Tuesday, July 4, 2017

बोगेनविलिया का पेड़



सदा खुश रहने के लिए बुद्धि को स्वच्छ रखना है. बुद्धि स्वच्छ हो तो उनके कृत्य भी स्वच्छ हो जाते हैं. बुद्धि को स्वच्छ रखने के लिए ‘मेरे’ के भाव का  का त्याग करना है. यहाँ सब कुछ मिला हुआ है, पहले देह फिर परिवार तथा फिर वस्तुएं ! सब कुछ परमात्मा का ही है. जितना-जितना उनका मोह घटेगा, प्रेम बढ़ता जायेगा. वे जब यह स्वीकार करना सीख जाते हैं, तब सारा फ़िक्र परमात्मा को दे देते हैं. आज टीवी पर सुंदर प्रेरणादायक वचन सुने, कोई दक्षिण भारत के संत थे-

Bring powerful completion in yourself and then every day, when you wake up, looks like Shiva is creating new world. When we are complete everything radiates completion, whatever we touch. When one is incomplete inside he or she cannot see the incompletion around him. We can change from karmic life to Avatar life. Move yourself to more and more of completion. Yoga gives us energy and little more we need we should from food. First rest should come from completion and little more from sleep. Prana is the greatest healer and completion is greatest rest.

शाम के सात बजे हैं. नैनी आज बगीचे से हरे प्याज लायी थी, उसी की रोटी बनाने का निश्चय किया है. आज दोपहर को बरामदे के सामने ही लॉन में लगा बोगेविलिया का पेड़ तेज हवा के कारण गिर गया. पहली बार गिरा तो वह घर के अंदर थी. माली को बुलवाकर खड़ा करने को कहा. एक घंटे बाद बाहर गयी तो एक बांस के सहारे खड़ा था. वह अक्सर वहीं बैठकर चाय पीती है. दोपहर को रोज की तरह वहाँ जाकर बैठी तो कुछ ही देर में पेड़ फिर गिर गया. वह उसके नीचे चाय के कप सहित दब गयी. मगर ‘जाको राखे साईंया मार सके न कोई’, न चाय के कप को कुछ हुआ न ही उसे. थोड़े से प्रयास से बाहर निकल आई. बाद में पुनः उसे अच्छी तरह से खड़ा किया गया. बहुत दिनों बाद आज पौधों में पानी भी खुद दिया. शाम को बच्चे भी आये, अब अगले बुधवार को आएंगे.

कल शाम को गुरूपूजा है उनके घर में, उसकी तैयारी शुरू कर दी है. फोन पर सभी को निमन्त्रण दिए. जून ने नये फोन खरीदे हैं उन दोनों के लिए, उन्हें जल्दी हो रही है कि नया सिम एक्टिवेट हो जाये. जिसे एक काम में जल्दी हो उसे हर काम में जल्दी होती है. उन्होंने दो दिनों से भगवद्गीता सुनना शुरू किया है. गुरूजी का छह सीडी का सेट है. जून भी सुन रहे हैं, पर उन्हें अभी संसार से मोहभंग नहीं हुआ है, सो बहुत दिल उसमें नहीं लगाते हैं. हरेक को अपनी गति से ही यात्रा करनी होती है. हरेक का मार्ग भी अलग होता है. आज टीवी पर गुरूजी को कहते सुना था, हरेक को शीघ्र विकास के लिए अपने जीवन में एक दिन पागलखाने में, एक दिन स्कूल में, एक दिन कोर्ट में तथा एक दिन अस्पताल में बिताना चाहिए. वह स्कूल तथा अस्पताल तो जा सकती है पर बाकी दो में जाना मुश्किल है. कल बहुत दिनों या कहें वर्षों बाद मामीजी से फोन पर बात की. परसों होली है, पर उन्हें इस वर्ष होली नहीं मनानी है. जैसे राखी मनाने का उत्साह नहीं था वैसे ही होली मनाने का भी भी मन ही नहीं है. पिताजी के बिना जैसे सब त्योहार अपनी आभा खो चुके हैं.



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