आज शाम को क्लब में मैजिक शो है. कल ‘गुरू पर्व’ है, ‘देव
दीवाली भी’, दूरदर्शन पर वाराणसी से सीधा प्रसारण किया जायेगा, प्रधानमन्त्री भी
जायेंगे. परसों वह दो अन्य महिलाओं के साथ दिगबोई व तिनसुकिया के स्कूलों में जायेगी.
विकलांग दिवस के अवसर पर मृणाल ज्योति में एक चित्रकला व निबन्ध प्रतियोगिता के
लिए निमन्त्रण देना है. सप्ताहांत में एक स्कूल में उसे वाद-विवाद प्रतियोगिता में
निर्णायक के रूप में जाना है. लेडिज क्लब की पत्रिका के लिए लेख लिखना है. इस बार
विषय क्लब से संबंधित होना चाहिए. बरसों से वह इसमें जा रही है. कितनी ही यादें
हैं. लिखना शुरू करे तो कई पन्ने भर जायेंगे. जब इसकी सदस्या बनी थी, उस वक्त को याद
करती है तो लगता है कल की ही बात है. आरम्भ में तो अधिक सक्रिय नहीं रही, केवल
मीटिंग में सम्मिलित होना ही याद है. फिर एक दिन स्वरचित कविता का पाठ किया जिसके
बाद सेक्रेटरी ने वार्षिक कार्यक्रम के लिए हिंदी में कुछ लिखने का काम दिया था.
क्लब की पत्रिका में हिंदी लेखों के संपादन का कार्य भी कई बार किया. कितनी ही बार
समूह गान में भाग लिया, जिनकी रिहर्सल में जाना एक यादगार अनुभव बन गया है. उन
दिनों मीटिंग के बाद की चाय के लिए भोजन घरों पर ही बनाया जाता था. उसे याद है
दोपहर को कुछ महिलाएं किसी एक घर में एकत्र होकर यह कार्य करती थीं. रात को भोजन
बच जाने पर सभी के यहाँ पहुंचाया जाता था. तब से अब तक बहुत सा पानी गंगा में बह चुका
है. अब लोग ज्यादा परिपक्व हो चुके हैं, अब भोजन कुक बनाते हैं परोसने का काम भी
उन्हीं के लोग करते हैं. उस समय ज्यादा वक्त वेशभूषा तथा साज-सज्जा पर खर्च होता था,
पर आज की महिला अपने को एक पूर्ण व्यक्तित्त्व मानती है. वह समाज के प्रति अपने
उत्तरदायित्वों को पहचानती है, उन्हें निभाना चाहती है. क्लब द्वारा चलाये जा रहे
विभिन्न प्रोजेक्ट इसकी गवाही देते हैं.
आज मृणाल
ज्योति के संस्थापक महोदय ने अपने जीवन के अनुभव बताये. बहुत रोचक और रोमांचभरी
कहानी है उनकी. जीवन में उन्होंने इतने संघर्ष झेले हैं पर उनमें काम करने का
जज्बा कूट-कूट कर भरा है. एक बार वह एक बस में यात्रा कर रहे थे. हाथ में रूसी
लेखक बोरिस येल्स्तीव की पुस्तक थी. साथ बैठे व्यक्ति ने पूछा, यह पुस्तक कहाँ से
मिली, तो उन्होंने कहा, “खरीदी है, क्योंकि ऐसी
किताबें पढने का शौक है’. उस व्यक्ति ने अपना पता दिया और मिलने को कहा. उन्हें एक
सीक्रेट संस्था में काम मिल गया, मगर वह किसी को इस बारे में बता नहीं सकते थे,
कोई पहचान पत्र नहीं था. पुलिस तक को पता नहीं था कि ऐसी कोई सरकारी संस्था है.
उन्हें वैसी कई पुस्तकें पढने को दी गयीं. नक्सल आन्दोलन तथा गुरिल्ला युद्ध के
बारे में जानकारी मिली. प्रशिक्षण दिया गया. उसी दौरान एक बार ऊँचाई से गिर गये,
काफी चोट आई. छह महीने इलाज चला. जॉब जारी रहा पर बाद में तनाव बढ़ने लगा. गिरने के
कारण सर में चोट आई थी, उसका भी असर था. नौकरी छोड़ दी. आगे पढ़ाई की और अध्यापक
बने. उसी दौरान एक केस के सिलसिले में बड़ी बहन ने कहा, इस काम को ऐसे अंजाम दो, तब
पता चला वह भी उसी संस्था में थी, अभी तक उसी क्षेत्र में है. घर में किसी भी पता
नहीं था कि वह यह काम करती है. जीवन कितना विचित्र है, इतनी बड़ी धरती पर कब, कहाँ
क्या हो रहा है, कौन जान सकता है.
कल जून
वापस आ गये, घर जैसे भर गया है, पहले की दिनचर्या आरम्भ हो गयी है. आज एकादशी है,
लंच में साबूदाने की खिचड़ी बना रही है. कल से ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ का कोर्स आरम्भ हो
रहा है. आज सुबह एक दु:स्वप्न देखा. मेहमान के लिए भोजन बना रही है पर बन नहीं पा
रहा है. कभी जल जाता है कभी कुछ और समस्या. मेहमान भी वही है जिसके बारे में एक
व्यर्थ विचार मन में जागृत अवस्था में आया था, अर्थात उस स्वप्न का बीज तब बोया
गया था. उनके हर भाव, विचार तथा कृत्य का फल मिलता है. कर्म पर ही उनका अधिकार है,
फल पर नहीं, फल तो भोगना ही पड़ेगा. यदि उस समय जग जाती तो स्वप्न टूट जाता. सद्गुरू
के अनुसार इसी तरह अज्ञान की नींद से जगने पर भी भीतर के सारे दुःख नष्ट हो जाते
हैं.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10-08-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2892 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
ReplyDeleteक़ाबिले तारीफ़ है
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