आज कृष्ण जन्माष्टमी का अवकाश है. सुबह वर्षा हो रही थी, वे
प्रातः भ्रमण के लिए नहीं जा सके. इस समय भी बरामदे में बैठ कर अनवरत बरसती जल
धाराओं को निहारना अच्छा लग रहा है. पिछले दो दिन से वह मौन का अभ्यास कर रही है, भीतर
का मौन भी घट सके इसलिए कुछ सुनना भी नहीं है. अभी कुछ देर पहले भीतर कविताएँ उमड़
रही थीं, अब लिखने बैठी तो कुछ याद नहीं आ रहा. जीवन में कब क्या घटने वाला है कोई
नहीं जानता पर इतना तो तय है जो भी होता है वह उन्हें आगे ले जाने होता है. आज शाम
को कुछ अन्य लोगों एक साथ क्लब जाना है, बाढ़ पीड़ितों के लिए जो सामान महिलाओं ने
एकत्र किया है, उसे सहेज कर अलग-अलग थैलों में भरना है. जून ने उसकी उस दिन वाली कविता
पढ़ी तो उन्हें अच्छा नहीं लगा, दुःख भरी कविता किसे अच्छी लगती है, पर जीवन में
सुख भी है और दुःख भी. कविता तो आईना है, जो जैसा है, प्रकट हो ही जायेगा.
कई दिनों में मन में एक विचार था कि जून को एक
पत्र लिखे, कई बातें जो कहनी हैं, कही जानी चाहिए आमने-सामने, नहीं कही जा पायीं. ये
बातें ही ऐसी हैं कि इन्हें समझने के लिए एक स्थिर मन की जरूरत है और जब भी इस
विषय पर बात हुई है, मन को स्थिर रख पाना सम्भव नहीं रहा है. मानव का जीवन क्रम एक
अबोध बचपन से शुरू होता है, एक कोरी स्लेट सा होता है उसका मन, फिर वातावरण,
परिवार व स्कूल, मित्रों आदि से उसे जो संस्कार मिलते हैं, वही वह बन जाता है और
स्वयं को वही मानने लगता है. युवावस्था में देह में परिवर्तन होते हैं और प्रकृति
के नियम के अनुसार (जैसे की सभी प्राणियों में होता है) विपरीत लिंग के प्रति
आकर्षण उत्पन्न होता है. इसे ही प्रेम मान लिया जाता है. हाँ, सहज ही मानव के भीतर
प्रेम, आनन्द, सुख, शांति, पवित्रता आदि के प्रति लगाव होता है, पर वह कभी-कभी ही
प्रकट होता है. प्रौढ़ावस्था तक आते-आते मानव को समझ में आने लगता है कि समय हाथ से
निकल रहा है, अब कुछ ही वर्षों के बाद जगत से प्रस्थान करना होगा. वस्तुओं पर उसकी
पकड़ ढीली होने लगती है, अहंकार भी छूटने लगता है, उसके भीतरी गुण ज्यादा प्रकट
होने लगते हैं. यही वक्त है जब उसे यह जानना होगा कि वास्तव में जीवन का अर्थ क्या
है ? क्यों इस संसार में इतना दुःख है ? क्यों मानव कुछ आदतों को बार-बार दोहराता
है, क्यों वह भूलने लगता है. यही वक्त है जब उसे किसी मार्ग दर्शक की जरूरत होती
है. जब उसे शरण में जाने की जरूरत होती है, क्योंकि कुछ ही समय में वृद्धावस्था
उसे इसके लिए विवश करने ही वाली है.
आज जून दिल्ली गये हैं. टीवी पर आस्था चल रहा है
वरना समाचार या कोई धारावाहिक चल रहा होता जिसे वह भी बहुत आनंदित होकर देख रही
होती. इस समय वेद मन्त्रों की चर्चा हो रही है. परमात्मा निराकार है, वह एक ऊर्जा
है, अचिन्त्य है, निर्विकल्प है. परमात्मा के विविध नाम उसके अनेक गुणों के आधार
पर हैं. ब्रह्मा का अर्थ है जो सृष्टि की रचना करे. सर्व व्यापक तत्व विष्णु है और
संहारक तत्व शिव है. अनंत काल से प्रतिपल ये तीनों कार्य चल रहे हैं.
मानव के जीवनक्रम की व्याख्या बहुत अच्छी लगी.
ReplyDeleteस्वागत व आभार दीदी !
Deleteमन की डायरी में यही सब दर्ज होता रहता है.
ReplyDeleteसही कहा है आपने प्रतिभाजी..मन हर पल कुछ न कुछ अंकित करता रहता है..आभार !
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