कल दोपहर से ही रात को आने वाले मेहमानों के लिए भोजन बनाने में व्यस्त थी. शाम
को जून जब घर आये तो बताया कि घर में किसी की मृत्यु हो जाने के कारण वे लोग आज नहीं
आ रहे हैं. कहते हैं न दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम, फोन करके एक अन्य
मित्र परिवार को बुलाया, जिन्हें भोजन बहुत पसंद आया. आज दोपहर उसने आंवले का
मुरब्बा और अचार दोनों बनाये. मुरब्बे की तैयारी कई दिन से चल रही थी. आगामी
यात्रा के लिए सामान बांधा. कल माँ की तीसरी बरसी है, वे बच्चों को भोजन करायेंगे.
नन्हा आज गुजरात गया है. सुबह से ही वह अनजान लोगों के मध्य घूम रहा है और भोजन
आदि भी उसे मिल रहा है. वह ड्राइवर के परिवार से भी मिला, इस समय ‘भुज’ में है, कल
‘रण’ जायेगा.
आज का दिन काफी अलग रहा. सुबह उठने से पूर्व नींद में जाने का अनुभव किया, फिर
मन की गहराई में जाकर असत्य बोलने के संस्कार पर काम किया. वहाँ जैसे परमात्मा
स्वयं आकर सिखा रहे थे. उठकर साधना की. फिर माँ की स्मृति में प्रसाद बनाया. मृणाल
ज्योति भी ले गयी. इस संस्था का नाम कैसे पड़ा, इसकी जानकारी भी आज हुई. जिन
दम्पत्ति ने यह स्कूल खोला है, उनकी पहली सन्तान साढ़े तीन वर्ष का पुत्र मृणाल
ज्योति अपने ही स्कूल की बस से सडक पार करते समय टकरा गया, और उसकी मृत्यु हो गयी.
इसी दुःख में उनकी पुत्री, दूसरी सन्तान जन्म से ही विशेष जन्मी. उसकी शिक्षा के
लिए जब कोई स्कूल नहीं मिला तो उन्होंने ऐसे बच्चों के लिए अपने पुत्र की याद में
यह स्कूल खोला जो आज सौ से अधिक विशेष बच्चों को शिक्षा व इलाज का अवसर दे रहा है.
आज स्कूल में शिलांग से किसी स्वयं सेवी संस्था की एक कार्यकत्री आयीं थी. जो महिलाओं
के अधिकारों पर काम कर रही हैं. उनसे अच्छी बातचीत हुई. शाम को ह्यूस्टन वाली महिला
अपनी भांजी के साथ आयीं. यात्रा की तैयारी हो गयी है. कल इस समय वे कोलकाता में
होंगे. दो हफ्ते बाद लौटेंगे.
आज दोपहर साढ़े बारह बजे घर से चले. हवाई यात्रा ठीक रही सिवाय इसके कि हाथ के बैग
में छाता रखा था, हवाईअड्डे पर खोल कर दिखाना पड़ा. सुबह अलार्म बजने से पूर्व ही
किसी ने उठा दिया. उससे भी पहले सुंदर रंगीन बड़ी-बड़ी तितलियों को देखा, उनके रंग
कितने शोख थे और उनका आकर भी बहुत बड़ा था. उठकर ध्यान किया कुछ देर फिर प्राणायाम.
माली आदि सभी को निर्देश दिए, अगले दो हफ्ते उन्हें ही घर-बगीचे की देखभाल करनी
है. कृष्ण ने कहा है, जो उसकी शरण में जाता है, उसे वह बुद्धियोग प्रदान करते हैं.
आज बताया कि कर्ताभाव से मुक्त होकर रहने में ही बंधन कट जाते हैं. पहले कितनी ही
बार यह बात पढ़ी है, सुनी है, लिखी है, पर भीतर के गुरू ने बताया और बात समझ में आ
गयी. वे जो अहंकार को मिटाना चाहते हैं, कर्ता बनकर उसे बढ़ा देते हैं. शाम के सात
बजे हैं. वे लोग आईआईएम कोलकाता में हैं. यह कैम्पस काफी विशाल है, अँधेरे में कुछ
ठीक से नहीं देख पाए पर झील व वृक्षों की कतारें अवश्य ही मनमोहक होंगी. कल सुबह
वे जल्दी उठकर भ्रमण के लिए जायेंगे और फोटोग्राफी भी करेंगे.
बढ़िया अभिव्यक्ति
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