कल रात्रि एक अद्भुत स्वप्न देखा, एक तालाब में स्वयं को पौधों
के रूप में या फूलों के रूप में उगे हुए ! ढेर सारे चेहरे पानी की सतह पर तैर रहे
थे. किसी जन्म में शायद वह कमल रही हो. आज तक कितने ही स्वप्नों में पिछले कितने
ही जन्मों की कहानी देखी है. कितना अद्भुत है यह जीवन, कितने राज छुपाये हुए.
ध्यान में जो शांति महसूस होती है पता नहीं किस लोक से आती है. कभी-कभी जो
आकृतियाँ दिखती हैं जाने वे कौन हैं ! कुछ भी नहीं जानते वे..सामने रखे मोगरा के
फूलों से जो गंध आया रही है, वह माटी से उपजी है, इतनी कठोर भूमि और इतनी कोमल
पंखुरी, फिर उससे भी सूक्ष्म गंध, और उससे भी सूक्ष्म उस गंध को स्पर्श को महसूस
करने वाली नासिका पर आश्चर्यों का महा आश्चर्य, इस गंध को पहचानने वाला सूक्ष्म मन
तथा इसका आनंद लेने वाली आत्मा..तो कृष्ण भोक्ता हैं, यह तो स्पष्ट हो गया. वही एक
तत्व जो भोक्ता है वही तो प्रकृति के माध्यम से गंध बनकर बिखरा है. जीवन ऊर्जा जो
अनगिनत रूपों में प्रकट हो रही है, स्वयं ही आनंदित भी हो रही है ! पर कैसे यह खेल
चल रहा है, कौन जानता है !
कल फिर एक अनोखा स्वप्न देखा, मस्तिष्क को अपने
सम्मुख देखा और उसमें जगह-जगह निशान बने थे गोल, छोटे-छोटे टुकड़े, जिन पर लिखा था
अज्ञान और वह उसे वहाँ से काट कर निकाल रही थी ! उनके मस्तिष्क में ज्ञान व अज्ञान
दोनों हैं. अज्ञान को दूर करना है यही बात स्वप्न बन कर आई. वास्तव में उन्हें
ज्ञान को बढ़ाना है, अज्ञान अपने-आप चला जायेगा.
कल नन्हे का जन्मदिन है, जून कल आ रहे हैं. इस
समय साढ़े पांच बजने को हैं. बाहर अभी धूप है. कुछ देर पहले बगीचे में काम करवाया.
अभी एक कविता लिखनी है, नये-नये शब्दों से सजी सुंदर कविता. आजकल वह कुछ सुंदर शब्दों
को देखती है और फिर उन्हीं के इर्द-गिर्द अन्य शब्द जैसे अपने आप चले आते हैं, सामान्यतया
भीतर अब मौन ही रहता है, एक सन्नाटा ! मधुरिम नीरवता ! हवा बह रही है, बाहर झूमते
हुए वृक्ष अच्छे लग रहे हैं. कुछ देर में क्लब की एक सदस्या आने वाली है, इसी
महीने क्लब की वार्षिक बैठक है, कुछ देर उसका काम करना है. एक अन्य सखी का फोन
आया, अगले महीने किशोरियों के लिए होने वाला कार्यक्रम एक स्कूल में होगा. उसने अपनी
सब्जी बाड़ी में उगे करेले और लोभिया की फलियाँ भी भिजवायीं. नूना ने भी भात करेले
भिजवाये, जो जरा भी कड़वे नहीं होते, जो उसने असम में आकर ही देखे हैं. जामुन आज
नहीं मिले, पिछले महीने भर से सुबह-सुबह वह रोज मीठे जामुन उठाकर लाती रही है, शाम
को जिसका शरबत जून को बहुत भाता है. जून ने कल दोपहर की टिकट बुक करवायी हैं, कोई
नई फिल्म आई है. वह उसके लिए वस्त्र भी लाये हैं. वे जीवन के रस को भरपूर निचोड़
लेना चाहते हैं. ढेर-सारी खाने-पीने की वस्तुएं भी लाये हैं, उसे बिना मांगे ही सब
कुछ मिल जाता है, परमात्मा की कैसे कृपा है ! उस परमात्मा के लिए वह क्या कर सकती
है सिवाय चंद शब्दों में उसकी महिमा बखान करने के !
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