Monday, May 30, 2011

यादें और सपने


आज के दिन एक महीना पूर्व वे विवाह बंधन में बंधे थे, कितने वर्षों की अद्भुत प्रतीक्षा के बाद तो आया था यह दिन, अद्भुत इसलिए कि उन्होंने खुशी-खुशी बिताए थे ये वर्ष एक दूसरे की याद के सहारे, खतों के सहारे. आज वे सब कल की बातें लगती हैं. नूना को तो लगता है कि वे कब से यूँ ही एक साथ जिए चले जा रहे हैं. आज संभवतः घर से कोई खत भी आयेगा, आज ही के दिन वह उन सबको छोड़कर इस नए संसार में आयी थी, कितनी मधुर यादें हैं इस दिन की आँखें बंद करे तो... पर अभी वक्त नहीं है सपने देखने का... सपने तो वे साथ बैठकर देखेंगे ..अपने भविष्य के सुंदर सपने !

दोपहर के दो बजे हैं, मौसम ठंडा है. लगभग रोज ही ऐसा होता है. बादल बने ही रहते हैं, कभी बरस जाते हैं कभी यूँ ही चहलकदमी करते हैं और ताका करते हैं धरती को. पंछियों की आवाजों के अतिरिक्त कोई आवाज नहीं सुनाई दे रही, हाँ एक आवाज आ रही है फ्रिज की आवाज. कपड़े कब तक सूखेंगे पता नहीं शायद कल धूप निकल आये. ‘चिनार’ यह पुस्तक कल पढ़नी शुरू की थी, रात को तो कुछ पढ़ पाना संभव नहीं है, दोपहर का यही वक्त होता है. आज सुबह उसके जाने के बाद वह लेट गयी, सोचा पांच मिनट में उठती है पर नींद खुली महरी के आने के बाद, इतनी गहरी नींद आती है आजकल और सपनों में रोज ही सबको देखती है, मम्मी-पापा और छोटी बहन, जैसे तब इनको देखा करती थी. 
क्रमशः

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