मार्च की पहली तारीख, पर मौसम कितना ठंडा और भीगा है, कमरे में हीटर जल रहा है, जैसे जनवरी का कोई दिन हो. नन्हा स्कूल गया है,
उसने सोचा उसे भी ठंड लग रही होगी, वह तो अच्छा हुआ, स्काउट की ड्रेस पहन कर नहीं
गया. उसे याद आया वे भी बचपन में बेहद ठंडे दिनों में स्कूल जाया करते थे. कल शाम
वे एक मित्र के यहाँ गये, कैरम खेला और रुबिक क्यूब बनाया, आज उसने बीस मिनट में
ही ‘रुबिक क्यूब’ बना लिया.
कल सुबह से ही उसे असमिया क्लास की प्रतीक्षा थी,
पर शाम को उनके सहपाठीजनों का फोन आया कि
आज वे नहीं आ पाएंगे, उसे खराब लगा और उसकी आवाज की तल्खी जरुर उस तक पहुँची होगी,
उन्हें जिम्मेदारी का थोड़ा सा भी अहसास नहीं है. कल नन्हे का एडमिशन लेटर भी आ
गया, खशी तो है ही पर जून की बातें और उनके व्यव्हार से यही लगा कि ज्यादा फ़ीस को
लेकर वह चिंतित हैं. नन्हा खुश है यही बात मन को संतोष देती है. आज कई दिनों बाद
धूप निकली है, गमलों में जरबेरा के सात फूल खिले हैं, और इम्पेशेंट के छोटे-छोटे
गुलाबों जैसे फूल भी.
परसों सुबह उसने जून की पैसों को लेकर चिंता के
बारे में लिखा था वह शत प्रतिशत सही लिकला. जब जून खाना खाने आये, उन्होंने
प्रिंसिपल से बात की और निराश हुए, बात दरअसल पर्सनल मैनेजर से ही हो सकी, हर वर्ष
१५% से २०% की बढ़ोतरी भी वार्षिक खर्च में होगी. वे दोनों ही परसों दिन भर उदास
रहे, शाम को अमिताभ बच्चन की एक फिल्म लाये. कल ईद की छुट्टी थी दोनों की, उसने
सेवइयाँ बनाई थीं. शाम होने तक वे काफी सामान्य हो चुके थे. जून के ऑफिस में
कम्प्यूटर गेम खेला. और फिर एक मित्र के यहाँ गये, वह एक और मित्र भी थे, फिर तो
बहुत बातें हुईं, सार यही निकला क नन्हे को तीन-चार वर्ष के बाद बाहर भेजना ज्यादा
अच्छा रहेगा, तब तक उन्हें पैसों का बन्दोबस्त कर लेना चाहिए. कल शाम को ही पड़ोसी
भी आ गये, उन्हें भी शायद नन्हे की पढ़ाई के बारे उत्सुकता रही होगी. जून ने फैक्स
भी भेजा है और किन्हीं श्री बोरबोरा से बात भी करने वाले हैं जिन्हें ज्यादा फ़ीस
की वजह से अपने बेटे को वापस बुला लेना पड़ा था. आज फिर बदली छाई है, दिन में भी
शाम जैसा अहसास हो रहा है. कल रात उन्हें फिर नींद नहीं आ रही थी, जून ने कहा
फिल्म देखते हैं, ऐसा वह कम ही कहते हैं, सवा बारह बजे वे सोये पर उसके बाद भी
परेशान करने वाला वही स्वप्न आया जो कई बार पिछले दो वर्षों में आ चका है.
No comments:
Post a Comment