कल दोपहर हिंदी में सृजनात्मक लेखन के लिए दूसरी कविता
लिखी, कविता यदि गढ़ी जाये तो उल्लास के बजाय मन को तनाव से भर देती है. कुछ देर ‘सत्यजित
रे’ की पुस्तक पढ़ी. फिर नन्हा स्कूल से आ गया और दोपहर बाद की दिनचर्या में व्यस्त
हो गयी. शाम को लाइब्रेरी से ‘अनिता देसाई’ की किताब लायी है. कल घर से पत्र आया
है, पर उसके निर्णय के अनुसार जवाब अगले हफ्ते देगी तब तक दूसरा कोई खत भी आ
जायेगा. कल शाम जून ने कहा उसे कम्प्यूटर में एक लैटर पैड बना लेना चाहिए पर ऐसा
कौन है जिसे वह नियमित पत्र लिखे वह भी अंग्रेजी भाषा में. आज भी गर्मी बहुत है
अभी तक उन्होंने टेबल फैन नहीं निकाला है, निकालने पर नैनी का मांगना लाजमी है,
उसने कहा है अगले महीने वह पंखा खरीदना चाहती है पर हिसाब लगाकर देखा तो पैसे कम
पड़े, उसी में पूरे महीने का खर्च भी चलाना होगा, यूँ उसकी बेटी भी काम करती है. और
जून के अनुसार जिसकी जितनी आय होती है उसी में वे गुजारा करना सीख जाते हैं. पर जो
समर्थ हैं उन्हें भी तो उनके लिए कुछ सोचना चाहिए. उन्होंने इतना धन लगाकर कम्प्यूटर
खरीदा और कुछ सहायता करके पंखा खरीदने में उसकी मदद नहीं कर सकते, जबकि वह काम
करके धीरे-धीरे पैसे चुका ही देगी. दीपक चोपड़ा के अनुसार जब इच्छा मन में उत्पन्न
हुई है तो उसे ब्रह्मांड की गोद में डाल दो, खुदबखुद पूर्ण हो जाएगी. जैसे आजतक
उसके सारे काम होते आए हैं.
कल दिन भर पूसी उसके पीछे-पीछे
थी आज सुबह से गायब है, कल जब संगीत कक्षा में गयी तो उसके पीछे वह भी गयी और पूरे
समय बाहर बैठी रही. शाम को जून और वह टहलने गये तो पीछे चल दी, जानवरों की भाषा
यदि वे समझ पाते तो.. सुबह दो-तीन बार घर में आ गयी और जबरदस्ती उसे बाहर निकाला,
मन इतना कठोर हो जाता है जब उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई काम हो रहा हो. दीपक चोपड़ा
कहते हैं जब लोग किसी व्यक्ति या परिस्थिति से परेशान होकर कुछ व्यक्त करते हैं या
महसूस करते हैं तो यह प्रतिक्रिया उनकी भावनाओं के प्रति होती है और भावनाएं किसी
अन्य की गलती से उत्पन्न नहीं हो सकती, उनकी जिम्मेदारी सिर्फ उनकी है, कोई कैसा
सोचे यह उसी पर निर्भर करता है. there is always a choice and choice is ours.
अपने मूड या अपनी मानसिक स्थिति के लिए किसी अन्य को दोषी या ज्जिम्मेदार ठहरने का
किसी को कोई हक नहीं है, क्यों कि यह सत्य नहीं है. आज नन्हे की छुट्टी है, उसे
कम्प्यूटर पर ढेर सारे काम करने हैं, सुबह से ही योजनायें बना रहा है.
कल शाम दो सखियाँ आयीं
उनका नया टीवी देखने, एक को कम्प्यूटर भी देखना था, उसने अपना रेखाचित्र भी पढ़ने
को दिया पर उसके छोटे-छोटे अक्षर वह ठीक से पढ़ नहीं पायी, वैसे भी इतने शोर में
कोई गम्भीर बात पढ़ना आसान नहीं था. पर उसकी इच्छा पूर्ण हुई अपने आप ही. आज भी
बादलों के कारण गर्मी कम है. आज टीवी पर एक कार्यक्रम देखा, जो दीपक चोपड़ा की उसी
किताब पर आधारित था जिसमें आज पढ़ा कि उन्हें अपने आस-पास के लोगों व स्थितियों को
वे जैसे हों वैसे ही स्वीकार कर लेना चाहिए न कि अपना दृष्टिकोण उनपर थोपना चाहिए.
जैसे कि उसने सुबह चाय बनाने के तरीके पर जून को टोका. कल नन्हे ने उसका टाइम टेबल
कम्प्यूटर पर बनाया, और उन्होंने एक cd देखा जिसमें ढेरों रेसिपीज थीं. computer
is real fun !
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