शाम के साथ बजने वाले हैं.
आज दिन भर धूप के दर्शन नहीं हुए. इस समय तापमान छह डिग्री है. सुबह उठकर कुछ देर
प्राणायाम किया फिर बाहर टहलने भी गयी, चारों और श्वेत कोहरा था जो चेहरे पर
शीतलता की छाप छोड़ जाता था. उसके बाद किचन में पहले नाश्ता फिर भोजन बनाने-खाने-खिलाने
में व्यस्त. महरी दो दिन से नहीं आ रही है. छोटी भाभी बहुत मिलनसार है और सारा काम
आराम से निपटा लेती है. दीदी परिवार सहित कल आयीं थीं, सबसे मिलकर अच्छा लगा. बड़ी
भांजी से फोन पर बात हुई, चचेरा भाई मिलने आया था, वह कुछ ज्यादा बोलने लगा है,
अकेले रहने के कारण उसका मन अब शायद पहले सा मजबूत नहीं रह गया है, फिर भी शारीरिक
रूप से पहले से स्वस्थ लगा. पिताजी आज सुबह कह रहे थे, यात्रा पर जाने से पूर्व
उनका दिल घबराता है, दो दिन बाद उन्हें जाना है.
कल चचेरी बहन अपने दो
बच्चों के साथ आयी थी, बच्चों ने नन्हे के साथ अच्छा समय बिताया. आज सुबह नौ बजे
घर से चले और ढाई बजे दिल्ली पहुंच गये. बड़ी गाड़ी थी, स्विफ्ट डिजायर, यात्रा
आरामदेह थी सिवाय दिल्ली में भारी ट्रैफिक का सामना करने के. मंझले भाई-भाभी का नया
घर बहुत सुंदर है. शाम को भाभी की माँ से मिलने गये, जो अस्थमा की मरीज हैं. उसके
बाद आर्मी रेस्टोरेंट में रात्रि भोजन के लिए. सूप, सिजलर, पनीर टिक्का, तंदूरी
रोटी दाल और एक सब्जी. पिछले दिनों छोटी भाभी ने भी काफी व्यंजन बनाये थे. कश्मीरी
चटनी, अप्पा, मलाई मेथी मटर तथा खजूर के लड्डू, हल्दी वाला दूध. कल शाम शायद बड़ी
भतीजी मिलने आये. दोपहर को बड़ी भाभी के यहाँ जाना है. जून टनोर में हैं, जो
जैसलमेर से भी आगे हैं.
आज ठंड कल से भी ज्यादा
है. खिड़की से बाहर सिवाय कोहरे की सफेद चादर के कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा. सुबह छह
बजे ही उठ गयी, साढ़े आठ बजे तक तैयार थी. पिताजी भी नहा-धोकर नाश्ता करके बांसुरी
बजा रहे हैं, चैन की बांसुरी ! नन्हा कल अपने मित्र के यहाँ रहा, अपने मित्रों के
साथ कल रात आग जलाकर उसने उत्सव मनाया. आज उसे वापस जाना है. रात्रि के दस बजने को
हैं. ठंड बदस्तूर है. दोपहर को बड़ी भाभी ने सरसों का साग व मक्की की रोटी खिलाई.
शाम का भोजन भी वहीं किया और आधा घन्टा पहले ही वे लौटे हैं. परसों इस वक्त वे
अपने घर में होंगे, समय कैसे बीत रहा है, पता ही नहीं चल रहा.
वे घर लौट आये हैं. सुबह
साढ़े पांच बजे उठे और गोभी के पराठों का नाश्ता करके, निकल पड़े, भाई ने चाय बनाई,
जैसे मंझला भाई अपने घर पर बनाता है, जैसे जून यहाँ हार्लिक्स बनाते हैं. बड़े भाई
को आटा गूंथते हुए भी देखा, अच्छा लगा, वे पहले से ज्यादा शांत और स्थिर लगे.
मंझला भाई भी पहले से ज्यादा स्वस्थ लग रहा था. भाभी लेकिन कुछ ज्यादा ही मोटी हो
रही हैं. दोनों की बेटियां बहुत लाड़-प्यार में पली हैं. एअरपोर्ट पर दो किताबें
खरीदीं, दो दीदी ने दी हैं, एक पिताजी से पढ़ने के लिए ली है, ‘शिवोहम’, वहाँ पढ़
रही थी, पूरी नहीं पढ़ पायी. बहुत अच्छी किताब है. चेतना का दीपक जलता है देह की
उपस्थिति में ही, प्राणवायु ही उस दीपक को प्रज्ज्वलित करती है, देह दीपक है,
चेतना ज्योति है, चेतना स्वयं को ज्योति स्वरूप जान ले तो सारा भय नष्ट हो जाता
है. पिताजी का गला दिल्ली की ठंड में खराब हो गया है, पर उन्हें वहाँ अच्छा लग रहा
है. ठंड से बचने के लिए भाभी ने उन्हें गर्म शाल दी, भाई ने ट्रैक सूट और हर समय
वे उनके ध्यान रखते हैं. भाभी की माँ का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, वह अस्पताल में
हैं, उनसे भी बात हुई. घर आकर अच्छा लग रहा है. परमात्मा उसे किसी उद्देश्य के लिए
वहाँ ले गया था. नन्हे ने अपने दिल की बात बताकर स्वयं को हल्का किया, उसका दिल
टूटा है पर वह हिम्मती है. भीतर की पीड़ा को व्यक्त नहीं होने देता, स्वयं पर हावी
भी नहीं होने देता. परमात्मा ही उसके जीवन का मार्ग तय करने में उसे मदद करेंगे.
कल शाम को क्लब में मीटिंग है. अगले हफ्ते प्रेस जाना है. पहली तारीख को एक सखी को
भोजन पर बुलाना है. जून ने हरे चने के चावलों बनाये हैं रात्रि भोजन में.
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