पिछले हफ्ते पहले जून को सर्दी-जुकाम हुआ फिर उनका ठीक होते
न होते उसे हो गया. आज भी हल्की खराश गले में बाकी है. बदलते हुए मौसम की पहली सौगात...खैर अब सब ठीक
है, अंशतः और अंततः भी. कल बिल्ली की मालकिन आ रही है, देखते-देखते तीन हफ्ते बीत गए वक्त अपनी रफ़्तार से गुजरता जाता है, वे ही हैं कि
वहीं के वहीं खड़े रह जाते हैं. मौसम भी बदलते रहते हैं. ठंडक सुबह-शाम बढ़ने लगी
है.
फ्रिज की आवाज और घड़ी की
टिकटिक को छोड़कर कितनी नीरवता छायी है. पिछले दो-तीन दिनों की तरह धूप आज भी नहीं निकली है. जून शायद आज देर से आयें, उनकी व्यस्तता sand producing well पर चल रहे कार्य के कारण ज्यादा ही बढ़
गयी है. रात को इतना थके होते हैं कि खाना खाते ही सो जाते
हैं, दोपहर का आराम तो गुजरे दिनों की बात हो गयी है, लेकिन इस तरह उन्हें काम में
व्यस्त देखकर उसे अच्छा लगता है, एक संतुष्टि का भाव उनके चेहरे पर भी छाया रहता
है, थकान के बावजूद.
आज धूप खिली है, सर्दियों की
शुरुआत की एक अच्छी सी भोर..जून आज घर पर हैं. नन्हे के स्कूल में कल ‘बाल दिवस’
पर फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता थी, उसे बहुत आनंद आया. शाम को वे उड़िया परिवार से
मिलने गए उनके बेटे के जन्मदिन पर. कल नन्हा तीन साल पुरानी उसकी डायरी निकल लाया
और एक पेज खोलकर पढ़ने लगा, नहीं पढ़ पाया तो उसे पकड़ा दी, उसने देखा छब्बीस जनवरी
का विवरण लिखा था, जून को भी तब समझ में आया कि डायरी लिखना कितना सुखदायक हो सकता
है. यूँ तो उन्हें उस दिन की कोई बात याद नहीं थी, हजारों दूसरे दिनों की तरह वह
भी बीत गया लेकिन वे छोटी-छोटी बातें जो उसने उस दिन कागज पर उतार ली थीं, हमेशा
रहेंगी उन पन्नों पर.
आज भी मौसम अच्छा है, मधुर, गुलाबी ठंडक लिए, लगता है हर वक्त वे एसी में
बैठे हैं, एक ठंडा सा अहसास गालों को छूता हुआ सा रहता है. कल दोपहर जून और उसने
बगीचे में काफी देर तक काम किया, माली से भी करवाया, तीन नए पौधे भी लगाये, दो
गुलाब और एक मुसन्दा. मूली भी फिर से लगाई. गुलदाउदी में कलियाँ आने लगी हैं,
बिलकुल वैसी ही जैसी उसने स्वप्न में देखी थीं. कल शाम जून ने कुकिंग बुक में पढकर
सांभर बनाया, बहुत जायके दार बना, और अब से वे लोग
बाजार से सांभर पाउडर नहीं लायेंगे. नन्हे का आज दूसरी यूनिट टेस्ट है, उसे हॉस्टल
भेजना उस पर अन्याय करना ही होगा, जिस तरह वह आँखों में पानी भर लाता है, हॉस्टल
जाने की बात पर.
आज सुबह व्यस्तता में गुजरी,
सो दोपहर के पौने एक बजे वह लिखने बैठी है. Baked cabbage, beans, peas with white sauce बनाने में समय कुछ ज्यादा ही लगता है, फिर पीछे
आंगन में कल ब्लीचिंग पाउडर डलवाया था,
सुबह नन्हा तो वक्त से तैयार हो गया था फिर भी
रोज की तरह एकाध बार तो उस पर झुंझलाई ही. आज उसका हिंदी का टेस्ट है और कल ‘गुरुपर्व’
का अवकाश. कल शाम एक परिवार मिलने आया था, उनके बच्चे ने ला-ओपेला की एक कटोरी तोड़
दी, माँ को बहुत बुरा लगा, यूँ शायद वह उसकी जगह होती तो उसे भी बुरा लगता, पर कल
थोड़ा भी नहीं लगा, यूँ भी भौतिक वस्तुओं के प्रति इतना लगाव होना ठीक नहीं न. आज
शाम दो परिवार आने वाले हैं, इसी तरह मिलने-जुलने रहने का नाम ही तो जिंदगी है.
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