शाम के सवा पांच बजे हैं. आज
नये वर्ष का प्रथम दिन है. सुबह साढ़े पांच बजे नींद खुली, कल देर रात तक संगीत व
पटाखों का शोर सुनाई देता रहा. नये वर्ष के स्वागत का भला यह कौन सा तरीका हुआ कि
औरों की नींद खराब की जाए. आज दोपहर को विशेष भोज था, कुछ मित्र परिवारों के साथ, भिस
की सब्जी बनाई, जो वे दिल्ली से लाये थे, यहाँ इसके बारे में कोई नहीं जानता. इसके
अलावा हरे चने का चीला, बैंगन का भर्ता, पालक का सूप और खजूर की मिठाई जो जून ने
बनाई. नये वर्ष में मन नये उत्साह से भरा
है. उसने मन ही मन कुछ संकल्प दोहराए. नये-नये स्थान देखने हैं, सेवा के नये कार्य करने हैं तथा सभी को
साथ लेकर चलना है. मृणाल ज्योति में ज्यादा समय बिताना है. हर हफ्ते दो दिन सत्संग
तथा योग सिखाना है. इतवार का सेवा कार्य तो वैसे ही चलेगा. नियमित ध्यान तथा लेखन
कार्य भी करना है. उसका कोई भी निर्णय दूसरों के लिए असुविधा का कारण न बने, प्रमाद
रहित रहकर इसका भी ध्यान रखना है.
आकाश पर हल्के बादल हैं,
मौसम ठंडा है.आज हिंदी की प्रूफ रीडिंग का कार्य हो गया. कल एक सदस्या के यहाँ उपहारों
की पैकिंग का कार्य होगा. आज छोटी ननद व मंझले भाई का जन्मदिन है, दोनों से बात
की. नन्हे ने नये वर्ष की पार्टी का फोटो भेजा है. सबके हाथ में गिलास है, उसमें
क्या है इसका अंदाज लगाया जा सकता है. अब कैसे वक्त हैं कि आधी-आधी रात तक जगते
हैं बच्चे और सुबह-सवेरे सो जाते हैं.
अभी-अभी प्रेस से फोन
आया, अंग्रेजी के कुछ लेख अभी तक टाइप नहीं हुए हैं. दो दिन बाद कार्यक्रम है.
पिछले वर्ष वह आरम्भ से ही पत्रिका से जुड़ी थी, पर इस बार ऐसा नहीं है. अब देर भी बहुत हो गयी है. आज दोपहर कुछ देर
सोयी तो अजीब सा स्वप्न देखा, जिसमें छोटा भाई भी था और अखाद्य सब्जी का जिक्र
था, वह उसे खाने के लिए मना कर रही थी. कल या परसों रात्रि को स्वप्न में ओशो से
बातें की. उनका प्रवचन सुनते-सुनते सो गयी थी, सपने में भी वह उसे सुना रहे थे और
राह में मिलने वाले लोग भी सुनने लगते थे. मन कितना रहस्यमय है, आत्मा का तो कोई
पार नहीं पा सकता, परमात्मा की तो बात ही छोड़ दें. सारी सृष्टि एक रहस्य ही तो है,
पता नहीं कब से है और कब तक रहेगी, पता नहीं किसने बनाई है और क्यों ? पता नहीं,
वे कौन हैं और परमात्मा से उनका क्या रिश्ता है ? परमात्मा ही वे बनकर खुद को खोज
रहा है क्या ? परमात्मा के पास शायद मन नहीं है पर वह तो सर्वज्ञ है, फिर..उसकी
सर्वज्ञता में ही शायद मानव भी शामिल है, मानव भी वही है, सब लोग यह बात नहीं जानते,
उसे लगता है यही सही है. वह भी वही है, अब वही जाने उससे क्या करवाना है उसे, वही है तो वही जानेगा..अब उसने स्वयं को खुद को बनाया नहीं है, न ही उसे कुछ पता है, सचमुच
उसे कुछ भी नहीं पता, वह कौन है, ईश्वर कौन है, यह क्या है, यह सृष्टि ऐसी क्यों
है ? बस एक शांति सी है, एक मौन, एकांत और विश्राम !
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