उसने प्रभु से जो माँगा है, वह उसने उसे प्रदान किया है. उसने
उससे ‘सदगुरू’ मांगे थे जो सहज ही उसे मिले, स्वयं ही उसके जीवन में आये. उसने
उससे भक्ति मांगी जो प्रेम के रूप में उसके रग-रग में समाई है. उसके भीतर अनंत
प्रेम उस परमात्मा ने भर दिया है कि उसके लिए उसका अंतर छोटा पड़ता है, तो उसने
उससे सेवा का अवसर माँगा और अब उन्हें एक दिन गुरूजी के जन्मदिन के उपलक्ष में
सेवा का कार्य करना है. अवश्य ही उनका प्रयास सफल होगा. वे अपने साधनों के द्वारा
तथा अपने प्रेम के द्वारा उन लोगों तक पहुंचेंगे जो एक तरह से उनके समाज का अंग
होते हुए भी उनसे कटे हुए हैं. उनके घरों
में काम करने वाली महिलाओं के घरों की वास्तविक स्थिति से वे अनभिज्ञ ही हैं. उनके
दिलों में झांककर कभी देखा ही नहीं. उन्हें भी उनका प्रेम व ज्ञान मिले तो वे अपने
परिवारों को अच्छा पोषण दे पाएंगी. उसका इरादा नेक है और सद्गुरु की कृपा है. सेवा
करने का भाव भीतर प्रकट हो तभी से सफलता का आरम्भ हो जाता है. वे अपना आप देना
चाहते हैं, सामुदायिक चेतना का विकास करना चाहते हैं. जो भी धर्म के मार्ग पर चलता
है उसकी मंजिल लोक संग्रह ही होती है, सभी के भीतर उसे परमात्मा की छवि दिखाई पड़ती
है. परमात्मा से प्रेम करने का अर्थ ही है उसके बन्दों के काम आना.
आज सुबह वे उठे तो
वर्षा हो रही थी, वर्षा होने में कर्ता तो कोई भी नहीं, फिर भी कार्य तो हुआ, कृष्ण
कहते हैं जो कर्म में अकर्म को देखता है अर्थात कर्तापन से मुक्त है और जो अकर्म
में कर्म को देखता है अर्थात कुछ न करते हुए भी करता है, उसके द्वारा सहज ही कृत्य
हो रहे हैं. वे कर्म तो करें पर फल की इच्छा न हो तो कितनी परेशानियों से बचे रहते
हैं, जब कुछ भी न करें तो न करने के अपराध बोध से भी ग्रसित न हों, क्योंकि सहज
रूप से जो सामने आये वही करना तथा विशेष कर्म का आग्रह न रखना भी साधक के लिए
आवश्यक है. उसने सोचा नहाना-धोना, भोजन आदि कर्म तो सहज ही होते हैं, लिखना-पढ़ना
भी होता रहे, सामने कोई पत्थर आ जाये तो हाथ उसे उठाते रहें, कोई दुखी आये तो हाथ
उसके आँसूं पोछते रहें, पर करने का अभिमान न आये, तभी वह कर्मों के बंधन से मुक्त
रहेगी. मन खाली रहेगा और खाली मन में प्रभु आकर बसते हैं. पता नहीं कौन सा पल होगा
जब उसे ऐसा अनुभव होगा.
आजकल वह एक नई
पुस्तक पढ़ रही है. अच्छी है, प्रकृति के नियमों की जानकारी यदि उन्हें हों और वे उसके
अनुसार जीना शुरू कर दें तो जीवन एक उत्सव बन जाता है, उनका हर क्षण एक अमूल्य
अनुभव ! वे इस धरा पर मानव देह पाकर एक अनोखी यात्रा पर निकले हैं, वह यात्रा है
उनके भीतर की यात्रा, अनंत सम्भावनाएं उनके भीतर छुपी हैं. अनंत ऊर्जा, आनंद तथा
शांति का खजाना उनके भीतर है. वे जब इस धरा पर आये थे तो निर्दोष थे. जगत के
प्रभाव में आकर दिन-प्रतिदिन अपने मूल स्वरूप पर आवरण चढ़ाते गये, वे असहज होकर
जीने लगे और परिणाम हुआ कि वे अपने भीतर एक दर्द और तथा डर को जगह देते गये. जब-जब
वे अपने मूल स्वरूप से खिलाफ कार्य करते हैं, तब-तब एक दर्द भीतर उत्पन्न होता है.
उनके भीतर जो परमात्मा है वह साक्षी है उनके कृत्यों का. वे ऊपर-ऊपर से अपनी
गलतियों पर भले पर्दा डाल दें या उन्हें उचित सिद्ध कर दें, भीतर जो सही है वही
सही है, जो गलत है वह गलत है. उनके भीतर जो डर हैं, वे भी उन्हें सच बोलने से रोकते
हैं. वे डरते हैं कि यदि लोगों से ज्यादा प्रेमपूर्ण व्यवहार करेंगे तो फंस
जायेंगे, डर के कारण ही वे अपने भीतर के प्रेम को घुट-घुट कर खत्म हो जाने पर विवश
कर देते हैं. प्रेम करना उनका स्वभाव है, सत्य बोलना भी उनका स्वभाव है, दया,
करुणा तथा अपनत्व.. ये भी उनका मूल स्वभाव है इसके विपरीत जो भी है, वह झूठ है, ओढ़ा
हुआ है और वह उन्हें नुकसान पहुँचाता है !
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