आज सुबह चार बजे ही नींद खुल गयी, रात को जल्दी सो गयी थी. मन
अपेक्षाकृत शान्त है, किन्तु अभी भी पहले की सी स्थिरता नहीं आई है. यात्रा में
ध्यान में जो व्यवधान पड़ा उसका असर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है. मन में बेवजह ही विचार
चलते रहते हैं, कभी भूत के, कभी भविष्य के, कभी आत्मग्लानि के, कभी अहंकार के, वह
साक्षी भाव से सभी को देखा करती है. उनके भीतर कितना कुछ भरा पड़ा है. एक ब्रहमांड बाहर
है तो एक उनके भीतर भी है. कभी-कभी ध्यान में कुछ चेहरे दीखते हैं, कौन हैं वे,
शायद उसके किसी पिछले जन्म के परिचित या उसके स्वयं के चेहरे ! उस दिन कैसा अजीब
स्वप्न देखा था, एक पौधे के तनों के सिरों पर जानवरों के चेहरे, पौधा और जन्तु एक
साथ. पौधा जैसे कीट बन गया था या कीट जैसे पौधा बन गया था. उसे यह बताने के लिए
स्वप्न आया होगा कि द्वैत नहीं है. सब एक ही है. उस दिन आश्रम में भी तो यही विचार
बार-बार मूर्त होता हुआ लग रहा था कि सभी कुछ एक ही तत्व से बना है, एक ही तत्व
भिन्न-भिन्न रूपों में प्रगट हो रहा है. सब उसी एक आत्मा का विस्तार है. दृष्टिकोण
यदि विशाल हो तो सारे छोटे-छोटे भेद, दुःख, दर्द खत्म हो जाते हैं. सद्गुरु उन्हें
इसी विशाल दृष्टि को अपनाने को कहते हैं. मेरे-तेरा का झगड़ा अब बहुत हो चुका, अब
तो उत्सव की बेला है, अमृत बरस रहा है, ज्योति जल रही है, प्रकाश में नहाना है तथा
अमृत छकना है. भीतर तृप्ति तभी मिलेगी, नहीं तो जगत के सामान भरते-भरते उम्र निकल
जाएगी और हाथ कुछ भी नहीं आएगा. उनके सम्मुख हर क्षण दो रास्ते होते हैं, एक प्रेय
दूसरा श्रेय, चुनाव उन्हें करना है तभी कल्याण होगा !
जून आज आ गये हैं,
उनका गला खराब है, इस समय आराम कर रहे हैं. आज सुबह वह देर से उठी, रात को देर तक
पढ़ती रही फिर कुछ देर ध्यान किया और सुबह स्वप्न देखती रही. सद्गुरु कहते हैं जैसे
ही नींद खुले उठ जाना चाहिए, सोये रहना ठीक नहीं है, तमस बढ़ता है, प्रमाद ही
मृत्यु है. आज पढ़ा कि आयु मिली है ईश्वर की प्राप्ति के लिए, वे व्यर्थ ही सोकर
गंवा देते हैं, उतनी देर ध्यान –भजन करें तो यह कमाई होगी. उसे ईश्वर ने कितनी
सुविधाएँ दी हैं ध्यान-भजन के लिए, आजकल तो विशेष रूप से, थोड़ा सा घर का काम और
हाथ में ढेर सारा समय परमात्मा को याद करने के लिए. आज दो घंटे ध्यान करने का
प्रयत्न किया, पता नहीं कितनी देर वास्तव में ध्यान घटित हुआ. मन आजकल वश में नहीं
रहता, यहाँ तक कि क्रिया के वक्त भी इधर-उधर भाग जाता है, वह शेष समय उस पर ध्यान
नहीं देती शायद इसीलिए ! गुरुमाँ ने कहा था कि जो विचारों से मुक्त है वही मुक्त है. अब से मन पर ज्यादा ध्यान रखेगी. आज
यहाँ कई दिनों बाद धूप निकली हाई. पहली बार एसी चलाया इस वर्ष. पहली बार टिंडे बने
हैं. जून दिल्ली से लाये हैं, भिस, टिंडे तथा बेबी कॉर्न. कल दीदी का फोन आया था,
परसों जीजाजी से बात की उन्हें लगा कि उसके भीतर वैराग्य ज्यादा ही जाग रहा है.
उसकी एक सखी का भी यही विचार है उसकी सासूजी ने बताया और इधर उसे लगता है कि राग
छूटता ही नहीं, राग-द्वेष से मुक्त मन ही तो ध्यानस्थ हो सकता है. सद्गुरु कहते
हैं कुछ जान के चलो, कुछ मान के चलो, वे साधना के पथ पर प्रगति कर रहे हैं यह
मानना ही चाहिए तभी प्रेरणा मिलेगी.
No comments:
Post a Comment