Sunday, August 2, 2015

मोनालिसा की मुस्कान


आज बहुत दिनों का एक ऋण चुकता हो गया, काफी दिनों पहले एक परिचिता आयी थीं, आज सासूजी के साथ वह उनके घर गयी. इस समय वह फिल्म देख रही हैं, आज कोई टीवी बंद करने वाला नहीं है, वरना जून के दफ्तर से आते ही उन्हें टीवी बंद करना होता है. किसी बात की जल्दी नहीं है, अभी कुछ देर पहले ही वे दोनों चाय पीकर आ रही हैं.

आज कर्नाटका में भगवान बाहुबली का मस्तकाभिषेक है. कितनी विशाल मूर्ति है जिसे जल, दूध, घी तथा शहद आदि से नहलाया जा रहजा है. उसे आश्चर्य होता है उनके देश में कितनी ही जातियों और धर्मों के लोग रहते हैं था सभी अपने-अपने उत्सवों को पूरी श्रद्धा के साथ मनाते हैं. किसी जगह ‘मर्यादा उत्सव’ भी मनाया जा रहा है, महामुनि का भाषण सुना था, वह ‘प्रेक्षा ध्यान’ पर जोर देते हैं, विपश्यना जैसा ही लगता है यह ध्यान भी. आत्मा को जानने की बात तो सरदार जी भी कहते हैं, भीतर जाकर अंड, पिंड, ब्रहमांड के खंडों से पार सचखंड में जाने की बातें..वही स्थूल, सूक्ष्म तथा कारण शरीर से परे जाने की बात. क्रन्तिकारी मुनि कहते हैं कि यह जगत एक भड़भूजे का भांड है जिसमें जब थोडा सा ढक्कन हटता है तो कोई चना उछल कर बाहर आ जाता है जैसे रामकृष्ण परमहंस जाल में फंसी  मछलियों का उदाहरण देते थे, शेष तो भूनते ही रहते हैं तीनों तापों से. आज उसका अंतर एक अनोखी शांति से ओत-प्रोत है, व्रत भी रखा है एकांत, मौन और हल्का भोजन शायद इसी का फल है यह भीतर की  शांति ! पिछले हफ्ते यहाँ जिस व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली थी उसकी पूरी कहानी अब समझ में आने लगी है, दोपहर को लिखेगी. लेडीज क्लब की अध्यक्षा पर कविता भी लिखनी है. उनका अंतर बच्चों के लिए प्रेम से भरा है, समाज सेवा का अवसर वे चूकती नहीं, उनके पति को कई उच्च सम्मान मिले हैं, जिसके पीछे यकीनन उनका भी हाथ है. ‘गैराज सेल’ का विचार भी उन्होंने महिला सभा में उन्हें दिया था पर उसने कभी अमल नहीं किया. दान में ही उसका विश्वास है.


दो दिनों से हल्का जुकाम उसे परेशान किये था. कल दोपहर को धूप में बैठकर ‘मोनालिसा’ के जीवन की कहानी पढ़ती रही, पन्द्रहवीं शताब्दी के इटली के इतिहास पर आधारित कोई पुस्तक पहली बार पढ़ी, ‘लियोनार्दे दा विंसी’ के बारे में भी पढ़ा. उसके बनाये चित्रों में ‘लास्ट सपर’ तथा ‘मोनालिसा’ विश्व प्रसिद्ध हैं. वह छोटे से जीवन में सभी कुछ एक साथ होना चाहता था, पेंटर, मूर्तिकार, वैज्ञानिक, इंजीनियर, डाक्टर तथा और भी जाने क्या-क्या. योरोप के लोग उस वक्त अंधविश्वासों में जकड़े थे. चर्च में कितना भ्रष्टाचार था. राजाओं की सनक को पूरा करने के लिए हजारों जानें यूँही चली जाती थीं, कितना घोर अँधेरा था. विज्ञान की उन्नति के साथ-साथ कितना बदलाव आया. उस समय वहाँ के लोग अमेरिका से परिचित नहीं थे. कला का विकास हो रहा था. ऊन तथा सिल्क की फैक्ट्रियां लगाई जा रही थीं. ‘दा विंसी’ की कितनी ही योजनायें असफल हुईं पर उसकी कलाकृतियाँ अमर हो गयी हैं, साथ ही मोनालिसा भी. आज शाम को सत्संग है, दोपहर को उसे एक कविता लिखनी है, रचना और रचनाकार दोनों ही इस ब्रह्मांड में पहले से ही होते हैं दोनों को मिलाने का एक क्षण होता है वह क्षण आज ही आएगा. कल परसों  सारा-सारा दिन वर्षा होती रही, आज थमी है, धूप की एक झलक दिखला कर आकाश फिर बादलों से भर गया है. किताबें एक नई दुनिया में ले जाती हैं, जैसे योग-वसिष्ठ पढ़ते समय शरीर का भान ही नहीं रहता तथा भगवद् गीता पढ़ते समय अपना मन स्पष्ट दिखाई देता है अपनी प्रकृति के साथ..     

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