आज का दिन विशेष है. अख़बारों में लिखा
है कि इस तिथि को जब तारीख, महीना तथा वर्ष तीनों एक ही हैं तो कोई दुखद घटना घट
सकती है. पर उसके लिए तो यह दिन, बल्कि हर दिन ही शुभ दिन है क्योंकि भीतर ज्योति
जली है, भीतर संगीत जगा है तथा भीतर प्रेम की कली खिली है. मन के सिंहासन पर
सद्गुरु सम भगवान को और भगवान सम सद्गुरु को प्रतिष्ठित किया है. जीवन एक शांत
धारा के समान प्रवाहित हो रहा है पर उसमें नीरसता नहीं है, सरसता है !
आज एकादशी है, जून आज भी फील्ड गये हैं. टीवी पर गुरूजी को देखा सुना. वह गूढ़
ज्ञान को जिस तरह सरल शब्दों में व्यक्त कर देते हैं, वह अतुलनीय है. आज उन्हें
सुनकर हर बार की तरह उनके चरणों में शीश झुक गया. कल भी उन्हें सुना तो प्रायश्चित
तथा पश्चाताप का नया अर्थ सुना. जब चित्त पहले का सा हो जाये तो प्रायश्चित घटता
है. किसी से कोई भूल हुई, हृदय ग्लानि से भर गया, भीतर पीड़ा हुई, पश्चाताप हुआ तब
प्रायश्चित किया और हृदय पूर्ववत हो गया तब वह उस भूल से छूट जाता है. वे हर शब्द
में नया अर्थ भर देते हैं. रक्तबीज का उदाहरण देकर कहा कि ध्यान की गहराई में जाने
पर जीवन में परिवर्तन हो जाता है. कोई बार-बार होने वाली भूलों से बच जाता है,
वरना रक्तबीज की तरह एक विकार को दूर करते ही दूसरा सर उठाकर खड़ा हो जाता है. कोई
पूर्ण मुक्त होकर जीना चाहता है तो गुरू की शरण से बढ़कर कोई उपाय नहीं है. उसे
लगता है ज्ञान जीवन की सबसे अमूल्य निधि है, उसका होना तभी सार्थक है जब हृदय में
परमात्मा का वास हो, आँखों में उसकी छवि हो और श्वासों में उसके ज्ञान की खुशबू
हो. परमात्मा ही परम पुरुष हैं, वही तो वह हैं जिन्हें वेदों में पुराण पुरुष कहा
गया है. और ऐसे भगवान कितने सहज प्राप्य हैं, उन्हें एक बार प्रेम से पुकारो तो
सही.. वे तत्क्षण उत्तर देते हैं.
आज शाम को सत्संग मे जाना है. फूलों का गुलदस्ता लिए, अनौपचारिक ढंग से मुख से
हरिनाम का उच्चारण करते हुए स्वयं को पाने के लिए, जो स्वयं को भुलाकर ही सम्भव
है. झूठी पहचान जब मिटती है तो सच्ची पहचान जगती है. खुद को खोकर ही कोई खुद को
पाता है. आज उसके भीतर कैसी पीड़ा ने जन्म लिया है, यह कुछ खोने का अहसास है. कोई
प्रिय जैसे बिछड़ा जा रहा हो, यह पीड़ा भीतर की है, इसका समाधान भी भीतर ही मिलेगा !
यह पीड़ा मुक्ति का साधन बनेगी !
दोपहर के तीन बजने को हैं, आज कई दिनों के बाद उसने पढ़ाया नहीं बल्कि स्वयं
पढ़ा है. कल सुबह बच्चों को सिखाने जाना है. कल सत्संग में आर्ट ऑफ़ लिविंग की एक
स्थानीय टीचर ने ब्लेसिंग कोर्स के अपने अनुभव कहे. चार एडवांस कोर्स करके कोई भी
यह कोर्स कर सकता है तथा इसे करने के बाद दूसरों को आशीष दे सकता है, गुरूजी उसके
माध्यम से दूसरों को ब्लेस करेंगे, उसके बदले में कुछ दान-दक्षिणा देनी होगी, जो
सीधे आश्रम जाएगी. उसे पहले-पहल तो अटपटा सा लगा कि कृपा का भी कोई मूल्य हो सकता
है क्या ? फिर बुद्धि ने कहा कि यह बात उसकी समझ से बाहर है अतः वह उसका भरोसा न
करे, जब वह भी इस कोर्स को कर लेगी तभी इसका अनुभव होगा, अभी तो मात्र कल्पना ही
कर सकती है. सद्गुरु के प्रति यदि मन में संशय जगेगा तो हानि स्वयं की ही होगी, अतः
अब उसने इस बारे में सोचना छोड़ दिया है. संतों-महापुरुषों के आचरण के बारे में उन्हें
टिप्पणी करने का क्या अधिकार है, उन्हें तो उस राह पर चलना है जो बतायी गयी है.
योग और ध्यान की राह पर चलने से उनका लाभ ही लाभ है. श्रद्धा उन्हें निज स्वरूप तक
ले जाएगी और अश्रद्धा कहीं भी नहीं, तो अच्छा यही है कि वह अपने काम से काम रखे और
उन बातों के बारे में व्यर्थ ही न सोचे जो उसकी समझ से बाहर हैं !
आज एक सखी का जन्मदिन है, शाम को वे जायेंगे. इस समय दोपहर के साढ़े बारह बजे
हैं, वर्षा लगातार पिछले कई दिनों से हो रही है, ठंड हो गयी है. निर्माणाधीन कमरे
में मजदूर काम कर रहे हैं. वर्षा में भीगते हुए पंछी भी किसी तरह अपना दाना जुटा
रहे होंगे ! तिनसुकिया में बम ब्लास्ट की
खबर अभी एक सखी ने सुनी, तब उसे बतायी.
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