पिछले दिनों घर में काम चलता रहा और होली की तैयारी भी, कल ‘होली’
भी होली ! होली के लिए जो हास्य कविता लिखी उसके अतिरिक्त कुछ नहीं लिखा पिछले
दिनों, पढ़ा भी नहीं. बस कानों में प्रभु का नाम अवश्य पड़ने दिया. कृष्ण के प्रेमावतार,
रसावतार की चर्चा कल होली उत्सव में सुनी तो हृदय द्रवित होकर बहने लगा. यह कमरा
अब बहुत साफ-सुथरा लग रहा है, धुले हुए पर्दे, दीवारों पर नया-नया डिस्टेम्पर तथा
फर्श पर पॉलिश. परसों उन्हें यात्रा पर निकलना है. उसे विश्वास है बैंगलोर प्रवास
के दौरान गुरूजी से भेंट होगी. उसके जीवन की यह पहली यात्रा है जब वह किसी आश्रम
में कुछ समय व्यतीत करने के उद्देश्य से जा रही है. उसका मन गहन शांति का अनुभव कर
रहा है, हृदय प्रेम और श्रद्धा से भरा है. आज शाम को साप्ताहिक सत्संग में जाना
है. आज ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ की एक महिला टीचर से बात की, जो उम्र में उससे छोटी है. बात
करते ही लगा वह कितनी स्थिरमना है. वह सद्गुरु के निकट रह चुकी है, कितनी साधना
उसने की है, वह परिपक्व है. उसने सोचा क्लब की मीटिंग में उसे बुलाएगी, वह अन्य
महिलाओं को कोर्स करने के लिए प्रेरित कर सकती है. सेवा के इस कार्य में वह उसकी
सहायता करेगी.
आज उन्हें यात्रा पर
जाना है. उसके अंतर की इच्छा ने ही फल का रूप लिया है अब इससे जुड़े सारे सुख-दुःख
की निर्मात्री वह स्वयं है. सारे दुखों का कारण व्यक्ति स्वयं होता है यह बात
जितनी जल्दी समझ में आ जाये उतना ही अच्छा है, अध्यात्म का साधक स्वयं की
जिम्मेदारी स्वयं उठाना जानता है. मन को असंग रखकर यदि द्रष्टा भाव से जीये तो
बिना किसी बाधा के यात्रा फलीभूत होगी. यात्रा से कोई फल मिले ऐसी भी आशा नहीं है,
बस कृतज्ञता स्वरूप की जा रही है यह यात्रा, सद्गुरु के प्रति कृतज्ञता और उस
परमात्मा के प्रति कृतज्ञता जो कण-कण में व्याप्त है !
उन्हें यात्रा से
आये कई दिन हो गये हैं, उन दिनों मन एक अद्भुत लोक में ही जैसे विचरण करता था. इस
समय दोपहर के सवा दो बजने को हैं. उसने अभी-अभी योग निद्रा का अनुभव लिया. कैसे
अद्भुत दृश्य और ध्वनियाँ, वह स्वप्न था अथवा.. सुबह ध्यान किया गुरूजी के नये
सीडी के साथ. कभी-कभी लगता है कि मंजिल अभी भी उतनी ही दूर है, यह मार्ग बहुत कठिन
है फिर उनका हँसता हुआ चेहरा याद आता है. उनकी कृपा अवश्य उसपर है, किसी भी कीमत
पर उसे अपने को उस कृपा के योग्य बनाना है. उसे कल्पनाओं की दुनिया से निकलकर ठोस
धरातल पर आना है. जीवन को उसकी पूर्णता में जीना है. जीवन केवल बाहर ही नहीं भीतर
भी है और जीवन केवल भीतर ही नहीं बाहर भी है, दोनों का समन्वय करना होगा. सत्संग
में पढ़ने के लिए एक कविता लिखनी है. दीदी के मेल का जवाब भी लिखना है. सद्गुरु को उस
डायरी में पत्र लिखना है और इतवार को एक सखी की बिटिया का जन्मदिन है उसके लिए
कविता लिखनी है. लेडीज क्लब के लिए एक लेख लिखना है, लिखने का इतना कार्य सम्मुख
हो तो कैसा प्रमाद. ध्यान के समय किसी की उपस्थिति का अनुभव श्वासों के रूप में
होता है, यह भी एक रहस्य है, कौन है जो उसके दाहिने कान के पास आकर गहरी सांसे
भरता है मगर प्रेम से !
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