेरे रहे, उसका प्यार पहले इतना सबल तो हो कि जरूरत पड़ने पर वह उसका आश्रय ले सके. कहीं उसकी इस नुक्ताचीनी से धीरे-धीरे उससे दूर न हो जाये, जैसे कि अब उसे लगता है.

कल का सा समय है, आज सोनू अपने आप ही ऊपर आ गया है, उसे भी उसकी तरह गर्मी व घुटन के कारण नीचे नींद नहीं आ रही थी. कल बैसाखी थी, समाचार सुनने से ज्ञात हुआ, जून का दफ्तर भी बंद होगा, कल उसका पत्र नहीं आया, बड़ी भाभी व ननद के पत्र आये. आजकल वे लोग सुबह भोजन जल्दी कर लेते हैं, इससे दिन में पढ़ने का कुछ समय मिल जाता है. आज रामनवमी है. बचपन में इन त्योहारों का विशेष अर्थ होता था, अब तो समाचार की लाइन बन कर रह गए हैं. कल रात रोज की तरह ग्यारह बजे सोये और दस मिनट बाद ही बिजली गुल हो गयी, और पडोस के घर से उपलों का धुआँ नाक में भरने लगा. पंखे के बिना एक तो यूँ ही कमरे में इतनी घुटन रहती है दूसरे धुएँ ने एकदम परेशान कर दिया. सोनू को लेकर ऊपर कमरे में आ गयी, गर्मी तो यहाँ भी उतनी ही थी पर धुआँ नहीं था, कुछ देर बाद ननद भी आ गयी. कहने लगी गर्मियों में रात-रात भर लाइट गायब रहना यहाँ आम बात है. कैसे बीतेंगे ये महीने..यूँ और तो कोई परेशानी नहीं है. पिता व ननद सभी बहुत अच्छे हैं, स्नेह से भरे, हमेशा दूसरों के काम आने वाले.  नन्हे को भी बहुत प्यार मिलता है. जून की कमी लगती है, अगर उसका खत नियमित आता रहे तो वह भी न लगे. इस हफ्ते उसका सिर्फ एक खत आया है.

उसका मन अशांत है, कारण उसका पत्र नहीं आया है. वह जानता है कि उसे कितनी प्रतीक्षा रहती है उसके पत्रों की. कौन जाने क्या हुआ है, कुछ भी हो यह तो स्पष्ट है कि उसके मन की शान्ति, सुख सभी चले गए हैं. यूँ उसे मालूम है कि मन के सुख के लिए दूसरों पर अवलम्बित होना अपनी कमजोरी है, पर जून दूसरा कहाँ है. अपने ही परायों से ज्यादा दुःख देते हैं क्योंकि वही तो सुख देते हैं. सोनू अस्वस्थ है, कल डॉ साहब आये  थे, दवा बता कर गए हैं, कितना दुबला हो गया है.

एक और इतवार ! पिछली रात देवर का एक मित्र माँ-पिताजी से मिलने आया. कल दोपहर के भोजन के समय नन्हें ने निर्दोष भाव से पूछा, चाचा कहाँ हैं, उसकी बात सुनकर अचानक वे सभी चुप हो गए. इसका अर्थ हुआ कि छोटू भी उसे याद करता है. वह दादा-दादी को व्यस्त रखता है, लेकिन कभी-कभी उसे बहुत परेशान करता है. 

Friday, September 14, 2012

इतवार की सुबह



ग्यारह बजने में बीस मिनट, सुबह छह बजे उठने के बाद अब एक मिनट हुआ, बैठी है, डायरी लिखने का बहाना है, पैर कुछ विश्राम चाहते हैं और मन भी एक जगह रुक कर कुछ सोचना चाहता है. आज शायद जून का पत्र आये. कल दोपहर और फिर शाम को कितने घंटे व्यर्थ किये, स्वेटर का गला बनाने में, पर अभी तक नहीं बना है, उसे तो पूरा करना ही है, उसके बाद जो गणित की किताबें ली हैं, उन्हें देखना है. सोनू दादाजी के साथ आटा लेने गया है.

