आज उच्च स्तरीय कमेटी के लिए नये अतिथि गृह में विशेष भोज का
आयोजन किया गया है. उन्हें भी जाना है. सभी उच्च अधिकारी भी उपस्थित होंगे. सुबह
चार घंटे उनमें से एक विशिष्ट महिला अतिथि के साथ बिताये, साथ में क्लब की
प्रेसिडेंट भी थीं और एक अन्य अधिकारी की पत्नी. उन्हें लेकर ड्रिलिंग साइट पर भी
गये. तेल के कुँओं की ड्रिलिंग कैसे होती है, नजदीक से देखा, समझा. आज सुबह उनके
लिए एक कविता लखी थी. उनके पति देश के जाने-माने वैज्ञानिक हैं, उनकी उम्र सत्तर
पार कर चुकी है पर अभी तक कार्यरत हैं. क्लब की प्रेसिडेंट के साथ काम करना अच्छा
लग रहा है, वह काफ़ी जानकारी रखती हैं और कम्पनी को अपने परिवार की तरह मानती हैं.
आज सुबह शीतल थी पर अब धूप निकली है. बंगाली सखी
से बात हुई. वे लोग पुरानी बातों को दिल से लगाकर बैठे हुए हैं, कहने लगी, समय के
साथ भी कुछ घाव भरते नहीं हैं. उसकी आवाज आज दो बार ऊँची हुई, एक बार फोन पर उस
बात करते हुए दूसरी बार नैनी को समझाते हुए, जिसे 'हाँ' बोलने की आदत है, बिना बात
को समझे 'हाँ' बोल देती है. उसे जो क्रोध अथवा रोष बंगाली सखी से बात करके हुआ संभवतः
वही नैनी पर उतर गया और फिर मन खाली हो गया. स्वयं को जाने बिना कैसे रहते होंगे
लोग, अब आश्चर्य होता है. कुछ देर पहले मृणाल ज्योति से आयी है, वहाँ एक नया दफ्तर
बन गया है. अब नई कक्षाओं के लिए जगह मिलेगी. स्कूल आगे बढ़ रहा है, अल्प ही सही
उसका कुछ योगदान है इसमें. अगले शनिवार को वे इस समय बंगलौर में होंगे, उसके बाद
लगभग एक महीना एक स्वप्न की भांति बीत जायेगा. आज ब्लॉग पर अभी तक तो कुछ नहीं लिखा
है. अब जो भी सायास होता है वह नहीं भाता, जो सहज ही होता है, वही ठीक है.
कल दिन भर व्यस्तता बनी रही. सुबह स्कूल, वापस
आकर क्लब, शाम को पहले योग कक्षा, फिर क्लब. कार्यक्रम सभी बहुत अच्छे थे, वे
जल्दी घर आ गये. जून ने दो बार फोन किया. परसों रात को स्वप्न देखा था, वह आँखें
बंद करके उसके साथ चल रही है. एक स्थान पर जाकर आँख खोलती है तो घुप अँधेरा है. वह
उससे कहती है, यह रास्ता ठीक नहीं है, वापस चलो. उसने हामी भरी. फिर वह उस पर
भरोसा करके आँख मूंद लेती है पर जब वे लक्ष्य पर पहुंचते हैं तो वहाँ का दृश्य ही अलग
है. वह पूछती है, मार्ग नहीं बदला था, वह कहता है, नहीं. यह स्वप्न क्या बताता है...
कल कुछ नहीं लिखा. आज यात्रा से पहले का अंतिम
दिन है. जून आज घर जल्दी आ गये हैं. मौसम बदली भरा है. मौसम में फेरबदल तो चलता
रहता है पर आत्मा का मौसम सदा एक सा रहता है. जैसे पानी पर लकीर हो उतनी ही देर यदि
मन का मौसम बदले तो ही मानना चाहिए कि मन आत्मा में स्थित है. मन आत्मा में रहकर
यदि व्यवहार करना सीख जाये तो मुक्त ही है. मन पहले से ज्यादा सजग है और दृढ़ भी.
आवरण और विक्षेप घट रहे हैं, सतोगुण बढ़ रहा है. तमो और रजो गुण से मुक्त होकर
सतोगुण से भी पार जाना है. आज एक स्वामी जी से सुना, वस्र्त्रों को प्रेस करने से
न उन्हें कुछ मिलता है न कुछ खोता है. वस्त्र पर सिलवटें मिट जाती हैं. सिलवट जो
कुछ भी नहीं हैं, मिट जाती हैं. आत्मा में न कुछ जोड़ा जा सकता है न कुछ घटाया जा
सकता है. मन रूपी सिलवट मिट जाती है, जो है ही नहीं. आज नन्हे और सोनू से बात की. वे
योग और आहार के द्वारा अपना वजन घटा रहे हैं.
अब जो भी सायास होता है वह नहीं भाता, जो सहज ही होता है, वही ठीक है...
ReplyDeleteऐसा ही लगता है कभी कभी मुझे भी।
स्वागत व आभार मीना जी !
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (16 -06-2019) को "पिता विधातारूप" (चर्चा अंक- 3368) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
बहुत बहुत आभार !
Deleteसुन्दर लेख
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteबहुत सुंदर आध्यत्मिक लेख ,सादर
ReplyDeleteस्वागत व आभार कामिनी जी !
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