Tuesday, March 11, 2014

कागजी अखरोट


टीवी पर काश्मीर से सम्बन्धित एक धारावाहिक ने बाँध लिया है, काश्मीर में जब यूरोपियन और अमेरिकी पर्यटकों को बंधक बनाया गया था, उसी घटना का कथात्मक चित्रण किया गया है, लोगों की परेशानी, आर्मी व पुलिस की कार्यवाही, पत्रकारों और टीवी चैनल की नई कहानी पाने की इच्छा, सभी का वर्णन अच्छा है. अपह्रत व्यापारी की पत्नी का दुःख, ड्यूटी पर जाते हुए पुलिस अधिकारी की पत्नी का उससे कागजी अखरोट और केसर लाने की फरमाइश करना. असमिया समाचारों ने बचा लिया वरना उसका सारा कार्य वहीं का वहीं रह जाता और टीवी के सामने से हटने का मन नहीं करता. कल शाम वे टहल कर लौटे तो दो मित्र परिवार मिलने आये, तब महसूस हुआ, आजकल घर की साज-सज्जा पर उसका ध्यान थोड़ा कम है, अब जून के बाहर जाने के बाद पूरी सफाई करेगी. सुबह-सुबह बड़े भाई से बात हुई, माँ-पापा अभी तक डॉक्टर के पास नहीं गये हैं, ईश्वर की मर्जी मानकर वे अपनी अपनी समस्या को ख़ुशी ख़ुशी सह रहे हैं. इन्सान का मन कितने भुलावों की रचना कर लेता है. स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए आसपास कितनी ही दीवारों की रचना कर लेता है. शायद वृद्धावस्था में वह भी ऐसी ही हठी हो जाये. आज सुबह Frankenstein दुबारा पढ़नी शुरू की, बहुत रोचक पुस्तक है.
कल शाम नन्हा थका हुआ लग रहा था, आज सुबह उठा तो उसे उसका बदन गर्म लगा पर शायद यह उसका वहम हो क्योंकि वह ठीक महसूस कर रहा था. आज से उसे एक घंटा खेलने के लिए जाने को कहा है, पिछले चार-पांच दिनों से मित्रों से बिलकुल दूर हो गया है. आज  मौसम गर्म है, पंखा सुहावना लग रहा है. उसने भरवां आलू-बैगन बनाये हैं, जो माँ ने बचपन की एक गर्मी की शुरुआती शाम को बनाये थे. जब गर्मियां शुरू होती थीं तो उनकी रसोई बाहर आ जाती थी. वे भी क्या दिन थे ! कल शाम जून और वह दूर तक घूमने गये, अगले आठ दिन उसे अकेले ही टहलना होगा शाम को अपने ही घर में.  सुबह उसने सोचा जून के तैयार होने तक घर पर फोन कर लेगी, पर पता नहीं ध्यान कहाँ था, शायद अपने को गर्व के पर्दे के पीछे छिपा लिया था, लोकल फोन पर एसटीडी नम्बर मिला रही थी. सारा घमंड पानी-पानी हो गया जब जून ने उसे ऐसा करने से रोका. हर पल स्वयं पर नजर रखनी बेहद जरूरी है नहीं तो उसे भटकने में देर नहीं लगती. कल रात उनके बेडरूम के रोशनदान में एक साथ सैकड़ों काले चींटे आ गये, जून ने पहले एक चींटे को मारा  तो नूना ने उसे मना किया पर कुछ ही देर में उन्हें उन सभी को मारना या बेहोश करना पड़ा. अभी भी इक्का-दुक्का कमरे में घूम रहे हैं, उनके लिये तो कयामत का दिन कल ही था.
अभी आठ ही बजे हैं पर सूरज आकाश में ऊंचा चढ़ आया है. आज सुबह जून ने उसे कालिमा में उगता हुआ लाल सूरज दिखाया, अनुपम था वह दृश्य ! उसे लगा जैसे नेहरू की काली अचकन पर  लाल गुलाब सा उषा का सूर्य और गाँधी के मौनव्रत सी शांत सुबह ! वे दोनों चले गये, उसने घर संभाला और भगवद् गीता का एक अध्याय पढ़ा, कुछ देर ध्यान किया और अब लिखने बैठी है. ध्यान करने बैठी थी तो मन में उपन्यास के पात्र घूमने लगे, कभी भोजन में क्या बनाना है आदि पर इस समय मन एकदम खाली है. जून शाम को दिल्ली पहुंचकर फोन करेंगे. नन्हा खेलने गया है, उसे गणित पढ़ाते समय बहुत अच्छा लगा, जल्दी समझ जाता है, उसने मन ही मन अपने अध्यापकों को धन्यवाद किया जिन्होंने उसे पढ़ाया था. अरुंधती राय की वह किताब आज समाप्त हो गयी, उसकी भाषा कितनी अलग है, आज वह उसे लाइब्रेरी में जाकर वापस कर देगी ताकि कोई और पढ़ सके. जून जाते-जाते भी उनके लिए सब्जियां और काजू देकर गये, कितना ध्यान है उन्हें परिवार का और कितना स्नेह !  





No comments:

Post a Comment