सुबह के साढ़े सात बजे हैं, नन्हा सोया है. सो उसे वक्त है कि दिन की शुरुआत करते हुए कुछ सोच सके. नीचे कमरे में एक तो गर्मी थी, दूसरे पडोस में टीवी की आवाज व्यवधान उत्पन्न कर रही थी, सो यहाँ उपर आ गयी है. यहाँ ठंडी हवा (धूल भरी ) आती है, यहाँ उनका बालकनी कम बाथरूम है, इस घर में इतनी समस्याएं हैं पर माँ-पिता ने कभी सोचा ही नहीं कि इसे बदला जाये. जिंदगी के चालीस साल इसी घर में गुजार दिए. माँ की तबियत ठीक नहीं है, उसे तो लगता है उनके तन की अस्वस्थता मन की ही छाया है, पर कौन समझा सकता है उन्हें. जब तक वे खुद न चाहें, वः कुछ करना ही नहीं चाहतीं, उदासीन हो गयी हैं सबसे, पर ऐसे कब तक जिया जा सकता है. वास्तविकता की दुनिया में जितनी जल्दी लौट आयें उतना ही अच्छा है. कल जून का पत्र आया वह उदास है कि उसे उनके पत्र नहीं मिल रहे हैं, पता नहीं क्यों. सुबह का एक कप दूध अभी पिया उसने, उसे समझ नहीं आता कि सुबह से बिना कुछ लिए यहाँ लोग दस-ग्यारह बजे तक कैसे रह लेते हैं. वह पुस्तक पढ़ने बैठ गयी जो प्रवेश परीक्षा के लिए लायी थी.

फिर वही कल का सा समय है, लेकिन वह नीचे कमरे में है, कपड़े प्रेस करने के लिए चादर बिछा रही थी की ननद ने बताया, पिताजी ने ऊपर कपड़े प्रेस करने को कहा है, नीचे जो बिजली खर्च होती है, उसका बिल आता है जबकि ऊपर की बिजली फ्री है, उसे समझ नहीं आता. रात अजीब-अजीब स्वप्न देखती रही, पता नहीं इनमें कोई सार भी है या उसके मन का पागलपन है. कल सभी भाई-बहनों को पत्र लिखे.

सुबह साढ़े पांच बजे ही उठ गयी थी, छत पर टहलने गयी, सूर्योदय के समय बहुत अच्छा लग रहा था. हर जगह की अपनी कुछ विशेषताएं होती हैं, और कुछ खामियां जैसे हर व्यक्ति की. आज इतवार है, सुबह का मीठा दूध पीते समय उसे याद आया, जून इतवार सुबह की चाय पी रहे होंगे. कैसे बीतते होंगे उनके दिन-रात, उसकी याद तो आती होगी. नन्हे ने नीचे से आवाज दी और वह उसे लेकर ऊपर आ गयी है, कह रहा है और सोयेगा और लेट गया है, देखें कितनी देर लेटता है.

Wednesday, September 12, 2012

खिलौने की दुकान



खत आया है, ठीक से पहुंच गए थे, एक दिन लेट होने से कोई समस्या नहीं हुई क्योंकि जीएम नहीं थे. मार्च का अंतिम दिन, फागुन का अवसान, अप्रैल का महीना यानि गर्मियों की शुरुआत ! आज सुबह पांच बजे उठी, नन्हा भी साथ ही उठ गया पर आधे घंटे बाद फिर सो गया. इस वक्त खेल रहा है ऊपर मकान मालिक की छोटी बेटी के साथ. कल अप्रैल फूल है, बचपन याद आ जाता है इस दिन, पडोस की एक लड़की एक बार साबुन को बर्फी की तरह काट कर लायी थी पहचानना मुश्किल था, रेडियो पर अनाउंसर भी सुबह से अजीब-अजीब बातें शुरू कर देते थे. बहुत दिनों बाद उसने रीठा-आंवला-शिकाकाई से बाल धोए. कितना अपनापन लगता है यहाँ कभी-कभी, जून वहाँ अकेले हैं, यही बात खलती है. बाबूजी, मकानमालिक के बूढ़े पिता को गुस्सा आ रहा है कि पड़ोसी उनकी दीवार पर (जो दोनों की साझी दीवार है) टाइल्स क्यों लगा रहा है, पिता भी उनका साथ दे रहे हैं इस क्रोध में.

कल रात एक अजीब हादसा हुआ, बाबूजी के बेटे ने अपनी किशोरी कन्या को टीवी खराब हो जाने के कारण बेतहाशा मारना शुरू कर दिया, वह जरूर नशे रहे होंगे. ननद ने बताया, यह कोई नई बात नहीं है, कितनी ही बार ऐसा लड़ाई-झगड़ा करते हैं. नशे में इंसान, इंसान नहीं रह जाता, हैवान ही बन जाता है. कल रात उसका मन बहुत परेशान हो गया था घर की याद आ रही थी. उसे नहीं लगता कि एक साल वह यहाँ रह पायेगी. उसे याद आया, बाजार से अंतर्देशीय पत्र लाने हैं, सभी को जवाब देने हैं.

