Saturday, June 25, 2011

दादा जी


ल फिर पता नहीं क्या हुआ मुट्ठी में से रेत की तरह समय फिसल गया और नूना कुछ भी नहीं लिख सकी...वास्तव में यह लिखना अर्थयुक्त है या नहीं? किन्तु वह बिना इसकी परवाह किये अपने विवाहित जीवन के आरंभिक वर्ष की सुखद या कभी दुखद भी, घटनायें लिखती जायेगी, फिर साल दर साल बीतते जायेंगे... उन्हें यहाँ आये पूरे दो महीने दो दिन हो गए हैं. कल लाइब्रेरी में साप्ताहिक हिंदुस्तान व धर्मयुग के होली विशेषांक के कुछ भाग पढ़े, Captain Pascoe की एक मार्मिक कहानी Rose and Rainbow भी पढ़ी. कल सुबह वह बोला, नींद आ रही है, सो जाओ तुम भी, हाफ सीएल ले लेंगे, पहले भी कितनी बार वह ऐसा कहता है पर कल वह सचमुच बहुत थका लग रहा था सो पहली बार  वे पुनः सो गए और आठ बजे उठे, पर दिन भर भारीपन बना रहा. अब कभी वह उसे ऐसा नहीं करने देगी. उसने सोचा अब तक घर में सभी दादाजी की मृत्यु की घटना के दुःख से उबर चुके होंगे.  

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