Wednesday, July 5, 2017

बच्चों के योगआसन


आज होली है, वे द्रष्टा बने हुए हैं. उन्हें तो होली हंस बनना है. कंकर-पत्थर को नहीं चुनना है. रतन को चुनना है, ज्ञान रतन है, मन को इन रतनों से भरना है. जीवन में फिर इनका उपयोग करना है. उनका कोई भी कृत्य बिना फल दिए नहीं जाता. स्वयं सुनना है और स्वयं को सुनाना भी है, सुनकर ही वे स्वयं को बदल सकते हैं, जो स्वयं को समझा सकता है वही अन्यों को भी समझा सकता है. जो भी लिखने में आता है, वह स्वप्न जैसा है और जो सत्य है वह लिखने में नहीं आ सकता. पवित्रता, दिव्यता और सत्यता परमात्मा के गुण हैं, उनको धारण करके ही उन्हें काम करना है. मन पवित्र हो, बुद्धि, दिव्य हो और आत्मा सत्य हो तभी वे परमात्मा को स्वयं के द्वारा प्रकट होने दे सकने में सक्षम होंगे. आज एओल के दो टीचर (पति-पत्नी) आये थे, कल से बच्चों का कोर्स होगा. अगले तीन दिन शामें व्यस्त रहेंगी. आज सम्भवतः इस वर्ष की हिंदी की अंतिम कक्षा हुई, अब कुछ दिनों तक तो वह दोपहर को अपना अन्य कार्य कर सकती है.  

 आज स्कूल में प्रिंसिपल ने कहा, वार्षिक उत्सव के लिए बच्चों का योग का भी एक कार्यक्रम तैयार करना है. अगले हफ्ते से कक्षा एक से छोटे बच्चों को भी योग सिखाना है, उन्हें एनिमल पोज तथा उनकी चाल सिखाना ठीक रहेगा. उसके बाद असेम्बली कन्डक्ट करनी है. उसने सोचा है, शुरुआत श्लोक से करेगी फिर धर्म सम्बन्धित कुछ जानकारी, उसके बाद योग अंत में राष्ट्रीय गान. कुछ देर बाद जून आने वाले हैं, बाद में उसे श्री श्री योगा कोर्स में भी जाना है. पिछले तीन दिनों का अनुभव अच्छा रहा, कितना अच्छा उसे शब्दों में कहना कठिन है. देह के प्रति सजगता और बढ़ी है, मन के प्रति और स्वयं के प्रति भी. एक स्थिरता का अनुभव हो रहा है. अस्तित्त्व उसके साथ हर पल है. हर जगह, हर श्वास में, हर धड़कन में, वही साक्षी है, वही दृष्टा है, वही अनुमन्ता है, भोक्ता है, अर्थात मन, बुद्धि तथा देह आदि उसी के लिए हैं. उनकी इन्द्रियों के भोग की सीमा है पर माँग अनंत है, अनंत की चाह अनंत से ही मिट सकती है.

आज कोर्स का अंतिम दिन था. एक अनोखा अनुभव हुआ. शाम्भवी मुद्रा करते समय आज्ञा चक्र पर, सुंदर दृश्य दिखे, चमकदार रंग और फूल जैसी आकृति फिर अचानक ही तन में विभिन्न गतियाँ होने लगीं. कभी आगे-पीछे, कभी दायें-बांये फिर गोल-गोल तेजी से घूमने लगा. सारी आवाजें जैसे कहीं दूर घट रही हों. काफी देर तक बैठ रही, फिर एक ऐसा विचार आया जिससे सारा ध्यान टूट गया, कपड़े धोने का विचार. फिर आँख स्वतः ही खुल गयी. कोर्स के टीचर को उसने ‘श्रद्धा सुमन’ पुस्तिका की एक प्रति भेंट की है, वह अवश्य पढ़ेंगे. आज बंगाली सखी अपने बेटी के विवाह का कार्ड देने आयी.


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