अभी उसे दशाश्वमेधघाट जाना है, माँ के साथ टहलने व कुछ सब्जी लेने. कल नन्हें को लेकर पहली बार गयी खिलौने की दुकान में, हर बार वे तीनों साथ होते थे. घर लाते ही एक पंख खराब भी कर दिया पर उसकी खुशी, उसकी आँखों की चमक, खिलौने की दुकान पर जाने का उसका अनुभव भी तो बहुत है, उसे जैसी कार चाहिए थी वैसी नहीं मिली. कल जून, बड़ी भाभी व बड़ी ननद के पत्र आए. जून को उसकी याद उतनी नहीं आती जितनी उसे या वह लिखता नहीं है. उसका पर्स खाली होता जा रहा है, उसे लिखे या पहले वह.

थोड़ी देर पूर्व ही वह पढ़ने बैठी है, पर ऑंखें हैं कि साथ नहीं दे रही हैं. आधा घंटा और बैठकर वह खाना बनाने ऊपर किचन में जायेगी. नन्हें को जो जहाज ले दिया था, खराब कर दिया है उसने, क्या यह धन की अपव्ययता है, शायद नहीं, थोड़ी देर के लिये उसकी खुशी से कीमत वसूल हो गयी. पर ऐसी थोड़ी देर की खुशी कम कीमत के खिलौने से भी मिल सकती थी. खैर जो हुआ सो हुआ. अब उसके पापा ही खरीद देंगे उसे. कल एक पत्र और लिखा, कुल छह पत्र लिख चुकी है पर जवाब एक का ही, कहाँ जाते हैं उसके खत. माँ आज फिर बहुत उदास हैं, उनके मन की क्या अवस्था है वह नहीं जान सकती, पर कब तक, आखिर कब तक वह यूँ निष्क्रियता का आवरण ओढ़े रहेंगी, उदासीन होकर कितने दिन जिया जा सकता है, मन को खुश रखना पड़ता है, उसके लिए कोशिश करनी पडती है, मगर कोई चाहे तब तो.

गंगा घाट पर सुबह की सैर



आज उन्हें यहाँ पूरा एक हफ्ता हो गया, बाजार गयी थी, किताब तो मिली नहीं..कला संकाय के लिए थी वह किताब वैसे फार्म में तो ऐसा कोई वर्गीकरण नहीं था. अगले हफ्ते विज्ञान संकाय की पुस्तक भी आ जायेगी ऐसा दुकानदार ने कहा तो है. कल रात उसने पत्र लिखा, कल संभवतः उसका पत्र भी आयेगा, थोड़ा-थोड़ा गुस्सा तो वह जरूर होगा न..पर लगता है इस गुस्से में भी एक अजीब तरह की मिठास है, प्यार है. मौसम भी आज अच्छा रहा और यहाँ सभी का व्यवहार सभी के प्रति बहुत अच्छा है. स्नेह भरा, ऐसे वातावरण में रहकर ही वह बड़ा हुआ है. तभी उसका दिल भरा हुआ है प्यार से. आज दोपहर को उसके एक मित्र अपनी पत्नी के साथ आए थे, कुछ देर रुके फिर चले गए.

कल दोपहर और कल रात भी अपने घर की बहुत याद आयी. नन्हे को सुलाना था कि मेहमान आ गए. वह इतनी जिद करता है पर उसे यहाँ डांटा नहीं जा सकता, सब उसकी पैरवी करने लगते हैं. सोचा है आज से कम से कम वह तो समय से भोजन कर लेगी. और सोनू को भी साढ़े नौ बजे तक सुला देगी. ग्यारह बजे रात तक जागना उसके लिए ठीक नहीं है. इस समय सुबह के छह बजे हैं, कुछ देर पूर्व माँ को उठया गंगा जी जाने के लिए, पर शायद वह उठना नहीं चाह रही हैं. लगता है कल रात वर्षा हुई, अभी भी हवा में ठंडक है.

