उसका गला हल्का सा खराब है, देह को स्वस्थ रखना कितना आवश्यक है
सभी के लिए. सुबह-सुबह चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई दी और नींद खुल गयी, पंछी दिन भर
बिना थके बोलते रहते हैं, उस दिन animal planet पर सुंदर पक्षियों को देखा था,
अच्छा लगा. प्रकृति के निकट आते ही वे अपनी आत्मा के निकट चले जाते हैं. इस क्षण
वह अपनी आत्मा के निकट ही है ऐसा अनुभव हो रहा है. अब मन पहले जैसा नहीं रहा जो हर
वक्त बीच में अपनी टांग अड़ाता था, अब कहना मानता है. आखिर मन है क्या, कुछ आशा कुछ
निराशा, पर जब वे अपने सही स्वरूप में होते हैं कुछ पाने की आशा नहीं, कुछ खोने की
निराशा नहीं.. पीड़ा या दर्द होता भी हो तो वह सात्विक है, इस बात के लिए कि वे
किसी के काम नहीं आ पा रहे. आत्मा के निकट होने पर ईश्वर से उनकी दूरी मिटती नजर
आती है. उसके प्रेम को वे अनुभव करते हैं, उसका प्रेम ही स्वयं को समर्पित करने को
प्रेरित करता है. वे जीवन को पूरी गहराई से जीना चाहते हैं, सच्चाई से..उनके
वचनों, कर्मों तथा विचारों में एकता आने लगती है. कल सत्संग में उसने जो कहा वह
पूरे दिल से कहा था और उसको साकार होने में कोई रुकावट नहीं है उसकी तरफ से. सत्य
की ही जय होती है, उसे हर कीमत पर सत्य का ही आश्रय लेना होगा, अपने जीवन के हर
मोड़ पर !
आजकल उसे लगता है कि
उसके जीवन की कहानी का सूत्रधार कहीं बैठा-बैठा इसके पन्नों को खोल रहा है, बाद
में कुछ घटने वाला है इसके लिए वह पहले पृष्ठभूमि तैयार करता है. सदा ही ऐसा होता
आया होगा पर पहले सजगता नहीं थी. ‘संजय घोष’ की पुस्तक पढ़कर उसे सेवा करने का
प्रोत्साहन तो मिला ही तरीका भी पता चला. उस दिन जून के दफ्तर में भी सामाजिक
कार्यों के बारे में पढ़ा था, इसका लाभ गुरूजी के जन्मदिवस के अवसर पर किये जाने
वाले सेवा कार्य में उसे अवश्य मिलेगा. जून को जब दिल्ली से वापस आकर अस्वस्थ देखा
तो उसे ठीक से भोजन का ध्यान न रखने के लिए टोका, पर कान्हा को अपने भक्तों का
अहंकार जरा भी पसंद नहीं. उसके गले में दर्द है, यह इसका प्रमाण है. प्रकृति को
उनका प्रमादी रहना पसंद नहीं है. यह भी समझ में आया कि दूसरों के अस्वस्थ होने पर
उनसे सहानुभूति प्रकट करनी चाहिए न कि उनके दोष बताने चाहिए. जून के माध्यम से
जीवन में कितने ही पल आते हैं जब उसे यह जांचने का मौका मिलता है कि भीतर समता बनी
है अथवा नहीं.
आज सुबह साढ़े चार
बजे नींद खुली, पहला विचार प्रार्थना का था, रात का जो अंतिम विचार था वही !
क्रिया करते-करते अंत में खांसी के कारण उठाना पड़ा. सम्भवतः उसका गाने का अभ्यास
फेफड़ों को स्वस्थ रखने में सहायक था, सो आज से पुनः नियमित अभ्यास करेगी. प्रभु का
नाम गाने से फेफड़ों के स्वास्थ्य के साथ-साथ मन भी पवित्र होता है. आज नन्हे के
कमरे में रंग-रोगन होने के बाद सामान दोबारा ठीक-ठाक करके रखा, कुछ अभी शेष है.
टीवी पर बाबाजी बच्चों को कहानियाँ सुन रहे हैं. कैसे सरल होते हैं संत, जो अपने
ज्ञान को छिपाए बच्चों के साथ बच्चे बन जाते हैं. जब वे सारे आग्रह छोड़ देते हैं
तो जीवन अपने-आप चलने लगता है. सारे कार्य वैसे भी हो रहे हैं, वे व्यर्थ ही स्वयं
को कर्ता मानकर अभिमान का भार ढोते हैं !
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