Thursday, August 23, 2012

किताबों की दुनिया



सत्य, प्रिय, हितकर और दूसरे को उद्वेग न देने वाले वचनों को बोलना और स्वाध्याय वाणी का तप है. अभी भगवद् गीता के सत्रहवें अध्याय में यह श्लोक पढ़ा. पिछले कई दिनों से जब से उसने सुबह गीता पाठ में नियमितता बरती है उसकी वाणी कुछ कोमल होती जा रही है. जून को परेशान, दुखी करने वाले कई शब्द जो वह पहले हृदय हीनता का परिचय देती हुई कह जाती थी, कहीं विलीन हो गए. उसने फिर वही पुरानी दिनचर्या शुरू कर दी है, पहले स्नान, फिर पाठ, फिर डायरी और उसके बाद नन्हें का कार्य फिर भोजन बनाना. संभवतः आज सफाई कर्मचारी भी आये, पिछले हफ्ते बाढ़ के कारण नहीं आया. बाढ़ का प्रकोप अभी भी बना हुआ है, आज ही खबरों में सुना तेल का उत्पादन भी ठप है. कल इतवार शाम की फिल्म किरायेदार अच्छी थी और दोपहर की बंगला फिल्म फटिक चंद तो उससे भी अच्छी थी.

हफ्तों से घर से पत्र नहीं आया, पता नहीं क्या बात है. बल्कि कल छोटी बुआ का पत्र आया था, फूफाजी का स्वास्थ्य पहले से ठीक है. मौसम आज सुहाना है, पिछले हफ्ते उसे कॉमन कोल्ड हो गया था, कुछ करने का उत्साह नहीं था. जून ने उसी दिन दांत निकलवाया हा, उसे सूजन थी अब दोनों ठीक हैं.

वर्षा अभी भी हो रही है. ऐसा लगता है कि जब भी वह डायरी लेकर बैठी है वर्षा लगातार होती ही रही है. आज वे तिनसुकिया जायेंगे यदि तब तक मौसम ठीक हो गया. कल उसने हिमांशु श्रीवास्तव की किताब खत्म की, नई सुबह की धूप, अच्छी पुस्तक है, अब दूसरी पुस्तक निमाई भट्टाचार्य की मेमसाहब भी पढ़ेगी. बहुत दिनों पहले भी पढ़ी थी जब जून को पत्र लिखा करती थी, कुछ पंक्तियाँ उसमें से चुरा कर भी लिखी थीं. उसने सोचा देखें अब उन लाइनों का वैसा असर होता है यह नहीं. कल चित्रहार में साधना का नृत्य और यह गीत सुंदर था, ‘घेरे नजरें हसीं यानि तुम हो हसीं..’

कल वे तिनसुकिया गए थे, बाद में वर्षा थम गयी थी . अच्छा रहा ट्रिप, खूब खरीदारी की, वाल्मीकि रामायण, ओवन, कुकर, इडली स्टैंड, चप्पल तथा भुने हुए चने. शाम तक थकान हो गयी थी. आलू- गोभी की तहरी ही बनायी. आज अभी आठ बजने वाले हैं, नन्हा अभी सोया है, दस मिनट ही रामायण पाठ किया होगा कि घंटी बजी, स्वीपर आया था. एक दिन भी सफाई न हो तो घर कितना गंदा हो जाता है. सुबह रसोईघर साफ किया, कितनी चीटियाँ आ जाती हैं आजकल हर जगह. उन्होंने बैठक में एक शो केस कम बुक केस रखा है, कमरा कितना भर सा गया है, जून ने किताबें भी कितने करीने से लगायी हैं उसमें.    





1 comment:

  1. किताबों की अपनी एक अलग ही दुनिया है,और यह भी सच हैं कि बेहतर जिंदगी का रास्ता बेहतर किताबों से होकर जाता है|
    आभार...!

    मेरी पहली कहानी,आपके इन्तजार में-
    "सुगनी"

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