आज होली है, वे द्रष्टा
बने हुए हैं. उन्हें तो होली हंस बनना है. कंकर-पत्थर को नहीं चुनना है. रतन को चुनना
है, ज्ञान रतन है, मन को इन रतनों से भरना है. जीवन में फिर इनका उपयोग करना है. उनका
कोई भी कृत्य बिना फल दिए नहीं जाता. स्वयं सुनना है और स्वयं को सुनाना भी है,
सुनकर ही वे स्वयं को बदल सकते हैं, जो स्वयं को समझा सकता है वही अन्यों को भी
समझा सकता है. जो भी लिखने में आता है, वह स्वप्न जैसा है और जो सत्य है वह लिखने
में नहीं आ सकता. पवित्रता, दिव्यता और सत्यता परमात्मा के गुण हैं, उनको धारण
करके ही उन्हें काम करना है. मन पवित्र हो, बुद्धि, दिव्य हो और आत्मा सत्य हो तभी
वे परमात्मा को स्वयं के द्वारा प्रकट होने दे सकने में सक्षम होंगे. आज एओल के दो
टीचर (पति-पत्नी) आये थे, कल से बच्चों का कोर्स होगा. अगले तीन दिन शामें व्यस्त
रहेंगी. आज सम्भवतः इस वर्ष की हिंदी की अंतिम कक्षा हुई, अब कुछ दिनों तक तो वह
दोपहर को अपना अन्य कार्य कर सकती है.
आज कोर्स का अंतिम दिन था. एक अनोखा अनुभव हुआ.
शाम्भवी मुद्रा करते समय आज्ञा चक्र पर, सुंदर दृश्य दिखे, चमकदार रंग और फूल
जैसी आकृति फिर अचानक ही तन में विभिन्न गतियाँ होने लगीं. कभी आगे-पीछे, कभी
दायें-बांये फिर गोल-गोल तेजी से घूमने लगा. सारी आवाजें जैसे कहीं दूर घट रही
हों. काफी देर तक बैठ रही, फिर एक ऐसा विचार आया जिससे सारा ध्यान टूट गया, कपड़े
धोने का विचार. फिर आँख स्वतः ही खुल गयी. कोर्स के टीचर को उसने ‘श्रद्धा सुमन’
पुस्तिका की एक प्रति भेंट की है, वह अवश्य पढ़ेंगे. आज बंगाली सखी अपने बेटी के
विवाह का कार्ड देने आयी.
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