कल शाम सेक्रेटरी ने
फोन करके कहा कि उसे क्लब जाना होगा, लेडीज क्लब का बैडमिंटन टूर्नामेंट है, जून को
अच्छा नहीं लगा. उसे जाना था सो गयी, पर मन उदास हो गया, जिसका असर आज भी है. टीवी
पर एक हास्य फिल्म देखी, पर उसका असर फिल्म देखने के बाद कुछ सेकंड तक ही रह सका
इसका तात्पर्य तो यह हुआ कि ख़ुशी अंदर से उपजती है, बाह्य वस्तुएं उस पर प्रभाव
नहीं डाल सकतीं. चाहे वातावरण कितना भी मोहक क्यों न हो जब मन बोझिल होगा तो
सुन्दरता नजर ही नहीं आ सकती. अब उसका मन बुझा-बुझा सा है तो नन्हे की समय को यूँ
ही गंवाए चले जाने की हरकत नागवार गुजर रही है इस हद तक नागवार कि उसके प्रति उसका
स्नेह कहीं छिप सा गया है. कल जून जब ऐसा व्यवहार कर रहे थे तो उसने शिकायत की पर
नन्हा भी यदि उसके इस व्यवहार का कारण जानने का प्रयत्न करे तो... वह छुट्टियों को
यूँ ही गंवाना चाहता है, खेलकर, टीवी देखकर और दोस्तों से बतकही करके, जबकि वह
चाहती है कि वह अभी से समय की कीमत को पहचाने, आज शाम क्लब में ‘डार्ट प्रतियोगिता’
है, वह नहीं जाएगी.
जून ने HCL का कम्प्यूटर बुक कर दिया है जो उन्हें
एक महीने बाद मिल जायेगा. नन्हा और वह दोनों खुश हैं. नूना भी खुश है क्योंकि
कम्प्यूटर अब धीरे-धीरे लोगों की आवश्यकता बनता जा रहा है. सुबह पीटीवी पर एक
ड्रामा देखा, ‘इजाजत’,
सूखे पत्तों से लम्हों पर
किसके आने की आहट है
जेबा बख्तियार जो एक बार भारत भी आई थी नायिका थी. फिर
एक किताब भी पढ़ी जो उन वक्तों की ओर ले गयी जब दुनिया में इतनी मशीनें नहीं थीं,
इंसानों की अहमियत थी, लोग कम थे और उनकी आदमियत खोयी नहीं थी. एक सखी ने फोन किया,
वे लोग बाहर गये थे, वहाँ दूसरे शहर में वह अकेले बाजार गयी, अच्छा लगा, कहीं भी
कोई भी महिला अपने तौर पर कुछ करती है तो अच्छा लगता है. आज नन्हे ने स्वेटर धोने
में उसकी मदद की, गर्मियों की आमद आमद है तो सारे गर्म कपड़े धोकर रखने हैं. नैनी
से किचन भी साफ करवाया, कल फ्रिज की सफाई करनी है. हर दिन एक नया काम. कल हिन्दी
कविता लेखन की किताब पढनी शुरू की पर बहुत कठिन अध्याय था, ठीक से समझ नहीं पायी. शाम
को चाची ‘चारसौबीस’ देखी, कमल हासन का अभिनय लाजवाब है. बाद में वे टहलने गये, जून
और वह, हल्का अँधेरा था पर उनके दिलों में उजाला था...प्रीत का उजाला !
आज से नन्हे ने अगली कक्षा के लिए पढना शुरू किया
है, फ्रिज की सफाई में उसकी सहायता भी की, पहले तो मना किया पर वह जानती है, वह एक
समझदार और आज्ञाकारी लड़का है, उसके मित्र ने खेलने के लिए फोन पर बुलाया तो मना कर
सका. कल शाम उन्होंने Titanic देखी, एक अद्भुत फिल्म, जिसने उन्हें बांधे रखा और
पौने ग्यारह बजे रात्रि को जब फिल्म खत्म हुई तो मन पूरी तरह से उसकी गिरफ्त में आ
चुका था. डूबता हुआ जहाज, टूटा जहाज, और उसमें एक-दूसरे की जिन्दगी बन गये दो युवा
मन, सागर की विशालता, सुन्दरता और बाद में उसकी क्रूरता जो १५०० लोगों से ६ को
छोड़कर सभी को निगल गयी, फिल्म का निर्देशन James Cameron ने बखूबी किया है,
Leonardo di caprio और kate winslet का अभिनय भी कमाल का है.
सुबह से वर्षा हो रही है, स्वेटर फिर निकल आए हैं.
नन्हे का सुबह का टेनिस का खेल वर्षा के कारण रद्द हो गया. वह आराम-आराम से सारे
कार्य कर रहा है, आधा घंटा पढने के बाद नाश्ता करने बैठा है. उसने सोचा, बच्चा है
और छुट्टियों का आनन्द उठा रहा है, समय की कीमत कब जानेगा शायद उसकी उम्र में आकर,
जब वह छोटी थी तो कोई रोकने-टोकने वाला, बैठकर पढ़ाने वाला कहाँ था, पिता अपने दफ्तर के कार्यों में व्यस्त रहते
थे और माँ इतने सारे भाई-बहनों के लिए खाना बनाने और अन्य कार्य करने में ही
व्यस्त रहती थीं. उसका सारा ध्यान इसी की तरफ लगा रहता है, कुछ करे, कुछ बने, एक
अच्छा इन्सान, एक सुहृदय नागरिक, कार्य कुशल, होशियार विद्यार्थी और सबसे बड़ी बात
अपने समय को नियमित रूप से जीना सीख सके..अपने लक्ष्यों को स्पष्ट सम्मुख देख सके,
जीवन को जहाँ तक हो सके सरल बना सके...इधर-उधर के प्रपंचों को छोड़कर सीधा सपाट
रास्ता अपने लिए खोज सके, खोजना तो उसे स्वयं होगा, वे रास्ते की दिशा मात्र बता
सकते हैं.
आपकी यह पोस्ट आज के (०६ मार्च, २०१४) ब्लॉग बुलेटिन -ईश्वरीय ध्यान और मानव पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
ReplyDeleteक्रमशः!
ReplyDeleteपारुल जी, स्वागत ! हाँ यह क्रमशः है..
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