Friday, October 31, 2014

प्रेमचन्द की कहानियाँ


आज उसका जन्मदिन है, सुबह से कई फोन आ चुके हैं. सखियों के, भाई बहनों के, पिता का फोन और मामीजी का जवाब भी आ गया है. सुबह से कई बार माँ को याद कर चुकी है, उनका फोटो देखती है तो हाथ अपने आप ही जुड़ जाते हैं. शाम को छोटी सी पार्टी है. आज सुबह एक कहानी टाइप की, नन्हे को हिंदी में भावार्थ लिखाया, अब वह सो रहा है वरना यह समय भी उसी के साथ बीतता. कुछ देर पहले सोचा क्यों न समय का सदुपयोग करते हुए बैठक की थोड़ी सफाई ही कर दी जाये पर हाथ के झाड़न से वह थर्मस कप टूट गया जो मंझले भाई ने विवा हके अवसर पर उसे तोहफे में दिया था. खैर..पर उसका कुछ असर और कुछ इसका कि बगीचे में पत्ते बिखरे हैं, नैनी ने अभी तक सफाई नहीं की है, मन उत्साहित नहीं है. जन्मदिन पर क्या उदास होने का भी हक नहीं है ! यूँही मन भी बदलते मौसमों की तरह होता है जैसे कोई बाहर के मौसम का साक्षी रहता है उसमें अपनी इच्छा से फेर बदल नहीं कर सकते वैसे ही भीतर के मौसमों को साक्षी भाव से देखते रहना होगा. शाम को कोई दूसरा मौसम आ जायेगा. जून और नन्हा दोनों ने उसे बहुत सुंदर कार्ड्स दिए हैं. उसने सोचा एक कविता यदि लिखे तो मन फिर अपने आप में लौट आए !

न ही परसों और न ही कल वह ‘जागरण’ सुन सकी, आज सुना है. मौसम की तरह मन शांत है. रात भर होने के बाद इस समय वर्षा रुकी हुई है. मन में ईश्वर के लिए यानि अच्छाई के लिए, सत्य के लिए चाह बनी रहे, स्मृति बनी रहे तो संसार का आश्रय नहीं लेना पड़ेगा. निर्भयता का भाव उदय होगा. ईश्वर कार्य का प्रेरक भी है, निर्वाहक भी है, और फलदाता भी है. उसकी स्मृति बनाये रखें तो जीवन की नाव अबाध गति से चलती रहेगी. मन. बुद्धि और अहंकार के शोर में ईश्वरीय प्रेरणा सुनाई नहीं पडती. वह इतने निकट है कि उससे निकट कोई और नहीं. वह हर क्षण सद्कार्यों के लिए प्रेरित करता है लेकिन मन अनसुनी करता है. और संसार के शोर को सुनने के लिए अपने को व्यस्त रखता है.

आज दीदी का जन्मदिन है, सुबह उन्हें फोन पर शुभकामनायें दीं. पिता से भी बात हुई, मकान का सौदा हो गया है. इसी महीने रजिस्ट्री भी हो जाएगी, सम्भवतः जून को जाना पड़े. इस समय नन्हा और वह दोनों घर पर नहीं हैं. वह अपनी स्वाभाविक प्रसन्नता के मूड में नहीं है. बाबाजी की बात पूर्णरूप से सही है जब कोई ईश्वर का स्मरण करता है तो अंदर का स्रोत अपने आप खुल जाता है. इधर जन्मदिन के बाद से वह सुबह ठीक से ध्यान आदि नहीं कर पा रही है, हो सकता है इसका कोई शारीरिक कारण भी हो, वही हरमोन का चक्कर, खैर इस महीने की साहित्य अमृत भी आ चुकी है, प्रेमचन्द की कहानियों की किताब भी लायी है, सो हिंदी का वातावरण तो है घर में और नन्हे को हिंदी भी पढ़ा रही है पर लिखें के लिए समय व एकांत चाहिए जो फ़िलहाल नहीं मिल पाते, थोड़ी ही देर में वे दोनों आते होंगे. लंच का समय होने वाला है.




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