आज वे कूर्ग के
एक रिजॉर्ट अमनवन में हैं, कावेरी नदी के तट पर स्थित यह एक हरा-भरा स्थान है. रंग-बिरंगे
फूलों से लदी लताओं, वृक्षों और झाड़ियों से सजा यह स्थान पहली नजर में ही मन को भा
गया है. यहाँ विभिन्न खेलों की सुविधाएँ भी हैं और स्विमिंग पूल तथा स्पा भी.
फुटपाथ के किनारे जगह-जगह एकांत में बैठने के लिए चेयर टेबल रखे हैं, नदी किनारे
उसकी ध्वनि सुनते हुए कुछ पढ़ने-लिखने का आनन्द लिया जा सकता है अथवा तो पंछियों की
आवाजें ही सुनते रहें. दोपहर बाद सभी पर्यटकों को नदी पर ले जाया गया, रिवर
ट्रैकिंग का अनोखा अनुभव पहली बार किया. तट पर बंधें वृक्षों से रस्सी को बांध
दिया जाता था और उस के सहारे कई जगह से नदी पार करनी थी. कावेरी का स्वच्छ जल
चट्टानों, वृक्षों की झुकी हुई डालियों को छूता हुआ बह रहा था, उसका कलकल नाद हृदय
को आंदोलित करने वाला था. पानी का तापमान विभिन्न स्थानों पर भिन्न प्रतीत हुआ. ऐसा
लगा जैसे प्रकृति कितने-कितने उपायों से विस्मित करना चाहती है, उस अनजान सृष्टा
की याद दिलाती है. कावेरी के जल में पूरी तरह भीगकर जब वे लौटे तो शाम हो चुकी थी. संयोग की बात उनके कमरे का नम्बर वही है जो पिछले तेईस वर्षों
तक घर का नम्बर रह चुका था.
यहाँ का
स्नानघर वास्तुकला का अद्भुत नमूना है. बड़े से बाथटब पर दिन
में धूप तथा रात्रि में चाँद की रोशनी आ रही थी, छत पर शीशा लगा था. निकट ही शेल्फ पर किताबें पड़ी थीं. एलिस इन वंडर वर्ल्ड
के ‘रैबिट इन द होल’ की तरह वे भी दुनिया से दूर
एक अनोखी दुनिया में आ गये थे. रात्रि भोजन में ‘अक्की रोटी’ ‘नीर दोसा’ तथा केसरी
भात के रूप में कूर्गी भोजन का आनन्द भी लिया.
आज वे ‘दुबारे’ नामक स्थान पर गये जहाँ हाथियों
का एक कैम्प है, जिसमें उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है. कुछ देर रिवर राफ्टिंग की
और फोटोग्राफी भी. लौटकर ‘कॉफी प्लांटेशन’ देखने भी गये, जहाँ कॉफ़ी के पौधों को
छाया देने के लिए बीच-बीच में नारियल के पेड़ों पर काली मिर्च की लताएँ भी उगी हुई
थीं. शाम को ‘निःसर्ग धाम’ देखने गये, जहाँ एक छोटा सा बाजार है, पशु घर तथा
प्राकृतिक सुन्दरता भी. नदी पर बना रस्सी से लटकता पुल, सफेद खरगोशों की मासूम
हरकतें और बारहसिंगों को हरी घास खिलाते लोग ‘निसर्गः धाम’ को यादगार बना देते
हैं. लौटे तो अमन वन में पेड़ों के नीचे जगह-जगह जलते लैम्प, मोमबत्तियां व डालियों
पर लगी रोशनियाँ वातावरण को एक रहस्य तथा गरिमा से भर रहे थे.
आज तीस
किमी दूर मडिकेरी नामक पहाड़ी स्थान पर स्थित ‘abbey falls’ देखने गये, मडिकेरी से
आठ किमी दूर पश्चिमी घाट पर स्थित यह झरनों का एक समूह है जो विशाल चट्टानों से जल
की एक चौड़ी झालर बनाता हुआ अति वेग से घाटी में गिरता है और कावेरी में मिल जाता
है. झरने के सामने रस्सियों पर लटकता हुआ एक पुल है जिसे खड़े यात्री जल फुहारों ला
आनन्द लेते हैं. पास ही कॉफ़ी तथा काली मिर्च के बगीचे हैं. दशहरे के कारण लोगों की
भीड़ यहाँ भी बहुत ज्यादा थी. वापसी में मैसूर में एक सम्बन्धी के यहाँ होते हुए रात्रि
दस बजे बंगलुरु लौट आये, दो दिन बाद वापस असम जाना है.
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