कल उनका असम जाने के बाद पहला खत आया. गोहाटी से भेजा है. उनकी ट्रेन १२ घंटे देर से पहुंची, सो शनिवार को दफ्तर नहीं जा सके. दूसरे खत से मालूम होगा कि सीएल की जगह पीएल तो नहीं लेनी पड़ी. अब जबकि वह दूर है तो इतना याद आता है, इतना ख्याल रहता है उसका और जब वह नजदीक था उसे...चलो अब मिलने पर सारी शिकायतें दूर हो जाएँगी. घाट तक माँ के साथ घूमने जाना है पर वह हैं कि आ ही नहीं रही हैं. लगता है वह मन से जाना नहीं चाहती हैं टालना चाहती है, हम सभी के कहने पर. बेमन से हाँ कह देती हैं. वह चाहती है कि जल्दी जाकर जल्दी लौट आये जिससे नन्हा सोया रहे जब तक वे आयें. कल का दिन सामान्य था, हाँ, चिट्ठी आयी यह बात तो थी.

डायरी लिखती है पर कल ध्यान ही नहीं था तिथि कौन सी है, कल ड्राईक्लीनर से साड़ियां मिलनीं  थीं, आज सुबह तो माँ बीस मिनट में ही तैयार हो गयीं, मगर पन्द्रह मिनट में ही वे लोग लौट आये, अखबार लेने का मन हुआ पर पर्स नहीं ले गयी थी. कल रात स्वप्न में जून को देखा, उसे भी आते होंगे ऐसे स्वप्न, अगर वह उसे एक बार लिख दे कि अप्रैल में आ जाये तो वह आ जायेगा पर वह ऐसा नहीं करेगी. वे जून में ही मिलेंगे. और उसके बाद अक्तूबर में. यहाँ सब ठीक चल रहा है. माँ कभी कभी पुरानी बातें दोहराने बैठ जाती हैं, और जानबूझ कर उदास होती हैं, जैसे दुखी होना उनके लिए जरूरी हो. पिता ठीक रहते हैं समझ गए हैं और ननद भी. अभी विशेष गर्मी शुरू नहीं हुई है, सुबह-शाम मौसम बेहद अच्छा रहता है.



Monday, September 10, 2012

रेल यात्रा



कल जून ने उसे ‘शांतला पट्ट महादेवी’ उपन्यास के चारों भाग लाकर दिए. कुछ वर्ष पूर्व इसका एक भाग उसने पढ़ा था, आगे पढ़ने की बहुत इच्छा मन में थी. कहीं मिला ही नहीं, और अब पढ़ने बैठती है तो किताब छोड़ने का मन ही नहीं होता. कल शाम वे काली बाड़ी गए. सोनू को बहुत अच्छा लगा बाद में बाजार गए फिर एक परिचित के यहाँ बहुत दिनों के बाद. उनके यहाँ जाकर अच्छा लगा, स्वच्छता नहीं थी न बैठक में न शयन कक्ष में पर किचन साफ था. आश्चर्य है किसी के यहाँ की सफाई पर टिप्पणी करने का उसका कभी इरादा नहीं हुआ, शायद वह दूसरे धर्म का है इसलिए..
आज फिर एक लम्बे अंतराल के बाद डायरी लेकर बैठी है, जून ने जो किताबें लाकर दी थीं, पढ़ती रही लगातार, चारों भाग समाप्त कर दिए. उन दिनों तो समय का भान ही नहीं था. बहुत अच्छा लगा ‘सी. नागराजन’ का यह उपन्यास. शांतला का चरित्र कितना महान था, कितना अद्भुत, सबसे अच्छी बात उसे यह लगी कि अपने मन की शांति खोना न खोना हमारे अपने वश में है. कल उन्हें जाना है, तिनसुकिया से ट्रेन पकडनी है, तैयारी अभी आधी ही हुई है. एक परिचित माँ-बेटी भी उनके साथ जाएँगी, उन्हे दिल्ली जाना है. पहली बार गर्मी के मौसम में वे घर जा रहे हैं. सुबह से ही वह व्यस्त है, अभी दोपहर के भोजन में एक घंटा शेष है, काम करते-करते उसे थोड़ी भूख महसूस हुई, सोचा बिस्किट ही खा ले तब तक. कुछ देर पूर्व बंगाली सखी से मिलकर आयी.

आज फिर एक सप्ताह बाद डायरी लिखने का सुयोग मिला है. जून उसे और नन्हे को छोडकर वापस चले गए हैं. उनके जाने के एक दिन पहले उसका व्यवहार उनके प्रति अच्छा नहीं कहा जा सकता पर वह मन से विवश थी. ऐसे वातावरण में उस स्थिति की कल्पना भी दुष्कर थी. पर यह तो स्पष्ट है कि जाते समय वह नाराज नहीं थे. आज वह गोहाटी में होंगे, पत्र लिखेंगे, वह भी लिख रही है. सोनू यहां खुश है. उसका मन भी स्थिर है. अच्छा लग रहा है यहाँ रहना.

