रात्रि के आठ बजे हैं. आज सुबह मृणाल ज्योति गयी. नये
वर्ष का कैलेंडर और डायरी लेकर गयी थी, और क्लब के कुछ सदस्यों का दिया सामान भी. रास्ते
में व्हाट्स एप पर कितने ही सुंदर संदेश पढ़े, जीवन का हर पल शुभ हो, मन अहंकार से
मुक्त रहे, न मोह का शिकार हो न दैन्यभाव का. कोई पाखंड जीवन में रहे. योग में
स्थित रहे बुद्धि और आत्मभाव कभी भी विस्मृत न हो. योग की महिमा को स्वयं जानकर व
अनुभव करके वे अन्यों को भी बताएं. परस्पर आदान-प्रदान से प्रीति भी बढ़ती है.
सुबह के सवा आठ बजे हैं. सुबह से सुवचनों को सुनकर
मन-प्राण शांति का अनुभव कर रहे हैं. आत्मा सदा ही परमात्मा के सान्निध्य में है.
मन जो आत्मा रूपी सागर की ही एक लहर है सदा अपना राग अलापता रहता है. यदि उसे यह
ज्ञात हो जाये कि उसका मूल अनंत है तो वह अपनी क्षुद्रता को भूल जायेगा और अपने
भीतर ही विश्राम का अनुभव कर लेगा. अनंत स्वरूप का विस्मरण ही उन्हें दुःख की ओर
ले जाता है तथा मन में कामना का उदय होना ही उसे विस्मृत करा देता है. कामना पूर्व
संस्कार से उत्पन्न होती है. भीतर जो संस्कार हैं उनसे मुक्त होने का उपाय ध्यान
है और समाधि का अनुभव. मन जब तक भय, लोभ, ईर्ष्या और द्वेष के संस्कारों से मुक्त नहीं होगा, तब तक कोई न कोई संस्कार
सिर उठाता रहेगा और आत्मा व्यर्थ ही दुखी होती रहेगी. जिसका खामियाजा देह को भी
उठाना पड़ता है. विनाशकाले विपरीत बुद्धि होती है सो उस वक्त ज्ञान की बाते भी नहीं
भातीं.
रात्रि के पौने आठ बजे हैं. सोनू से बात हुई.
उसने पिता जी व मंझले भाई से बात की, वह रिश्ते निभाना जानती है. दीदी वहाँ पहुँच
गयी हैं. दो दिन रुकेंगी, फिर बड़े भाई आ जायेंगे. सभी भाई-बहन मिलजुल कर पिताजी की
देखभाल कर रहे हैं. आज काव्यालय पर लिखा. जून कल गोहाटी जा रहे हैं. दोपहर को देर
से आये. आयकर भरने के लिए सीए के साथ घंटों बैठे रहे, अभी भी काम पूरा नहीं हुआ
है. अख़बार वाले ने टाइम्स ऑफ़ इण्डिया की जगह आज टेलीग्राफ दे दिया है, बहुत दिनों
बाद जम्बल पहेली हल की.
हर दिन पूर्व से अलग होता है. हर दिन की शुरुआत
भी अलग होती है और समाप्ति भी. आज का दिन फोन पर सबसे बातें करते ही बीता है. सुबह
पांच बजे से थोडा पहले उठी. टहलने गयी. गुरूजी को सुना, ज्ञान प्राप्ति के चार
साधन-विवेक, वैराग्य, षट सम्पत्ति व मुमुक्षत्व ! मन प्रसन्न हो गया. पिताजी से
बात हुई. कल रात उन्हें फिर तेज दर्द हुआ. लगता है दिल की ही समस्या है उन्हें.
दीदी, बड़े भाई, दोनों भाभियों सभी से बात हुई. वृद्धावस्था में व्यक्ति कितना असहाय
हो जाता है. आगे कोई मार्ग नहीं सूझता. देह साथ नहीं देती. ऐसे में घर वालों का
साथ ही उसका सम्बल होता है. उसे भी एक बार वहाँ जाना है, पर उससे पूर्व स्वयं को
पूर्ण स्वस्थ करना होगा. इस समय काफ़ी ठीक है.
सुबह ग्यारह बजे जून आ गये थे. लंच में उनकी
पसंद की कढ़ी बनाई. उससे पूर्व साप्ताहिक सफाई. सुबह रोज की तरह थी पर एक खास बात
हुई. कल रात पहले समाचार सुनते हुए, फिर सर्वेंट लाइन में होते झगड़े की आवाजों के
कारण देर से सोयी. सुबह नींद खुली तो झट उठने का मन नहीं हुआ. स्वप्न और जागरण के
मध्य की स्थिति थी कि अचानक सिर के पीछे किसी के श्वास लेने की आवाज आई और अगले ही
क्षण ऐसा लगा जैसे जून रजाई ओढ़कर धीरे से आकर लेट गये. उसे आश्चर्य हुआ, दरवाजे पर
ताला लगा है, वह अंदर कैसे आये, आंख खुल गयी और वहाँ कोई नहीं था, स्वप्न टूट गया.
कितना सजीव था वह दृश्य, कितना वास्तविक लग रहा था. इसी तरह जो उन्हें जगते हुए वास्तविक लगता है एक स्वप्न ही है ऐसा ही
तो संत कहते हैं. रात्रि के पौने नौ बजे हैं, टीवी पर तारक मेहता..आ रहा है. डिनर
में मकई की रोटी के साथ कच्चे केले का चोखा बनाया. नैनी ने मेथी काट दी है, कल
सुबह उड़द दाल की बड़ी बनानी है.
रोज की दिनचर्या लिखने में भी एक लय है जैसे जीवन जीते जाने में भी....
ReplyDeleteस्वागत व आभार वाणी जी !
Deleteसुंदर।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteवाह स्वप्न और साक्षात का अपूर्व संयोग।
ReplyDeleteअप्रतिम।
स्वागत व आभर !
Deleteबहुत बहुत आभार !
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