वैदिक गणित का अभ्यास
आज का इतवार भी बीत गया. सुबह चार बजे से पहले ही उठे, गर्मी
बहुत थी. प्रातः भ्रमण के समय सूर्योदय का सुंदर दृश्य दिखा. जून को 'विश्वकर्मा
पूजा' के लिए दफ्तर जाना था. उनके जाने के बाद कुछ देर के लिए ध्यान में बैठी पर
घंटी बजी और बीच में ही उठना पड़ा. आज नरेंद्र मोदी जी का जन्मदिन है. पेट्रोल के दाम
आसमान छू रहे हैं, अब प्रधानमन्त्री के पद पर वह स्वयं हैं, किससे अपील करेंगे.
दोपहर को बच्चों को गणित पढ़ाया. स्वयं वैदिक गणित का अभ्यास किया, कई वर्ष इसकी पहले
पुस्तक खरीदी थी. शाम को योग कक्षा में आने वाली एक परिचिता से मिलने अस्पताल गयी, अब ठीक हो रही है. उसका आपरेशन ठीक हो गया
है. वापस आकर गुरूमाँ का 'मुद्रा ध्यान' किया, फिर टीवी चलाया, भारत-आस्ट्रेलिया
का एक दिवसीय मैच वर्षा के कारण बीच में रुक गया है. जून गोभी पुलाव बनाने चले गये
हैं रात्रि भोजन के लिए. वर्षों बाद पंजाबी दीदी व उनके पतिदेव से फोन पर बात की,
अगले महीने जब एक मित्र की बेटी के विवाह में जायेंगे तब उनसे भी मिलेंगे. नन्हे
से भी बात हुई, उसके यहाँ उसका एक मित्र आया है, वह भी उसी सोसाइटी में घर देख रहा है, जब तक घर नहीं
मिलता उसके साथ ही रहेगा.
पिछले दो दिन कुछ नहीं लिखा, आज फुर्सत ही
फुर्सत है. शाम को क्लब जाना है, सुबह फोन आया ड्रेस कोड है हैंडलूम की साड़ी.
महिला क्लब की कमेटी में उसे शामिल कर लिया गया है. उसने सोचा, कोलकाता एअरपोर्ट
पर खरीदी बंगाल की साड़ी पहन कर जाएगी. अभी तक एक बार ही पहनने का अवसर मिला है. उस
सखी से बात हुई जिसकी बिटिया के विवाह में शामिल होने उन्हें जाना है, उसने बताया,
तैयारी जोर-शोर से चल रही है. जून ने दफ्तर में आज पहली बार वार रूम में होने वाली
वीडियो कांफ्रेसिंग में भाग लिया. स्कूल की पत्रिका का काम आगे बढ़ रहा है. परसों
एक अध्यापिका के घर गयी, वह एक अन्य अध्यापिका से किसी बात पर नाराज थी, उसे
समझाया तो अब ठीक है.
ग्यारह बज गये हैं, जून को आने में आज देर होगी.
नैनी से पैंट्री की सफाई करवाई, उसने भी दिल लगाकर काम किया. सब कुछ चमक रहा है
जैसे. ब्लॉग पर दो पोस्ट्स प्रकाशित कीं. ग्रीन टी पी. इन्द्रियों से परे मन है,
मन से परे बुद्धि, बुद्धि से परे आत्मा..जिसे कोई भौतिक वस्तु नहीं चाहिए. मन भी
अशरीरी है, चाय जाती है देह में, कुछ रसायनों के कारण देह में संवेदना होती है, जिसे
मन अनुभव करता है, अंततः आत्मा अनुभव करती है. देह के लिए जो वस्तु हानिकारक है,
उसे भला इन्द्रियां क्यों चाहेंगी, जब तक मन प्रेरित न करे. संस्कार के वशीभूत हुआ
मन ही अपने लिये हानिप्रद परिस्थतियों का भी चयन कर लेता है, उन्हें चाहने लगता
है. यही तो माया है. बुद्धि की धृति शक्ति जब कमजोर होती है तो मन पर बुद्धि का
नियन्त्रण नहीं रहता, मनमानी करता है मन जिसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ता है. आज
सुबह क्लब में फोटो सेशन था. कमेटी में उसे जो पद मिला है इस कारण. जो भी सहज रूप
से प्राप्त होता है, उसे स्वीकारना और अस्तित्त्व का धन्यवाद करना, यही साधक के
लिए उचित है.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (08-06-2019) को "सांस लेते हुए मुर्दे" (चर्चा अंक- 3360) (चर्चा अंक-3290) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'