अप्रैल का अंतिम दिन ! आज शाम को घर पर मेहमान आ रहे हैं, एक नन्हा
होशियार बच्चा नानू, उसकी माँ और नानी-नाना, एक पुरानी सखी और उसके पतिदेव. भोजन
तैयार है, रोटी और चावल तभी बनेंगे. लोभिया, आलू-मुँगौड़ी, सॉस पनीर, भिन्डी, आम की
चटनी, रायता, सलाद व मीठे में फिरनी व संदेश. आज की शाम सचमुच बहुत अच्छी रहेगी. कल
मई दिवस का अवकाश है या कहें अम्बेडकर जयंती का अवकाश जो बीहू के अवकाश के कारण तब
नहीं मिला था. वे तिनसुकिया जाने वाले हैं. उसे जूता खरीदना है और जून को टीशर्ट.
सुबह कोयल की मधुर आवाज से नींद खुली, कमरे के
पीछे बाहर आम पेड़ पर रहती है शायद. गुरूजी को भी सुना, बहुत भावपूर्ण संबोधन था
उनका. आत्मा को जानने की प्रेरणा दे रहे थे. ज्ञान-प्रवाह में सुना, तन्मात्रा भी
समुदाय है, परमात्मा सूक्ष्मतम है, उसका कोई समुदाय नहीं है, वह अकेला है. मई दिवस
के कारण नन्हे की भी आज छुट्टी है. छोटी बहन ने आज से फिर जॉब आरम्भ की है. दीदी नार्वे
में हैं. छोटी, व मंझली भाभियाँ व्हाट्सएप पर सम्पर्क में हैं. मोबाइल ने सबको
करीब ला दिया है. दोपहर को क्लब की एक सदस्य के घर गयी, साहित्यिक प्रतियोगिता के
लिए आये लेखों, कविताओं आदि को फ़ाइल में लगाया, नाम हटाये तथा उन्हें क्रमांक दिए.
शाम को आर्ट ऑफ़ लिविंग की टीचर के घर गये, उनकी माँ का कुछ दिन पहले देहांत हुआ
था. नर्सरी से पाँच पौधे भी लायी.
सुबह उठी तो लगा भीतर कोई कुछ कह रहा है, बहुत
धीमी थी उसकी आवाज पर बहुत स्पष्ट...मन आजकल कितना ठहरा रहता है. कोई उपस्थिति
ख़ुशबू बनकर फैली रहती है. टहलने गये तो मध्य से ही आना पड़ा, वर्षा शुरू हो गयी जो
अब जाकर थमी है. दिन भर फुहार पड़ती रही. अभी-अभी आकाश में चाँद व एक तारा दिखा. सुबह
ब्लॉग पर लिखा. दोपहर को बच्चों को सूर्य नमस्कार कराया. ओशो को सुना, आर्ट ऑफ़
लिविंग रेडियो पर भजन सुने. इस तरह एक और दिन, मिल गया था जो उपहार में, बीत गया.
परमात्मा की कृपा का अनुभव अब अलग से नहीं होता. हर श्वास उसी की दी हुई है, हर
कोई उसी की वजह से है. उसी की लीला खेली जा रही है. पिताजी से बात हुई, नन्हे से
भी.
आज सुबह से लगातार वर्ष हो रही है. न सुबह का
भ्रमण हुआ न ही शाम को बाहर जा सके, हाँ आधा घंटा जरूर ड्राइव वे पर छाता लगाये टहले.
यू ट्यूब पर ‘भारत एक खोज’ में स्वामी विवेकानन्द पर एक एपिसोड देखा. नया फोन तो
कमाल का है. इसमें बहुत कुछ कर सकते हैं, देख सकते हैं. सुबह टीवी पर महादेव में
इतना डूब गयी थी कि स्वीपर ने आकर कहा, कोई आया है तो समझ ही नहीं पायी. उसने कहा
भी कुछ धीरे से, सांकेतिक भाषा में था, पर सजग रहना चाहिए था. दोपहर लिखने में
बीती. ‘ध्यान’ का विचार सुबह आया था पर अब जब मन हर समय एक सुमिरन में रहता ही है,
अलग से ध्यान करने का मन नहीं होता, इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है, गुरू की
कितनी आवश्यकता है साधक को. मनमानी साधना उन्हें मंजिल तक कैसे पहुंचा सकती है,
कभी लगता है मंजिल पर ही हैं वे, परमात्मा तो यहीं है, अभी है फिर गुरू की चेतावनी
याद आती है कि जिसने सोचा वह पहुंच गया वह भटक गया, यहाँ जो एक बार चल देता है, वह
चलता ही रहता है. परमात्मा का कोई अंत नहीं, उसे कोई जान नहीं सकता, उसकी कृपा का
अनुभव भर कर सकता है. उसका प्रेम अनुभव कर सकता है, उसके प्रति कृतज्ञता के भाव से
भर सकता है ! वह परमात्मा उनका अपना है !
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस : सुनील गावस्कर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
Deleteबढिया डायरीनुमा पोस्ट
ReplyDeleteस्वागत व आभार गगन जी !
DeleteModeration hataa den to behtar
ReplyDeleteदिनचर्या ...आध्यात्म के साथ ...👍
ReplyDeleteस्वागत व आभार अर्चना जी !
Delete