जून आज सुबह दफ्तर गए होंगे वापस जाकर. पता नहीं उसने गोहाटी से भेजे पत्र में क्या लिखा है, उसे लिखा है या नहीं, पर वह उसकी तरह हृदयहीन नहीं है न ही उसकी तरह स्वार्थी है. स्वार्थवश ही तो उसने ऐसा व्यवहार किया था या प्रेमवश. शायद प्रेमवश ही. उससे अलग रहना कहीं गहरे चुभ रहा होगा न..तभी तो. प्यार कभी मरता नहीं, कभी कम नहीं होता, कुछ भी नहीं बदलता. नन्हे को अपने पापा की याद नहीं सताती, वह अपने दोस्तों में खुश है. काफी देर से बिजली नदारद है.



   


स्ट्राबेरी आइसक्रीम+पाइन एपल केक



Staying ok अच्छी किताब है, अभी तो आधा ही पढ़ा है और अभी पूरी तरह लगकर जिसे पढ़ना कहते हैं, उस तरह नहीं पढ़ पाती है, फिर भी मन में कहीं अंदर तक छू जाती हैं उसमें लिखी बातें, व उदाहरण. Family medical guide भी जून ने लाकर दी थी जब वह अस्वस्थ थी, अभी उसे भी पढ़ा नहीं है. कल जून फिर गया, जन्मदिन वाले घर में, बुलाया सभी को था, पर उसने कहा कि बासी भोजन सोनू व उसके लिए ठीक नहीं है, नूना को याद आया, वह कहना भूल गयी कि उसके लिए भी तो ठीक नहीं है, पेट के भारीपन की शिकायत वह भी तो कर रहा था. उन्हें आधा मीटर कपड़ा भी और देना है, उसकी बेटी की फ्रॉक के लिए जो उपहार में उन्होंने दिया, वैसा ही. उसकी सखी उनके घर नहीं आती, यह बात उसे अच्छी नहीं लगती, उसे अच्छी लगती होगी तभी वह ऐसा करती है, और अब कहीं दूसरी मित्र भी आना बंद न कर दे, उस दिन वह जबरदस्ती उसके यहाँ से गुलाब की कटिंग जो ले आयी थी. खैर...यही दुनिया है, यहाँ रूठना-मनाना तो चलता ही रहता है.

असम बंद के कारण आज दफ्तर बंद है, जून घर पर ही हैं. कल से ही बोडो का १९९ घंट का बंद भी शुरू हो गया है, देश में सबसे अधिक बंद असम में ही होते हैं. कल शाम वे उनके घर गए, पर वहाँ बैठना उसे अच्छा नहीं लग रहा था, उसकी सखी का ठंडा व्यवहार...शायद यह उसके मन का भ्रम हो.

आज देश के ५०० शहरों में नेहरु जन्मशती दौड़ हो रही है, दस लाख लोग दौड़ रहे होंगे इस वक्त. वह एक मित्र के लिए स्वेटर बना रही है. नन्हे के रोने की आवाज आयी तो वह बाहर गयी, देखा पडोस की उड़िया आंटी का हाथ पकड़े रोते-रोते वह आ रहा है, दूध वाले ने उससे कहा कि वह अपने साथ लेकर जायेगा तो वह डर कर रोने लगा. कुछ देर पूर्व ही गया था उनके घर. आज शाम को उन्हें एक और पार्टी में जाना है.

स्वप्न झरे फूल से
गीत चुभे शूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे
अपनी जिंदगी पर नजर दौड़ाए तो यही दीखता है उसे. टीवी पर कुछ देर पहले स्ट्राबेरी आइसक्रीम और पाइन एपल केक बनाने का तरीका देखा, अच्छी तरह बताया है और तरीका भी आसान है. प्रेशर कुकर में भी केक बनाया जा सकता है, उन्होंने कभी प्रयास ही नहीं किया था.

