Tuesday, March 4, 2014

चुलबुली सी बालिका


आज वह बेहद हल्का महसूस कर रही है. दादा धर्माधिकारी की पुस्तक में मनुष्यता की परिभाषा पढकर मनुष्य की गरिमा और उसकी शक्ति पर विश्वास और बढ़ गया है. कल का दिन एक भरपूर दिन था. कल दिन भर उसने एक एक पल को पूरे मन से जीया. मानव होना और फिर स्त्री होना, संस्कार युक्त, शिक्षित और स्वस्थ होना, अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है, कुछ न कुछ करते रहने की तीव्र इच्छा, निरंतर कुछ न कुछ सीखने की आकांक्षा, जीवन को कलात्मक रूप से जीने का प्रयास, स्वयं को समाज के प्रति या परिवार के प्रति उत्तरदायी मानते हुए अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करना, ये सारी बातें उसमें किसी हद तक तो हैं न, और हर बात के लिए स्वयं को दोषी मानते रहना अपनी शक्ति पर संदेह करना, अपने आप पर भरोसा न कर पाना ये दोष भी हैं. पर अब उसे भयभीत होकर पीछे-पीछे रहकर चलने की जरूरत नहीं है, उसकी कमियां जो भी हों उन्हें लेकर स्वयं को अपमानित महसूस करने की जरूरत नहीं है. सदा ही तृतीय स्थान पाने की अपनी आदत को जारी रखने की भी नहीं. आज नन्हे का गणित का इम्तहान है जो उसे कठिन लगता है, पर वह जानती है वह बहुत होशियार है, अवश्य अच्छा करेगा. कल शाम वे टहलने गये, हवा ठंडी थी और चेहरे को छूकर सिहरा जाती थी

Today again she is so happy ! yesterday one friend got a prize of 16,000 Rs from the makers of Nyle Shampoo. They went there to celebrate the joy and to eat sweets. Today she rang her to say that they liked it, then she talked to asamiya friend, she is waiting for the D-day, she promised her to be there in the hour of need and it makes her happy that she will be of some use to someone ! Nanha has prepared well for Sanskrit exam. He has learnt twenty shlokas in Sanskrit, when she was of his age she never learned so many shlokas..

पिछले चार दिनों से नहीं लिख पायी, आज उन्हें तिनसुकिया जाना है, लंच भी वहीं खाना है. कल होली मनायी, परसों शाम बड़े भाई भाभी को फोन किया, छोटी बहन को फोन किया कल सुबह -सवेरे दीदी का फोन आया, उन्होंने कहा, बड़ा भांजा और छोटी भांजी शायद यहाँ आयें छुट्टियों में.

आज संगीत कक्षा में ‘काफी’ की तान सिखाई गयी. कल वे तिनसुकिया में ही थे कि पता चला उस सखी ने बिटिया को जन्म दिया है, वापसी में अस्पताल गये, गुलाबी रंग की छोटी सी बच्ची आँखें बंद किये लेटी थी, अभी तक चेहरा स्पष्ट नहीं था कि किस पर गया है, माँ स्वस्थ लगी, साहसी है वह, वैसे भी उम्र के इस मोड़ पर आकर माँ बनने का निश्चय करना ही साहस पूर्ण कदम था जो वह नहीं उठा पायी थी, अपना सब कुछ दे देना पड़ता है न. आज से उसकी छात्रा ने फिर से आना शुरू कर दिया है. कल उसने एक चप्पल ली, एक जोड़ी बुँदे, एक नेल पॉलिश और एक लिपस्टिक यानि अपने ऊपर खर्च ! इस समय तीन बजे हैं, नन्हा एक कहानी लिखते-लिखते बीच में ही टेनिस खेलने गया है. शाम को वे पुनः अस्पताल जायेंगे और बाद में एक मित्र के यहाँ, उनकी छोटी बेटी बहुत प्यारी है उतनी ही चुलबुली भी.   

‘कविता लेखन के सामान्य सिद्धांत’ पढना शुरू किया तो भीतर विचार जगने लगे. उसे लगा, मन जितना संवेदन शील होगा जितना गहराई से सोचेगा जीवन उतना ही अर्थपूर्ण होगा, वे हैं कि उथले-उथले ही जीए जाते हैं, अंतर में झाँकने से डरते हैं खुद के भी और इर्दगिर्द भी, कहीं कुछ ऐसा न दिख जाये जो आँखों में खटक जाये, बस आँखें बंद किये ताउम्र जिए चले जाते हैं, न ही टूटकर प्यार करते हैं न ही नफरत, बस कामचलाऊ जिंदगी जीते हैं, शिद्दत की कमी है अहसासों  में ती जीवन में गहराई कहाँ से आये.

पिछले कई दिनों से, हफ्तों से, महीनों से कुछ नहीं कहा, कविता लिखी नहीं जाती, कही जाती है पहले अपने आप से फिर कागज से, ऐसा तो नहीं कि महसूस करने की शक्ति नहीं रही, अब भी एक मार्मिक शब्द आँखों को धुंधला जाता है, मौसम के बदलते रूप और ढंग अदेखे नहीं रहते, आते-जाते उगता डूबता सूरज और चाँद जब दिखता है तो मन में एक हिलोर सी जगती है, फूल अब भी भाते हैं और दर्द अब भी होता है पर ऐसा भी बहुत कुछ है जो अब नहीं होता जैसे कि अपनी सुविधा-असुविधा की परवाह किये बिना किसी की सहायता करने की ललक. अपना ख्याल पहले आता है जैसे कि इस डर से फोन न पकड़ना कि कहीं पड़ोसिन किसी काम के लिए न बुला ले, अब अपने नियमित रूटीन को तोड़कर उसके लिए समय निकालना जबकि अपना सिर भी दुःख रहा हो, सेवा/सहायता ही कहलायेगा न, पर क्यों कि लोग नितांत अपने लिए जीते हैं ! दूसरों के लिए इसमें जगह कहाँ है ?





2 comments:

  1. संवेदना से लवरेज प्रस्तुति।अप्रतिम । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।

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  2. बहुत सुन्दर लेखन ..
    बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण
    KAVYASUDHA ( काव्यसुधा )

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