उस दिन दिगबोई में भाई और उसके परिवार के साथ जब वे सब दिगबोई
पीक पर थे एक तितली उसके माथे पर आकर बैठ गयी थी. उस समय तो महज एक सुखद आश्चर्य मात्र
लगा था, पर बाद में सोचा तो लगा, वह कोई संदेश देकर गयी थी, उस अनाम का संदेश....कि
वह सदा उसके साथ है, वही तो है. वह स्वयं अब नहीं रह गयी है. कभी-कभी अचरज भी होता
है, अपना आप अजनबी लगता है, सारे विचार जो एक वक्त में बड़े कीमती लगते थे अब
व्यर्थ ही लगते हैं. एक मौन पसरा रहता है भीतर जो अपना लगता है. शब्द भी नहीं
गूँजते भीतर ! तभी तो कोई कविता भी नहीं लिखी कई दिनों से !
कल शाम आज की सेल की तैयारी में बीती. क्लब की
तरफ से वर्ष में दो-तीन बार यह सेल लगती है. बड़े से हॉल में मेजें लगवाना फिर उनपर सफेद मेजपोश
और विक्रेताओं के बैठने के लिए कुछ कुर्सियां, वस्त्र लटकाने के लिए लोहे के
स्टैंड अदि रखवाना, कुछ अन्य महिलाओं के साथ सारा काम खत्म करते-करते आठ बज गये
थे. आज सुबह स्कूल जाना था, दोपहर को क्लब गयी. कुछ खरीदारी भी की. पता चला उसका
नाप बढ़ गया है, उम्र बढ़ने के साथ-साथ वे भोजन तो कम करते नहीं, व्यायाम कम कर देते
हैं. घर का काम भी कितना कम रह गया है. जून कल दोपहर आ जायेंगे, जब वह बच्चों की
संडे क्लास ले रही होगी. अब वह नहीं कहते कि उनके घर आने पर उसे घर में ही रहना
चाहिए, वह आत्मनिर्भर बनते जा रहे हैं. नन्हा आज व्यस्त होगा, तीस घंटों के लिए एक
प्रतियोगिता होने जा रही है, उसे आज सुबह वहाँ जाना था. आज बगीचे से एक अनानास तोड़ा,
जिसे पक्षियों ने चख लिया था, मीठा है बहुत. घर में बगीचा हो तो कितना अच्छा है न..बड़ी
भतीजी ने लिखा है, स्वर्ग की तरह है उनका घर, सचमुच ..स्वर्ग ही तो है, जहाँ देवता
रहते हैं !
कल यात्रा पर निकलना है, अभी तक पूरी पैकिंग
नहीं की है. जून आज बहुत व्यस्त हैं, उनकी नयी प्रयोगशाला का उद्घाटन होना है.
सीएमडी आने वाले थे, अब तक तो हो गया होगा. शाम के पांच बजे हैं, लगातार होती
वर्षा के कारण मौसम ठंडा हो गया है. वह पिछले एक घंटे से साहित्य अमृत पढ़ रही थी.
ज्यादा बोलने वाली सखी का फोन आया, वह कलाकार है. पानी के रंगों से सुंदर चित्र
बना रही है और फेसबुक पर पोस्ट कर रही है. अच्छा है, उसके जीवन को एक ठहराव मिलेगा
इससे और ढेर सारा सुकून भी. कल वह ब्लॉग पर विदाई संदेश लिखेगी, वापस आकर ही होगा
लेखन कार्य. इस दीवाली पर उन्हें काफी लोगों को बुलाना भी है. जीवन का यह कितना
सुंदर मोड़ है, बैंगलोर में हो सकता है गुरू दर्शन भी हो जाये. सद्गुरू से एकत्व की
अनुभूति हर क्षण होती है. अब कुछ करे या न करे भीतर एक से रंग(मौसम)रहते हैं. एक
अटूट मौन और शांति..एक सहजता और एक अखंडता..एक असीमता भी..
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-7-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2679 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
रोजमर्रा की कशमकश का सजीव चित्रण
ReplyDeleteस्वागत व आभार गगन जी !
ReplyDelete