बेहोशी में जो भी बीतता है, वह बेहोशी को मजबूत करता है. होश में
जो भी बीतता है वह होश को मजबूत करता है. वे जागकर देखें तो हरेक कृत्य पूजा हो
जाता है. उनका हर क्षण सार्थक हो जाता है. आज बहुत दिनों बाद एक सखी से बात हुई,
वही जो अपनी परेशानी तो बताती है पर कोई भी सुझाव देने पर उसे न मानने में अपनी
मजबूरी भी झट बता देती है, तब उसे लगता है जैसे वह अपनी तकलीफ में भी खुश ही है.
नन्हे से बात नहीं हो पायी, शायद वह काफी व्यस्त है. सुबह पिकेटिंग थी, ड्राइवर
ड्यूटी पर नहीं आये, वह स्कूल भी नहीं जा पायी. जून इस समय नन्हे की मित्र के घर
पर होंगे दिल्ली में.
किसी पक्षी की आवाज आ रही है, जो रात्रि को
बोलता है अक्सर. आज सोने में कुछ देर हो गयी है, रात्रि के पौने दस बजे हैं, जून
कल आ जायेंगे, फिर सब कुछ समय पर होगा. वैसे तो कल महिला क्लब कमेटी की मीटिंग
उनके घर में है, देर हो सकती है. सुबह उठी तो कुछ देर यूँही आँख बंद करके बैठ गयी,
एक उपस्थिति का अनुभव इतने करीब होता है कि अब ध्यान करना भी नहीं होता. ओशो को
सुना, मन को साक्षी होकर देखना आ जाये तो सारा दुःख समाप्त हो जाता है. मन नहीं
रहता तभी साक्षी का अनुभव होता है. आज शाम को भी भीतर कुछ घटा, जब एक सखी ने ‘नारायण
हरि ॐ’ भजन गाया, वह बहुत अच्छा गाती है. मीटिंग ठीक से हो गयी, इस महीने अभी तक
मृणाल ज्योति नहीं जा पाई है, जब भी जाने में देर हो जाये तो जैसे कोई टोकता है
भीतर से.
आत्मा की ज्योति पर पहरे लगे हैं
ख्वाहिशों की सेना के
जो अधूरी हों तो धुआं देती हैं
पूरी हों तो छिपा देती हैं
इतवार को उनके लॉन में आसपास के सर्वेन्ट्स के
लिए ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ का ‘नव चेतना शिविर’ होने वाला है. एओल की टीचर से बात की तो
वह काफी उत्साहित जान पड़ीं. यकीनन वे सभी को सद्गुरू का ज्ञान बता पाएंगी. सद्गुरु
कहते हैं, जिससे भौतिक तौर पर कल्याण हो और मोक्ष भी मिले वही धर्म है. भक्ति,
युक्ति, मुक्ति और प्राप्ति धर्म के अंग हैं. साधना ही वह चार्जर है जिससे आत्मा
की बैटरी परमात्मा से जुड़ी रखनी है, विश्वास रूपी सिम कार्ड लगाना है और रेंज के
भीतर रहना कृपा का पात्र बनना है. तब परमात्मा से कनेक्शन बना रहेगा. सरलता, सहजता
ही सिद्धावस्था है. संत को कोई पराया नहीं लगता, वह स्वयं पूर्ण है और दूसरों को
आशीर्वाद देता है. सुख-दुःख में सम रहना आ जाये और सबके साथ समान भाव से व्यवहार हो
तो जानना चाहिए, भीतर प्रेम जगा है. सबको अपना देखने की कला ही ‘जीवन जीने की कला’
है. ध्यान, सेवा और सत्संग तब जीने का अंग बन जाते हैं.
काशी में इसी महीने गुरूजी आ रहे हैं, यहाँ भी
आने की बात तो है. परमात्मा ही सदगुरुओं के रूप में धरती पर आते हैं. सुबह रामदेव
जी के प्रेरणात्मक वचन सुने तो मन जैसे तृप्त और आनंदित हो गया. उनके जीवन में
कितनी खुशियाँ भर गयी हैं ज्ञान के आलोक से जो संतों का दिया हुआ है. नन्हे ने कहा
है, दशहरे पर वे सब मैसूर जा सकते हैं, सेलम भी जा सकते हैं एक दिन.
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