आज सफाई कर्मचारी नहीं आया, नैनी को भी अपना काम
खत्म कर बच्चों को स्कूल छोड़ने जाना था, सफाई का काम अधूरा ही पड़ा है. कुछ वर्ष
पहले यदि ऐसा हुआ होता तो वह झुंझला जाती फिर खुद ही करने में जुट जाती पर अब मन
में एक ख्याल भर आया, उम्मीद पर दुनिया टिकी है, हो ही जायेगा सब जून के आने से
पहले. अभी पौन घंटा शेष है न. आज धूप अच्छी निकली है, ठंड पहले से कम है फिर भी
काफ़ी है, क्योंकि इनर पहनने के बाद भी स्वेटर तो पहनना ही पड़ा है. आज सुबह आचार्य
प्रद्युम्न का प्रवचन सुना. सगुण ईश्वर व निर्गुण ब्रह्म का भेद स्पष्ट हुआ. जीव
माया के अधीन है और माया ईश्वर के अधीन है. सतोगुण बढ़ने पर जीव माया के पार जा
सकता है और ईश्वर की भक्ति करने से भी. मन को दूषित करते हैं रजोगुण तथा तमोगुण.
सतोगुण आत्मा को हल्का बनाता है. समाधि की अवस्था में तमोगुण घटता है, संस्कार
मिटते हैं तथा आत्मा को नई ऊर्जा मिलती है.
सुबह टहलने गये तो ठंड अधिक नहीं थी. सूरज का लाल गोला उनके
साथ साथ चल रहा था. मौसम अब बदल रहा था. आज बहुत दिनों बाद उसने दोपहर के भोजन में
इडली बनाई है. माली ने बगीचे से नारियल लाकर दिया था, उसकी चटनी बनाई. सुबह क्लब की
सेक्रेटरी के साथ जाना था, एक पुराने कमरे को देखने जो भविष्य में क्लब का दफ्तर
बन सकता है. हालत अच्छी नहीं है, काफ़ी काम करवाना होगा. स्कूल का पुराना फर्नीचर भी
एक बड़े हॉल में रखवा दिया गया है, उसने सुझाव दिया, इसे दान कर देना चाहिए. कितने
ही पुराने ब्लैक बोर्ड भी थे. आजकल वह योग दर्शन में 'समाधि पाद' के श्लोकों का
भाष्य सुन रही है. संस्कार के रूप में ज्ञान उनके भीतर रहता है, जो वृत्तियों के
रूप में प्रकट होता है. क्लिष्ट व अक्लिष्ट दोनों तरह की वृत्तियाँ भीतर हैं तथा
दोनों से संस्कार भी बनते हैं. वे संस्कार फिर वृत्तियों को जन्म देते हैं. हर वृत्ति
एक संस्कार को छोड़ जाती है, चित्त में वृत्ति-संस्कार चक्र अनवरत चलता रहता है. ज्ञान
प्राप्त करने के बाद भी क्लिष्ट वृत्तियाँ उठ सकती हैं पर उनमें उतनी तेजी नहीं
रहती. जब चित्त शांत हो जाता है तब क्लिष्ट वृत्तियाँ नहीं उठतीं.
पिछले तीन दिन कुछ नहीं लिखा. कारण सोचे तो कुछ भी नहीं है.
स्मरण ही नहीं रहा. आज इस समय शाम के सात बजे हैं. अभी-अभी 'अष्टावक्र गीता' पर
गुरूजी की व्याख्या सुनी, जिसमें भिन्न-भिन्न आसक्तियों की चर्चा गुरूजी कर रहे
थे. जून भी सुन रहे हैं आजकल. उन्हें तरह-तरह के व्यंजन बनाना पसंद है, क्या यह भोजन
के प्रति आसक्ति कही जाएगी ? आज दोपहर को बच्चों के साथ 'सरस्वती पूजा' का उत्सव
मनाया. जून सुबह वाग्देवी की एक तस्वीर प्रिंट करके लाये थे, घर में फ्रेम मिल गया
जो नन्हे को उपहार में मिला था. काले चनों और नारियल का प्रसाद बांटा. दो दिन पहले
धोबी ने अपने हाथ से लगाये नारियल के पेड़ से नारियल लाकर दिया था. बच्चों ने
तस्वीर देखकर अपने हाथों से उसकी अनुकृति बनाई. आज माली ने गमलों में फूलों के
पौधे लगाये. फ्लॉक्स और डायंथस अब खिलने लगे हैं. फरवरी के अंत तक बगीचा फूलों से भर
जायेगा. आज सुबह मृणाल ज्योति गयी, बहुत लोग आये थे. पिछले वर्ष लगे एक कैम्प में
सौ परिवारों का चयन किया गया था, जिन्हें सरकार की तरफ से दिव्यांग बच्चों एक लिए
किट बांटे गये. स्थानीय एम एल ए महोदय भी आये थे. कल वहाँ भी सरस्वती पूजा है,
उसने लड्डू मंगाए हैं कल लेकर जाएगी.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 4.7.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3386 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत बहुत आभार !
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 04 जुलाई 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
Deleteसुंदर।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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