सुबह आँखों की
जाँच करवा कर दोपहर को वे सेन्ट्रल मॉल गये जहाँ एक बड़े भवन के आगे
विलेज – “रेस्तरां नहीं एक अनुभव” लिखा
था. सारा हाल रंग-बिरंगी झंडियों से सजा हुआ था, जो जगह-जगह लगे अदृश्य पंखों से
हिल-डुल रही थीं. एक गाँव का माहौल बनाया गया था, जगह-जगह छोटी-छोटी दुकानें थीं,
चना जोर गरम, कुल्फी वाला, बिल्लू बारबर, पुलिस थाना और तो और एक जेल भी थी, ज्योतिषी
और मेंहदी वाला भी था. बीच-बीच में साइकिल पर सवार होकर चाय वाला और और अन्य हॉकर भिन्न
वेश-भूषा में सजे सामान बेच रहे थे. मुख्य भोजन स्टाल भी विभिन्न पकवानों से सजा
था. लगभग दो घंटे वहाँ गुजारे. नवरात्रि के कारण वहाँ कठपुतली डांस तथा
डांडिया नृत्य का आयोजन भी किया गया था.
फोर्टिस में “फुल बॉडी – मेडिकल चेकअप”
कराने के बाद घर लौटे तो तीन बज चुके थे. घर में पड़ी एक किताब पर नजर गयी, प्रसिद्ध
मॉडल याना गुप्ता की लिखी पुस्तक थी, स्वास्थ्य और भोजन से सम्बन्धित, आज ही वह डाईटीशियन से
मिलकर आई थी सो उसमें उत्सुकता हुई, लिखा था, भोजन के प्रति गलत रवैया ही कई रोगों
को जन्म देता है. कल इस्कॉन मन्दिर जाना है और परसों ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ आश्रम.
रात्रि
के नौ बजे हैं, नन्हा अभी तक नहीं
आया है, शायद रास्ते में होगा. इस कमरे में ठंडी हवा आ रही है, यहाँ शाम के बाद
हवा में ठंडक भर जाती है, एक अजीब सी निस्तब्धता का आभास हो रहा है. आज सुबह भी
झील किनारे घूमने गये. लौटे तो कुछ देर एक अलमारी की सफाई की, फिर मन्दिर गये. इस्कॉन
मन्दिर की भव्यता देखते ही बनती है, काफी ऊँचाई पर बना है और कितने ही घुमावदार
रास्तों से होकर जब मुख्य प्रतिमाओं के दर्शन मिलते हैं तो भीतर एक सहज पुलक भर
जाती है. दोपहर का भोजन भी वहीं किया. वापसी में नन्हे के दफ्तर गये, एक
बड़ी इमारत की चौथी व पांचवी मंजिल पर स्थित ऑफिस आयुध पूजा (विश्व कर्मा पूजा
जैसी) के लिए सजा था, नवरात्रि के कारण शाम को यहाँ भी डांडिया होने वाला था.
आज एक पुराने कन्नड़
मित्र के यहाँ गये, जिन्होंने दक्षिण भारतीय भोजन परोसा. खसखस, चावल व नारियल से
बनी खीर बहुत स्वादिष्ट थी. उन्हीं के साथ श्री श्री के आश्रम गये. गेट पर
ही कार की पार्किंग कर जब अंदर प्रवेश किया तो लोगों का हुजूम देखकर बहुत आश्चर्य
हुआ. हजारों की संख्या में पंक्ति बद्ध लोग दूर तक पलकें बिछाये बैठे व खड़े थे, उन्होंने
भी पंक्ति में खड़े होकर निकट से गुरूजी के दर्शन किये. कल उन्हें कूर्ग जाना है जो कर्नाटक
का एक पहाड़ी स्थान है. उसने नेट पर पढ़ा, कूर्गी लोग सैनिक
परंपरा से आते हैं और आज भी उन्हें हथियार रखने का अधिकार है. यह जानकर आश्चर्य
हुआ कि कूर्गी महिलाएं जो साड़ी पहनती हैं उसमें प्लेट्स पीछे की तरफ होती हैं तथा
पल्लू किनारे पर लटका होता है.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 03-08-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2686 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद सहित
बहुत बहुत आभार दिलबाग जी, आपने सदा ही इस ब्लॉग को चर्चा मंच में शामिल करने का प्रयास किया है.
Deleteकुर्गी साड़ी के बारे में पहले नहीं सुना था, रोचक प्रस्तुति
ReplyDeleteस्वागत व आभार कविता जी, मुझे भी देख-सुनकर आश्चर्य हुआ था.
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