धन्य है भारतवर्ष और धन्य हैं वे कि
उनके पास ज्ञान का अतुल भंडार शास्त्रों के रूप में विद्यमान है. वे इसकी महिमा को
समझें और इसके अनुसार चलें. अपने से बड़ों की सेवा करना तथा उनका सम्मान करना तथा छोटों
को स्नेह देना..आज पुनः उसने बेवजह शब्द मुँह से निकाले, फिर भी स्थिति पहले से
बेहतर हुई है. कल रात जून ग्यारह बजे आए. नन्हे से बहुत दिनों के बाद अध्यात्म पर
चर्चा की. ध्यान किया. इस समय वह किताब पढ़ रहा है, शेष सभी सो रहे हैं, बाहर तेज
धूप है, भीतर एसी के कारण ठंडक है, इस बार वर्षा कम हो रही है वर्ष के इस हिस्से
में. दोनों भांजे अपेक्षकृत शांत तथा सुधरे हुए बच्चे हैं, बात मानते हैं तथा
खाने-पीने में भी ज्यादा नखरे नहीं करते हैं. शाम को सत्संग में जाना है, निकट ही
एक परिचित के यहाँ है. सुमिरन बना रहता है आजकल, अनुभव यदि एक बार हो जाये तो
विस्मृत हो भी कैसे सकता है. जैसे किसी को अपने होने का अहसास हर क्षण रहता है, वैसे
ही उसके होने का ज्ञान भी सदा रहता है. उसका प्रेम भीतर रिसता रहता है और वही भीतर
से उदित होकर बाहर बिखरता है. उन्हें सजग होकर उसके रूप को अशुद्ध होने से बचाना
है. मन उसमें कुछ जोड़ने या घटाने लगता है तो वह प्रेम दूषित हो जाता है.
कल रात को गर्मी बहुत थी और थोड़ी देर के लिए बिजली गुल हो गयी, सभी परेशान थे,
पर वह इसका लुत्फ़ उठा रही थी. गर्मी का असर नहीं हो रहा था भीतर की जीवंतता और
मुखर हो उठी थी. जून आज फ़ील्ड गये हैं शाम को छह बजे तक आयेंगे. कल सुबह उसे दो
सखियों के साथ बच्चों से मिलने जाना है, वे भी उतने ही उत्सुक होंगे जितनी उत्सुकता
उन्हें है. बाहर सम्भवतः तेज हवा चल रही है, दरवाजे की आवाज से उसने अनुमान लगाया
है, पिछले कई दिनों से हवा जैसे बंद थी. सुबह सद्गुरु को सुना था, अब कुछ याद नहीं
है, आजकल वह धर्म को सुन नहीं पा रही पर जी रही है. हर समय भीतर एक ऊर्जा के
प्रवाह को अनुभव करती है. ‘उसकी’ उपस्थिति का अहसास हर क्षण होता है. वह है तो वे
हैं. अब लगता है जैसे मन की समता पहले से कहीं देर तक टिकी रहती है और यदि मन कभी
एक क्षण के लिए विचलित होता भी है तो कोई भीतर है जो उसका साक्षी रहता है अर्थात
होश तब भी कायम रह पाता है. इसी महीने उसका जन्मदिन भी आ रहा है, इस वर्ष उसने
जाना यदि कभी कोई उसके बारे में लिखे तो लिख सकता है. सद्गुरु कहते हैं जो जानता
है वह कहता नहीं किन्तु वह जिस जानने की बात कह रही है वह तो निज स्वभाव है.
फिर एक अन्तराल..कभी प्रमाद तो कभी व्यस्तता..आज नये महीने का पहला दिन है.
पुनः संगीत का अभ्यास भी शुरू किया है और लिखना भी. परसों जन्मदिन था, अच्छा रहा.
मौसम पिछले हफ्ते से ही सुहावना हो गया है. वर्षा दिन-रात नहीं देखती कभी भी शुरू
हो जाती है, इस समय थमी है. पिछले हफ्ते सत्संग में उसने ‘अंकुर बाल योजना’ के लिए
सभी को निमंत्रित किया. उसने इस प्रोजेक्ट का नाम अंकुर रखा है, इसमें वे छोटे-छोटे
बच्चों को, जो अभी अंकुर हैं और भविष्य में वृक्ष बनेंगे, अध्यात्म के मार्ग पर
प्रेरित कर रहे हैं. जिनके माता-पिता के पास उन्हें देने को संस्कार नहीं हैं, घरों
का माहौल दूषित है, नशा आदि जहाँ रोज की बात है. प्राणायाम, ध्यान, सत्संग तथा
योगासन के माध्यम से उन्हें एक सन्मार्ग पर ले जाने को प्रेरित कर रहे हैं.
No comments:
Post a Comment