भारत-दक्षिण अफ्रीका का
मैच हो रहा है, भारतीय टीम पिट रही है. उसने ईश्वर से प्रार्थना की कि उसे शक्ति
प्रदान करें, वह खेलें तो सही भले ही जीत न पायें. आज वे रोज गार्डन गये, सुंदर
गुलाब खिले थे, उनके बगीचे में भी खिले हैं. छोटे भाई का फोन आया परिवार में सब
सामान्य है.
आज नवम्बर का अंतिम दिन
है. पिछले दिनों नियमित नहीं लिख पायी. लिखे, ऐसा विचार भी नहीं आया. जिस लक्ष्य
के लिए लिखना आरम्भ किया था ऐसा लगता है कि कुछ हद तक उसे पा लिया है, तभी शिथिलता आ गयी थी, लेकिन अपने आपको वे
जानकार भी कहाँ जान पाते हैं, वे वास्तव में जो हैं उसे हर क्षण स्मृति में नहीं
रख पाते. जब एक क्षण के लिए भी उसकी विस्मृति नहीं होगी तभी वे समझेंगे कि लक्ष्य
पा लिया है, तब तक सचेत रहना होगा, निरंतर सजग रहना होगा. इस समय दोपहर के एक बजे
हैं, उसका पेट भरा-भरा सा लग रहा है और दांत में हल्का सा दर्द है, देह की हर
छोटी-बड़ी संवेदना की तरफ तो ध्यान जाता है पर मन में उठने वाला विकार तब पकड़ में
आता है जब देह में कुछ अनुभव होता है. कोई गलत काम होने पर शरीर जैसे जलने लगता
है. ऐसा सदा ही होता आया होगा, पर पहले वह अचेत थी. उसने विचार किया कि इस क्षण
किसी को कुछ देना शेष तो नहीं रह गया है. तीन दिसम्बर को विश्व विकलांग दिवस है,
जाना है तथा आज शाम को सत्संग में जाना है. कल जून ने कहा कि वह उसके बालों को काला
रंग कर देंगे, उसके सौन्दर्य की चिंता उससे अधिक उन्हें है. कल शाम भी पिछले
दो-तीन दिनों की तरह टीवी पर गुरूजी का कोल्लम से आ रहा सत्संग देखा, वह कन्नड़ में
बोल रहे थे या मलयालम में समझ में नहीं आया. जनवरी में वे एडवांस कोर्स करने
जायेंगे, फरवरी में शायद कुम्भ मेला देखने जाएँ.
मनोरंजन पर आत्म रंजन
का, भोग पर योग का, राग पर विराग का तथा अज्ञान पर ज्ञान का अंकुश लगना चाहिए. अभी
कुछ देर पूर्व ही लगा कि अंकुश कुछ ढीला पड़ा, एक क्षण के लिए, किन्तु उतनी ही देर
जितनी देर एक लहर पानी में उठे और गिरे ! इस वक्त दोपहर के साढ़े तीन होने को हैं.
वह कल सुबह की तैयारी कर रही है. कल सुबह बच्चों को पार्क में बुलाकर उन्हें कुछ
सिखाना है, उनसे कुछ सीखना है, प्राणायाम करते हुए बच्चे बहुत अच्छे लगते हैं, वे
सहज ही सब सीख जाते हैं. कल वह उन्हें एक कहानी भी सुनाने वाली है. आज सुबह
शुद्धात्मा देखने का एक अवसर मिला और भीतर कैसा सुकून ..वे आत्मा के स्तर पर आपस
में जुड़े ही हैं, इस बात को जब एक बार अनुभव के स्तर पर जान लेते हैं तो सदा के
लिए शांति की एक कुंजी हाथ लग जाती है. आज सुबह ध्यान में ऊर्जा का अनुभव हुआ, कल
एक वृद्धा का अजीब सा चेहरा दिखा था, कुछ झलक सी थी. उनके अवचेतन में न जाने कितने
जन्मों के संस्कार दबे पड़े हैं, जो हर वक्त विचारों के रूप में मन में चक्कर लगाते
हैं. विचार जिनकी गिरफ्त से बचना ही साधना है. वे जब किसी न किसी उद्देश्य पूर्ण
कार्य में लगे रहते हैं तो भीतर एक ऊर्जा स्वयं ही निर्मित होती रहती है और जब
जीवन में कोई ध्येय नहीं होता तो वह ऊर्जा जैसे मंद पड़ जाती है, उसकी आंच कमजोर हो
जाती है. लिखने से उसके भीतर एक ऊर्जा का जन्म होता है. ‘लिखना’ बस लिखने के लिए
लिखना हो तो !
आज इस क्षण वह बिलकुल
अपने सामने है, कहीं कोई दुराव नहीं, जैसी वह है बिलकुल वैसी. इस क्षण उसके भीतर
कोई कामना शेष नहीं है, सो भीतर शांति है, कुछ पाना भी नहीं है तो कुछ खोने का भी डर
नहीं है. जीवन जैसा है वैसा ही स्वीकार रही है. तन स्वस्थ है, मन समाहित है, हृदय
सारी सृष्टि के लिए शुभकामना से भरा है. जीवन एक लय में आगे बढ़ रहा है. इस जगत में
जो श्रेष्ठ है वह भीतर पहले से ही है. वह सहज प्राप्य है तो वे और क्या अभिलाषा
करें. इस संसार में जो सर्वश्रेष्ठ है वह है प्रेम और वह प्रेम उसके भीतर उदित हुआ
है, आत्मा के लिए, परमात्मा के लिए, सद्गुरु के लिए, ज्ञान के लिए तथा सारे जहाँ
के लिए. जब प्रेम होता है तो वह सबके लिए होता है, वह कोई भेद नहीं देखता, वह
महत्वाकांक्षी भी नहीं होता, वह मृदुल जल के प्रवाह की तरह विनीत होता है, सभी को
तृप्त करता है. वह सूर्य की किरणों की तरह सबको प्रकाशित करता है. इस जीवन में उसे
जो सहयात्री मिले हैं सभी के लिए ढेरों शुभकामनायें हैं. सभी अपनी-अपनी तरह से
अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाने में रत हैं. परसों नन्हा आ रहा है उसकी दिनचर्या कुछ
बदल जाएगी, घर में कुछ दिन चहल-पहल होगी और कुछ नई बातें होंगी. इसी तरह साल दर साल
गुजरते जायंगे और एक दिन मृत्यु उनके सामने खड़ी होगी, वे उसकी आँखों में आँखें डाल
कर पूछेंगे, कहो, कहाँ ले जाने आई हो ? इस जीवन को तो पूरा-पूरा जी लिया और किस
रूप को दिखाने आई हो ? मृत्यु की बाँह पकड़ कर वे नई यात्रा पर निशंक होकर चल
देंगे. जिसको कुछ देना-पावना नहीं मृत्यु तो उसके लिए खेल है !
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