Thursday, July 13, 2017

मनसा देवी का मंदिर


कुछ संस्कार इतने गहरे होते हैं कि मिटने का नाम ही नहीं लेते, आज सुबह प्राणायाम करने बैठी तो सहज ही ध्यान लग गया पर उठी तो किसी बात पर हल्की सी धूमिल रेखा मन पर छा गयी. द्रष्टा बन कर उसे देखा पर मन में एक संशय तो छा ही गया. कल रात छोटे भाई से बात हुई, उसे ध्यान व समाधि का अनुभव सदा होता रहता है. परमात्मा अकारण दयालु है, प्रेमिल है, आनंद स्वरूप है और सहज ही प्राप्य है ! वह वसंत है, हर पीड़ा का अंत है ! सद्गुरू, परमात्मा और आत्मा में कोई भेद नहीं ! भीतर से जो ज्ञान का पथ दिखलाता है, वही तो गुरू है !

आज स्कूल गयी, योग की कक्षा आखिरी कक्षा में होनी थी, चटाई की दीवार है उस कमरे की, शेष को बरामदे में खड़े होकर करना पड़ा, खैर, न से तो हाँ भली. अगले हफ्ते से स्कूल में छमाही परीक्षाएं आरम्भ हो रही हैं, इसके बाद स्कूल बंद हो जायेगा, फिर अगस्त में खुलेगा, यानि अब हर सोमवार को जल्दी-जल्दी काम निपटा कर स्कूल नहीं जाना है. शाम को भांजियों को लेकर क्लब जाना है, बच्चों का वार्षिक सम्मेलन चल रहा है इन दिनों. मौसम गर्म है आज भी, दिल्ली का तापमान कल अड़तालीस डिग्री था, अब तक का सबसे अधिक ! कल मेहमान वापस जा रहे हैं. जैसे वह उन्हें लिवाने गयी थी, कल उन्हें छोड़ने भी जा रही है. वे ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर पहुंच जाएँ और बड़ी भांजी के जीवन में सब कुछ पहले का सा ठीक हो जाये तभी माना जायेगा कि उनका यहाँ आना सफल रहा. परमात्मा उनके साथ है और वह उन्हें सही मार्ग दिखायेगा. ज्ञान हो जाने के बाद पुराने कर्मों का क्षय होता है, नये कर्म नहीं बंधते. आज मृणाल ज्योति में एक कार्यक्रम है. विकलांग व्यक्तियों को सरकार की ओर से व्हील चेयर व साइकिल वितरित किये जायेंगे. उसे जाना है.

आज पूरे छह दिनों के बाद डायरी खोली है. उस दिन मेहमानों को छोड़ने गयी, कल उनके लिए कविता लिखी. हर कविता के अवतरण का एक समय होता है, उससे पहले वह आती ही नहीं, जबकि विद्यमान तो रहती ही है. माली से कह कटहल व नारियल तुड़वाकर एक सखी के यहाँ भिजवाने हैं. दो मालियों में से एक काम छोड़कर जा रहा है, उसने लाइन में किसे के साथ झगड़ा कर लिया है, उसे अपने क्रोध पर नियन्त्रण नहीं है. उसे गमले रंगने के लिए कहा था, अभी तक उसने शुरू नहीं किये हैं. कुछ लोग दीर्घसूत्री होते हैं, काम को टालने वाले, जैसे उसने भी अभी तक आत्मा को जानने का काम पूरा नहीं किया है. यह एक अंतहीन यात्रा है. गुरू के बिना मार्ग नहीं मिलता. कदम-कदम पर सहायता चाहिए. सब कुछ ज्ञात होते हुए भी मन पुरानी लकीरों पर पल भर के लिए ही सही चलता तो है. पर अब उसे देखने वाला मौजूद है. आत्मा वे स्वयं हैं, खुद को जानने के लिए तो खुद को ही होश बनाये रखना होगा !

आज महादेव देखा. वे स्वयं को पृथक समझते हैं, यही द्वंद्व है. ‘मनसा’ शिव की मानस पुत्री है और स्वयं को देवी बना हुआ देखना चाहती है, स्वयं की पूजा करवाना चाहती है. पार्वती स्वयं ही दूसरा रूप धारण कर शिव से विवाह करना चाहती है. उनका मन भी आत्मा से पृथक अपनी सत्ता जमाना चाहता है और व्यर्थ ही बंधता है. मनसा और पार्वती शिव को नहीं जानती, मन कितना ही प्रयास करे आत्मा को नहीं जान सकता. आत्मा ही आत्मा को जान सकती है. आज मंगलवार है, शाम को बच्चे आयेंगे. अभी प्रसाद बनाना है.  



2 comments:

  1. एक जीवन एक कहानी सदा एक अनुभव है. आज भी.

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  2. सही कहा है आपने...जीवन अनुभवों की ही तो दीर्घ श्रृंखला है..स्वागत व आभार !

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