Thursday, August 9, 2012

बात बन जाये



कल दोपहर ‘कादम्बिनी’ पढ़ती रही, अच्छी पत्रिका  है और इसका रूप जरा भी नहीं बदला है, वही पहले वाला है, जब वह कॉलेज में थी तब हमेशा पढ़ती थी. कल वे फिर बाजार गए थे, पैसे तो इस तरह भागते हैं जैसे कैद से निकला चूहा, आज पांच तारीख है और आधा वेतन खर्च हो चुका है. शुक्रवार को क्लब में फिल्म थी ‘प्यार झुकता नहीं’ वे एक घंटा किसी तरह बैठकर लौट आये, नन्हा एक मिनट और नहीं बैठना चाहता था हॉल में, गर्मी भी बहुत थी.

उसका पेन आज ठीक से लिख नहीं रहा है, नन्हे ने गिरा दिया था शायद उसकी निब मुड़ गयी है. कल उसकी तबियत ठीक नहीं थी, ऐसे में वह छोटी-छोटी बातों को भी गम्भीरता से लेने लगती है. हल्का सा मजाक भी सहन नहीं कर पाती. तन के साथ मन भी कैसे टूटा टूटा सा रहता है और आँखें हैं कि हर वक्त भरी-भरी सी. जून ने उसे कुछ भी करने नहीं दिया, आज वह ठीक महसूस कर रही है, कल इतवार था, शाम को टीवी पर ‘बात बन जाये’ आयी थी, मजेदार थी और दोपहर की मलयालम फिल्म भी.

सुबह के साढ़े सात ही बजे हैं पर लग रहा है दिन चढ़ आया है. कल ननद व देवर के पत्र मिले, जवाब देना है, मंझले भाई का पत्र भी आया है. कल शाम वे काफ़ी दिनों के बाद घूमने गए. उसने सोचा कि नन्हे को दूध सोते में ही पिला दे तो क्या अच्छा हो ! उठने के बाद एक गिलास दूध पीने में कितना समय लगाता है. कल के संडे रिव्यू में पढ़ा कि दूध पीना ही अच्छा नहीं है, आश्चर्य है हजारों सालों से लोग दूध पीते आ रहे हैं. एक दिन कोई लिख देगा कि अनाज खाना व सब्जियां खाना ही अच्छा नहीं है, फिर तो आदमी हवा खाकर( वह भी तो प्रदूषित है) ही जिन्दा रहेगा.

कल जून ने कहा कि ऐसा भी क्या काम होता है उसे जो ग्यारह बज जाते हैं, तो आज सुबह के दस बजकर पांच मिनट ही हुए हैं और वह अपने सारे काम कर चुकी है. वह लिखने बैठी तो नन्हा क्यों पीछे रहता, उसे भी कापी पेन दिया है, लिख रहा है कुछ अपनी भाषा में. पर उसे वही पेन चाहिए जिससे वह लिख रही है, अपने हाथ पर कुछ लिख लिया है उसने और अब हाथ धोने गया है. बच्चे भी बस...आज सुबह गिलास से दूध न पीने के लिये कितनी जिद कर रहा था पर आखिर में पी ही गया, आज से उसकी बोतल बंद. कल वे पत्रिकाएँ लेने गए, बहुत भीड़ थी, पर उनकी पसंद की एक भी पत्रिका नहीं मिली, आज फिर जायेंगे, लाइब्रेरी भी जाना है, jean plaidy की एक और किताब लाने, Barbara cartland की भी.




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