आज उनके विवाह को पूरे चार वर्ष दो महीने हो गए. कल दोपहर बाहर लॉन में बैठकर Staying ok एक घंटा तक  पढ़ी. बेहद अच्छा लगा. सम्भव हुआ तो आज भी पढ़ेगी और हो सका तो भविष्य में भी. आज उसने बालों में शैम्पू किया है, शायद आज हेयर ड्रेसर के पास जाये, कभी सोचती है उसे बाल बढ़ाने चाहिए, पर ज्यादा लम्बे बाल तो उसके होते नहीं, अभी तक कुछ निश्चय नहीं कर पाई है कि...खैर देखा जायेगा. नन्हा उठकर बाहर आ गया है जहां वह बैठी है, नाश्ता करके वह बायीं ओर के साथ वाले घर में उससे एक साल छोटे बच्चे के साथ खेलने चला गया है, और वह यहाँ बैठी है कुछ सोचती हुई, दस-ग्यारह दिनों के बाद उन्हें जाना है, कल जून का मूड ऑफ था, बेहद उदास दिख रहे थे, उसके सिर में दर्द भी था शायद यही कारण रहा हो, या फिर घर की याद आ रही हो. पापा-माँ के बारे में वह उससे बात तो नहीं करते हैं, लेकिन मन में सोचते जरूर रहते हैं. इस हफ्ते के पत्र अभी लिखने शेष हैं, अभी लिखेगी. महरी अभी आई नहीं, सो बर्तन साफ होने के बाद ही खाना बनेगा. दीदी ने उसके पत्र का जवाब इस बार बहुत जल्दी दे दिया है. उसने सोचा, वह बनारस जायेगी तो अपनी किताबें भी ले जायेगी और वहाँ भी एक निश्चित दिनचर्या बना लेगी उसके अनुसार कार्य करने से परेशानी कम होगी और कार्य भी ज्यादा हो सकेगा.  



   



Saturday, September 8, 2012

गुलाब की कटिंग



आज उसकी नाराज सखी अपने परिवार के साथ घर गयी है, उसने सोचा, जब वह वापस आयेगी तब शायद भूल जाये और उनके सम्बन्ध पहले की तरह हो जाएँ. आज फिर वर्षा हो रही है, ठंड भी बहुत है, बिल्कुल पालक के पकौड़े खाने का मौसम है. लेकिन वे बाजार नहीं जा पाएंगे, कल भी नहीं जा पाए थे. नन्हे ने आज ठीक से भोजन नहीं किया, इसी से वह जान जाती है कि उसकी तबियत कुछ नासाज है. जल्दी ही सो भी गया आज. कल शाम वे एक परिवार से मिलने गए, गृहणी को  अच्छा नहीं लगा कि वह बनारस में रहकर पढाई करे, जून चाहते हैं कि अगले माह मार्च में जब वे वहाँ जाएँ उसके बाद वह और सोनू वहीं रुक जायें, जून में प्रवेश परीक्षा है. उसके बाद वापस आने का कोई औचित्य नहीं. खैर भविष्य में जो होगा उसके लिए क्या चिंतित होना, फ़िलहाल उसे आज की बात सोचनी चाहिए, उसने सोचा.

आज कई दिनों के बाद वह लिख रही है, अस्वस्थ थी, अभी भी पूरी तरह स्वस्थ है, ऐसा नहीं कह सकती. आज शनिवार है, संभवतः सोमवार से अपनी पुरानी दिनचर्या आरम्भ कर सके. नन्हा अभी सो रहा है, साढ़े आठ बजे हैं सुबह के, हाफ डे के कारण जून जब दोपहर को सोना चाहेंगे तो सोने नहीं देगा, धूप भी पड़ रही है उस पर खिड़की से, पर कैसे ठाठ से सोया है, जैसे सुबह अलार्म सुनने के बाद भी जून सोये रहते हैं. कई पत्रों के जवाब देने हैं, आज सभी को लिखेगी. कल उसकी मित्र आ गयी, उसकी और से, मित्रता रहे, ऐसी कोई चेष्टा या भाव नजर नहीं आता, जून ने उसे जबरदस्ती भेजा उन्हें भोजन पर बुलाने के लिए, पर वे लोग नहीं आये.

कल शाम नाश्ते में उन्होंने आलू के परांठे खाए, आलू पहले का था शायद इसलिए रात तक जी भारी रहा दोनों का, टिफिन में हल्का नाश्ता ही ठीक रहता है उनके लिए. नन्हा सोया है, कभी-कभी बेहिसाब, असीम प्यार आता है उस पर, उसकी भोली बातों पर. मौसम में गर्मी का पुट आता जा रहा है, अब स्नान करने के बाद स्वेटर पहनने की आवश्यकता महसूस नहीं होती. आज सुबह उसने बहुत दिनों बाद घर के सामने गली में कई चक्कर लगाये, प्रातः कालीन शीतल पवन का आस्वादन किया तभी मन उसका शांत है. सब कुछ ठीकठाक चल रहा हो तो वैसे भी मन शांत रहता है, उसे ध्यान आया, बनारस में वे लोग कैसे होंगे, अब तो दुर्घटना को चार महीने हो गए हैं, पर यह वक्त बहुत थोडा है.

