Friday, August 18, 2017

इ रिक्शा में यात्रा


कल से गले में खिचखिच है, आज ज्यादा बढ़ गयी है. तीन दिन बाद यात्रा पर निकलना है, स्वास्थ्य  ठीक हो जायेगा उससे पूर्व ऐसी उम्मीद है. दोपहर बाद साढ़े तीन होने को हैं, सूर्य की अंतिम धूप में बगीचे में कुरसी पर बैठी है वह, मुँह में मुलेठी है, जिसकी मिठास गले को राहत देती है. कुछ देर पूर्व रजाई ओढ़कर लेटी पर भीतर कोई जाग गया है जो बेवक्त सोने नहीं देता. एक दिन तो गहरी नींद सोना ही है. उसके पूर्व कुछ काम हो जाये तो ही अच्छा है. जीवन के पल व्यर्थ न जाएँ, परमात्मा की दी इस अपार क्षमता का उपयोग हो सके ऐसा प्रयत्न सदा ही चलना चाहिए. आज बहुत दिनों के बाद रीडर्स डाइजेस्ट का एक अंक पढ़ा. मलाला की पुस्तक कल खत्म हो गयी, उसका एक भाषण भी सुना. कल शाम को जून के दफ्तर में काम करने वाली एक महिला आई थी अपने पति के साथ. चाहती है उसका तबादला गोहाटी हो जाये, इसी सिलसिले में बात करने आये थे वे. पति का काम वहीं है, ससुराल भी वहीं है. यदि ऐसा न हो पाया तो दोनों के पास अलग होने के सिवा कोई उपाय नहीं है. महिलाओं ने भी पुरुषों की तरह काम करना तो आरम्भ कर दिया है पर इसके लिए कितनी क़ुरबानी देनी पडती है. सास-ससुर को तो अब बहू से कोई भी उम्मीद रखने का अधिकार नहीं रह गया, पति भी यह नहीं कह सकता कि महिला नौकरी छोड़ दे. बगीचे में पानी डालने माली अभी तक नहीं आया है, वैसे एक दिन छोड़कर भी पानी दिया जा सकता है, रात्रि को इतनी ओस गिरती है कि सब कुछ भीग जाता है.

उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ रही है, ऐसा समाचारों में सुना. यहाँ भी मौसम अपेक्षकृत ठंडा है पर धूप भी खिली है. व्हाट्स एप पर दीदी का संदेश सुना. विदेश में रहने वाला बड़ा भांजा परिवार सहित आया है, उससे भी भेंट हो जाएगी. कल स्वप्न में किसी पिछले जन्म का दृश्य देखा, मोह भंग होता है जब पिछले जन्म की सच्चाई सामने आती है. जीवन एक खेल ही तो है, एक स्वप्न मात्र..इसे जो गम्भीरता पूर्वक लेते हैं, वे व्यर्थ ही दुखी होते हैं. मन कितना चंचल है, पल में तोला पल में माशा, इस मन को देखना भी एक मजेदार खेल है. यहाँ सब कुछ बदलने वाला है, सत्य एक है और वह सदा एक सा है अटल. उससे जुड़े रहकर जगत को देखना है, वहाँ न कोई चाह है न ही कोई अभाव ! नये वर्ष के लिए कविता लिखनी है जो वापस आकर पोस्ट करेगी अथवा तो वहीं से मोबाइल पर.


इस समय धूप तेज है, दोपहर के डेढ़ बजे हैं. सुबह ठीक चार बजे किसी ने जगा दिया, जैसे ही उठकर बाथरूम जाने लगी तो अलार्म बजा. तैयार होकर साढ़े पांच बजे ही वे रेलवे स्टेशन आ गये. नन्हे के साथ शताब्दी की तीन घंटे यात्रा का वक्त कैसे बीत गया पता ही नहीं चला. कल जब वह दिल्ली पहुंची, नन्हा उसे लेने एयरपोर्ट आया था, उसे सुखद आश्चर्य हुआ. स्टेशन पर छोटी भाभी और भतीजी लेने आये थे. बैटरी वाली रिक्शा में बैठकर वे घर आ गये. ढोकला व लड्डुओं का नाश्ता किया. धूप में बैठकर फल खाए. दीदी व बुआजी से बात की, दीदी कल आ रही हैं और बुआजी परसों. पिताजी पहले से काफी दुबले हो गये हैं, भोजन भी पहले से कम हो गया है, वैसे अन्य सभी बातों में पूर्ववत हैं. वे उनके साथ दिल्ली जाने के लिए तैयार हैं.

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