Friday, August 4, 2017

धनतेरस और नर्क चतुर्दशी


परसों वे लौटे. उसने यात्रा विवरण लिखना शुरू कर दिया है. पिछले वर्ष वे गोवा गये थे, आस्ट्रेलिया भी, तब भी लिखा था, और अब वह सब एक स्वप्न ही तो लगता है, यह जीवन एक स्वप्न से अधिक कुछ नहीं है. आज का स्वप्न कल से बेहतर है और यकीनन कल आज से भी बेहतर होगा. सुबह भविष्य में हरे-भरे बगीचे का स्वप्न देखा, जो एक दिन साकार होगा. माली के पीछे लगना होगा और नर्सरी भी जाना होगा. एक सखी से भी सहायता मांगी है, उसने पिछले वर्ष बहुत सुंदर बगीचा बनाया था. सुबह दीदी-जीजाजी के लिए एक कविता लिखी, ननद-ननदोई को विवाह दिवस की बधाई दी और एक सखी को पिछले हफ्ते पड़ने वाले जन्मदिन की बधाई आज जाकर दी, खैर, देर आयद दुरस्त आयद ! ‘कावेरी के सान्निध्य में’ लेख पूरा हो गया है, अब तस्वीरें डालनी शेष हैं जो जून की सहायता से ही होगा. जीवन एक इस सुन्दर अवसर को सुंदर कार्यों में में ही लगाना होगा. यहाँ हर पल अनमोल है. मृत्यु का देवता द्वार पर खड़ा ही है, प्रतीक्षा रत है, बल्कि पल-पल मृत्यु के द्वार की ओर वे बढ़ ही रहे हैं. जीना है तो इसी पल में जीना होगा.

आज एक सप्ताह बाद पुनः कलम हाथ में पकड़ी है. उस दिन दीदी के लिए एक कविता लिखी थी, आज दीवाली पर कुछ पंक्तियाँ उतरी हैं. सचमुच दीवाली एक नहीं कई उत्सवों का मेला है. सफाई लगभग पूरी हो चुकी है, अभी विशेष सजावट करनी शेष है. कल धनतेरस है अथवा तो‘धन्वंतरी जयंती, शाम को बिजली की झालरें लगवानी हैं. अभी-अभी नैनी ने पूछा, आपने धनतेरस पर कुछ खरीदा है ? शाम को बाजार भी जाना है. आज से मौसम में हल्की ठंडक समा गयी है. बचपन में दादी जी कहती थीं दीवाली के बाद सर्दियां शुरू हो जाती हैं और होली के बाद गर्मियां आरंभ हो जाती हैं. सुबह स्कूल गयी, बच्चों को व्यायाम करने में जितना आनंद आता है उतना ही भजन गाने में भी. परमात्मा का नाम किसी भी तरह लिया जाये, शुभ ही करता है. पिछले दिनी बगीचे में काफी काम हुआ, नर्सरी से नये पौधे लाये गये. जून भी कोलकाता से फूलों व सब्जियों के बीज लाये हैं. ‘विश्व विकलांग दिवस’ के लिए कुछ सामान बनाना है, पुराने शादी कार्ड्स उपयोग करके नये छोटे लिफाफे बना सकती है. विभिन्न स्कूलों में जाकर उस दिन के लिए विशेष रूप से बनाये बैज भी देने हैं.

आज ‘नर्क चतुर्दशी’ है. क्लब में आज ही दीवाली उत्सव मनाया जायेगा. आज नेट नहीं चल रहा, सो ब्लॉग पर कुछ पोस्ट नहीं किया. परसों के विशेष भोज की तैयारी चल रही है. जून धीरे-धीरे सामान खरीद कर ला रहे हैं. वह सूरन के कोफ्ते की सब्जी बना रही है. इसके अलावा आलू-गोभी-मटर, बैंगन का भुर्ता, दाल माखनी, रायता, चटनी, पुलाव व पूरी बनाने की सोच रही है. कल अवकाश है, मिठाई बनाने का कुछ काम कल ही हो जायेगा. जून कोलकाता से स्नैक्स ले आये थे, कई तरह की चिक्की तथा नमकीन. बच्चों के लिए अनार व फुलझड़ी भी वे ले आये हैं, उसे शोर करने वाले पटाखे जरा भी पसंद नहीं आते. जून के दफ्तर से दीवाली के उपहार आने भी शुरू हो गए हैं. कल नन्हे से बात हुई, उसके यहाँ चार दिन का अवकाश है, पर उसे तो काम करना ही है. ईश्वर उसे सद्बुद्धि दे, उन सभी को सद्बुद्धि दे ! इससे बढ़कर कोई प्रार्थना नहीं हो सकती.


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