मार्च का महीना, यानि फूलों का महीना. आज मार्च का प्रथम दिन है, खिली-खिली धूप है और वातावरण में है खुनकी सी, नन्हा उठ गया है पर बेड पर लेटे-लेटे ही टीवी देख रहा है. उसके गीले बाल जरा सूख जाएँ तब भीतर जायेगी. कल एक सखी से उसने गुलाब की कटिंग मांगी, जो उनके यहाँ से कितने सारे पौधे ले कर गयी है, पर उसने महसूस किया कि देने में उसे बहुत अड़चन हो रही थी. उसने निर्णय किया कि अब किसी से कुछ नहीं मांगेगी. आज उन्हें एक मित्र के यहाँ जाना है, उनकी बेटी का जन्मदिन है, उसी की तैयारी में थोड़ी सहायता करने.  मौसम के अनुसार मूड भी बदल जाता है तो कल से जून ने गर्मी मनानी शुरू कर दी है, अब देखें उनका रवैया कैसा रहता है, गर्म पानी नहीं आता है आजकल, टंकी में पानी चढ़ ही नहीं पाता है. टीवी पर नन्हे का मनपसंद कार्यक्रम ‘नमूने’ आ रहा है. कल जन्मदिन की पार्टी में उसका एक नई महिला से परिचय हुआ, बातचीत से सहयोग करने वाली लगी, उसके यहाँ भी पार्टी है, उसने सोचा पूछेगी, क्या उसे कोई सहायता चाहिए.




Thursday, September 6, 2012

फिर फिर बरसे बदली-बादल




फिर बदली छाई है आज, बस दो दिन धूप निकली, ठंड भी कितनी बढ़ गयी है. कल शाम वह थोड़ी देर के लिये उदास हो गयी थी फिर सोनू की किसी बात पर हँसी तो बस... जैसे सारी उदासी छंट गयी. उसे थोड़ा सा प्यार करो तो कैसा खुश हो जाता है, नन्हा फरिश्ता ही तो है वह उसका, कितनी प्यारी-प्यारी बातें करता है और कितने नए-नए तरीके से. आज से वह उसे कभी नहीं डांटेगी, जब तक कि बहुत ही जरूरी न हो. प्यार से सब समझ जाता है पर जब देखता है कि उसका मूड ठीक नहीं है, तो वह भी रुख बदल लेता है. आज शाम उन्हें किसी परिचित के यहाँ जाना है, वे लेने आएँगे. जून परसों आ जायेंगे घर फिर से भर जायेगा, उन्हें कहीं आने-जाने की जरूरत नहीं रहेगी, उनका छोटा सा घर और वे तीनों. देखें वह बनारस की क्या खबर लाते हैं, उसने सोचा.

कल लगभग सारा दिन उन्होंने बाहर बिताया, सुबह नौ बजे ही उसकी मित्र का फोन आ गया था, वह बारह बजे वहाँ पहुंच गयी, शाम को पांच बजे लौटी. अच्छा रहा पूरा वक्त, नन्हा खेल रहा था उनकी बेटी के साथ, एक बार भी नहीं रोया, वही रोई तीन-चार बार, जैसी की उसकी आदत है. उसकी एक दूसरी मित्र कुछ नाराज दिखी, उसे अजीब लगा, स्वार्थ के लिए मनुष्य कितना गिर सकता है, इतने वषों की मित्रता का भी उसे ख्याल नहीं आया. उसके भीतर एक उदासी छा गयी है. सब कुछ कितना पीछे छूट गया सा लगता है, लगता है यहाँ अकेले है, एकांत चाहने पर अकेलेपन से भय तो नहीं लगना चाहिए न, लगता है कोई कमी है जरूर, नहीं तो दिल में कांटे की तरह न चुभती छोटी सी बात.

