रात्रि के पौने आठ बजे हैं. रात्रि भोजन हो चुका है.
कल गायत्री समूह की सदस्याएं 'सत्संग पिकनिक' का आयोजन कर रही हैं. उनके लॉन में
ही सब मिलेंगे. सभी अपने घर से कोई पकवान बना कर लायेंगी. भजन, नृत्य, 'सूर्य ध्यान'
के बाद भोजन, फिर वे मिलकर नन्हे के विवाह की व अन्य तस्वीरें देखेंगे. हाँ, पहले फूलों
को निहारने रोज गार्डन भी जायेंगे. आज सुबह वे टहलने गये तो देखा, बच्चों के पुराने
स्कूल का कुछ भाग गिरा दिया गया है. नये स्कूल का मुख्य द्वार अब स्पष्ट दिखाई
देता है. शाम को स्कूल की मीटिंग में गयी. क्लब की प्रेसिडेंट काफ़ी बदलाव ला रही
हैं. कुछ पुराने लोग जा रहे हैं, नये आ रहे हैं. स्कूल का भविष्य अच्छा नजर आ रहा है.
सुबह उसकी एक पुरानी हिंदी की छात्रा अपनी माँ के साथ मिलने आई. कोहिमा स्थित अपने
गाँव के चावल लायी थी और स्थानीय कला का एक
लकड़ी का कटोरा. उसने भी उसे एक उपहार दिया. अस्तित्त्व की उपस्थिति का अनुभव आज
शाम को योग साधना के दौरान हुआ और सुबह ध्यान में भी. परमात्मा उनके कितने करीब
है, उन्हें उसकी प्रतीति करनी है प्राप्ति नहीं, वह तो सदा ही सब जगह है !
आज का दिन स्मृति पटल पर एक सुखद अनुभव बनकर
अंकित हो गया है. उन्होंने ढेर सारी तस्वीरें उतारीं. भजन गाए, ध्यान किया, कई खेल
खेले. सभी लोग आये और स्वादिष्ट भोज्य पदार्थ लाये. उसने विवाह की तस्वीरें दिखाईं
तथा वह कविता भी सुनाई जो नन्हे के विवाह के अवसर पर पढ़ी थी. पिताजी से बात की,
धूप में बैठे थे. अब उनका स्वास्थ्य ठीक है पहले की अपेक्षा. आज गुरूजी को सुना, 'भक्ति
सूत्रों' पर उनकी व्याख्या पहले भी सुनी है. वह बहुत सरल भाषा में बोलते हैं,
अध्यात्म को बिलकुल सहज बना दिया है उन्होंने. जून की फरमाइश पर मूड़ी के लड्डू
बनाये आज. कल लोहरी है.
आज पूरे उत्तर भारत में लोहरी का उत्सव मनाया जा
रहा है. नये वर्ष का प्रथम उत्सव ! उन्होंने भी अग्नि जलाई, एक मित्र परिवार आया
था. मूंगफली, फुल्ले, लड्डू, गजक खाने खिलाने का दिन. कल मकर संक्रांति है, यानि
पतंग उड़ाने का दिन. कल इतवार है और परसों जून का अवकाश है, वे डिब्रूगढ़ का
जगन्ननाथ मंदिर देखने जायेंगे तथा मन्दिर के निकट स्थित पार्क में भी. आज दोपहर को
तिनसुकिया गये थे. सुबह नींद खुली पर दस मिनट तक उठने का मन नहीं हुआ, उस समय मन
कितना शांत होता है. जब देह बिलकुल निस्पंद होती है, मन भी रुक जाता है. दोपहर को
योग दर्शन पुनः पढ़ना आरम्भ किया. चित्त की अवस्थाओं का वर्णन पढ़ा आज.
आज सुबह टहलने गये तो हर तरफ धुआं
था, कोहरा और धुआं मिलकर धुंधलका फैला रहे थे. क्लब में सुबह मेजी जलाई गयी थी,
आवाजें आ रही थीं. इस समय शाम के साढ़े पांच बजे हैं. वे भ्रमण पथ पर टहल कर आये
हैं. उससे पूर्व गमले से तोड़े एलोवेरा का जूस बनाया लौकी और आंवले के साथ. आधा
घंटा बैडमिंटन खेला. नन्हा आज नये घर गया है. दो वर्ष बाद जनवरी तक तो वे वहाँ रह
रहे होंगे, यानि बस एक और लोहरी उन्हें असम में मनानी है.
सुबह नींद खुली पर दस मिनट तक उठने का मन नहीं हुआ, उस समय मन कितना शांत होता है. जब देह बिलकुल निस्पंद होती है, मन भी रुक जाता है. मैं भी इस दस मिनट की अनुभूति को लिये बिना बिस्तर नही छोड़ती हूँ । ये अब एक नियम बन गया है।
ReplyDeleteवाह ! कितना साम्य है हमारी अनुभूतियों में...स्वागत व आभार दीदी !
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30 -06-2019) को "पीड़ा का अर्थशास्त्र" (चर्चा अंक- 3382) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी