Friday, May 24, 2013

चन्द्रकान्ता संतति- एक रोचक उपन्यास


कल दोपहर का भोजन उसने दो सखियों के साथ खाया, अच्छा लगा, संयोग था कि सभी अकेली थीं. आज राई का पेस्ट बनाया गाजर की कांजी के लिए. शाम को टी.टी खेलने गये, बहुत दिनों बाद, बाहर हरी घास पर स्किपिंग भी की, ठंडी हवा चेहरे पर भली मालूम पडती थी. आज साइकिल से एक सखी के यहाँ जाएगी. कल तीन पत्र आये, एक दीदी का भी जो चाहती हैं, अगला पत्र वह अंग्रेजी में लिखे. उनके भारत आ जाने पर तो वे उनसे मिल ही पाएंगे अगले एक दो वर्ष में. आज अभी तक नैनी नहीं आई है, लगता है चावल आज कड़ाही में बनाने होंगे.

 दोपहर के डेढ़ बजे हैं, मन में कई विचार लिए वह अपने करीब आना चाहती है. आज सुबह  सब कार्य समय पर हो गया, यहाँ तक कि नन्हे के फोटो के लिए भी पांच मिनट का समय मिल गया. लेकिन उसने आज तक कैमरा हैंडल ही नहीं किया था सो बैटरी बदलने के चक्कर में रील एक्सपोज हो गयी लगती है, जून ने कहा तो है, पूरी रील खराब नहीं होगी, कैमरे के बारे में कितनी कम जानकारी है उसे, परसों लाइब्रेरी से इस विषय पर कोई किताब लाएगी. जून आज सासोनी गये हैं, देर से आने को कहा है, उसने स्पेशल बाथ लिया समय का सदुपयोग करते हुए. सुबह फूफाजी का पत्र आया, उन्हें कई बार नया पता लिखने के बावजूद वह जून के पुराने पते पर ही पत्र भेजते हैं, यह तो अच्छा है, वे लोग उनके विभाग में भेज देते हैं. उनकी असमिया की कक्षा आज है पर उसे लगता है, जब तक बोलने का अभ्यास नहीं होगा कोई लाभ नहीं है. आज उसने पहली बार करी पत्ते की चटनी बनाई जो जून को पसंद आई.

आज ऐसा लग रहा है जैसे गर्मियों का मौसम आ गया हो. नन्हे को दिगबोई में गर्मी लग रही होगी, आज वह दोस्तों के साथ वहाँ गया है, स्कूल की तरफ से. कल रात उनके पुराने परिचित, पंजाबी दीदी के पति खाने पर आये, साढ़े दस बजे वे गये. उसे लगता है, उन्हें भोजन अच्छा लगा. पर हर बार किसी को खाने पर बुलाने से सब्जियां बच जाती हैं, उसे बासी खाना पसंद नहीं, पर...वे तेजपुर से बेंत की जो बैलगाड़ी लाये थे, वह उसने दीदी के लिये भिजवाई, वे मट्ठियाँ और बर्फी लाये थे. आज सुबह वह पड़ोसिन के यहाँ अपने बगीचे की एक पत्तागोभी लेकर गयी पर उसने उससे बहुत बड़ी गोभी अपने बगीचे से निकल कर उसे दे  दी. पिछले दरवाजे पर दस्तक हुई है शायद, शिबू आया है, उसकी किताब का एक पेज थोड़ा सा फट गया है, वह थोड़ा परेशान है, उसे सेलोटेप से जोड़ देना चाहिए. कल उन्हें तिनसुकिया जाना है, अगले महीने घर भी जाना है और उसके बाद दो माह की गर्मी की छुट्टियाँ...वे चन्द्रकान्ता सन्तति के शेष भाग तब पढ़ेगी, नन्हे को भी बहुत अच्छा लग रहा है तिलिस्म भरा कथानक. जून आज भी कोई पत्रिका नहीं लाये, पहले जब वह मैगजीन क्लब के ऑर्गेनाइजर नहीं थे, हर दिन घर में एक पत्रिका आती थी, पर अब वह भूल जाते हैं.





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