परसों जून आ गए, सुबह ही आ गये थे नाईट सुपर से, दिल्ली का ट्रिप एक तरह से व्यर्थ ही गया, इतनी तकलीफें उठानी पडीं सो अलग, हाँ यह अच्छा हुआ कि बनारस होकर सबसे मिलकर आ गए. बताया कि माँ अभी भी पूर्ववत बनी हुई हैं, उदास रहती हैं, माँ का हृदय होता ही ऐसा है, या कहें स्त्री का हृदय. वे लोग अगले माह वहाँ जायेंगे. आज फिर मौसम बादलों भरा है. असम को सच ही वर्षा का घर कहते हैं. जून जब यहाँ नहीं थे, उनके विभाग के किसी अधिकारी ने बॉस को बताने की कोशिश की थी की वह इंटरव्यू के लिए गए हैं न कि घर. यह दुनिया स्वार्थी लोगों से भरी हुई है.. कल देवर की एक मित्र की चिट्ठी पढ़ी, कैसा लगता है किसी अदृश्य व्यक्ति के नाम लिखा कुछ पढ़ना, वह होता तो कितनी बातें सोचता, पढ़कर जवाब देता, फिर सिलसिला चलता रहता अब तो एक तरफा खालीपन है जो कितनी आवाजें दो, जवाब में कुछ नहीं भेजेगा. एकाएक उसे ध्यान आया आज फार्म में लगाने के लिए फोटो खिंचाने उसे स्टूडियो जाना पड़ेगा, वह लिखना छोड़ कर काम में लग गयी.



Wednesday, September 5, 2012

चन्द्रकान्ता -देवकीनंदन खत्री


कल वे चले गए, अभी तो ट्रेन में होंगे, कल शाम को जाकर पहुंचेंगे. कल से समय अच्छा ही बीत रहा है, शाम को उसकी सखी आ गयी थी, उसके पति भी दिल्ली गए हैं. सुबह वह उसके घर गयी और अभी वह फिर आयेगी. सुबह से लगातार होती वर्षा के कारण मौसम बहुत ठंडा हो गया है. जून कह कर गए हैं कि वह दोनों घरों पर पत्र लिख दे. नन्हा अभी सो रहा है, कितना शरारती है, मगर कितना प्यारा है, डांट खाकर भी उसके निकट आ कर सो जाता है. अभी कुछ देर पहले एक मराठी फिल्म देखी, अच्छी थी. आज इतवार है, टीवी देखने में ही समय गुजर जाता है, पढ़ाई कुछ विशेष नहीं हो पा रही है. जून कल दो किताबें लाए थे, हिंदी उपन्यास- चन्द्रकान्ता और गोरा. पढ़ना शुरू करेगी तो समाप्त किये बिना मन नहीं मानेगा. कितने दिन हो गए हिंदी की कोई पुस्तक पढ़े हुए. उसने सोचा यदि जून इंटरव्यू में सफल हो जाते हैं तो...भविष्य सुंदर दिखाई देता है, अपना घर अपना सब कुछ पांच-छह वर्षों में ही...नहीं तो जाने कितने बरस कम्पनी के मकान में कटेंगे बीस-तीस बरस, सोनू को भी तब अच्छे स्कूल में पढ़ा सकेंगे, स्वप्न कितने सुंदर होते हैं न, देखे सब्जी कहीं जल न जाये, उसे ध्यान आया..यह यथार्थ है.

कल दिन भर व्यस्त रही, शाम को उसकी दो सखियाँ आयीं थीं सबने एक साथ खाना खाया, उसे अच्छा लगा पता नहीं उन्हें कैसा लगा हो, दस बजे हैं, जून का इंटरव्यू होने ही वाला होगा. अभी चार-पांच दिन और लगेंगे उसको आने में, आज चौथा दिन है उसे गए. ‘गोरा’ उसने पूरी पढ़ ली, और किसी काम के लिये वक्त ही नहीं मिला. कल दिन भर वर्षा हुई, ओले भी गिरे, ऐसा लगा. आज आकाश बिल्कुल स्वच्छ है.

आज सुबह से उसमें सात्विक प्रवृत्ति का उदय हुआ है तभी तो सब कुछ भला-भला लग रहा है. दीदी को उस दिन पत्र में निराशा भरी बातें लिख दीं थीं, उसने सोचा एक पत्र और लिख दे. मौसम भी आज मन की तरह है साफ, स्वच्छ और शीतल. जून आज बनारस में होंगे. कल शाम उस भी खाना खाने के लिये बुलाया था, मगर सबके पहुँच जाने के बाद उसकी सखी ने बनाना आरम्भ किया, उसे बहुत भूख लग आयी थी, सफेद चने, पूरी और रोटी खाकर बहुत अच्छा लगा. कल रात उसने ‘चन्द्रकान्ता’ भी समाप्त कर दी, अब आज से अपनी पढ़ाई शुरू करेगी.