पिछले हफ्ते बुध को दोपहर में पुरानी पड़ोसिन के यहाँ
गयी, बृहस्पतिवार को मौसम बेहद ठंडा था, सुबह साढ़े दस बजे तक कोहरा छाया था, शुक्र
को तबियत कुछ नासाज थी, शनी-इतवार वैसे ही व्यस्तता बढ़ जाती है, और अब आज सोमवार हो
गया है, सुबह से अभी तक सभी कुछ सामान्य है, आज खतों के जवाब का दिन भी है, दीदी
का पत्र भी पिछले हफ्ते आया है. देवांग पर जो कविता वह लिखने वाली है, एक पंक्ति और मिली है, उसी ईश्वर ने दी है, जिसे एकमात्र उपहार जो वह दे सकती है, वह
है ‘प्रेम’, ईश्वर ने हर बार उसे मार्ग से विचलित होने से बचाया है. कल दोपहर एक
पल के लिए जून झुंझला गये थे, पर बाद में अपने ढेर सारे स्नेह से भिगो ही तो दिया.
वह सचमुच उसे और नन्हे को बेहद-बेहद प्रेम करते हैं. उन तीनों का ही वजूद एक-दसरे
से है, एक के बिना दूसरा कुछ भी नहीं.
आज फिर तीन
दिनों के बाद डायरी खोली है. कल वे इन सर्दियों की आखिरी पिकनिक पर गये, आनन्द
उतना तो नहीं आया पर अच्छा ही था. आज उसके मुंह का जायका जीभ में हो गये छाले की
वजह से कुछ अजीब सा हो गया है, शायद गार्गल करने से कुछ ठीक होगा. सुबह नन्हे से वह किसी बात पर नाराज हो गयी, उसे
सॉरी बोलना चाहिए था, पर सारा काम चुपचाप खुद करता रहा, बिना एक भी शब्द बोले,
जाते समय भी यही कहा, माँ, हो गया. उसे थोड़ा कठोर होना पड़ा पर उसे यह सिखाना जरूरी
था कि सॉरी बोलने में कोई हर्ज नहीं. आज मौसम अच्छा है, उसके सारे सुबह के काम भी
हो चुके हैं, फिर भी एक नामालूम सी बेचैनी है, शायद छाले की वजह से या स्कूल जाते
समय नन्हे की आँखों में छलक आये दो आंसुओं की वजह से. वैसे भी ग्यारह बजने में
सिर्फ बीस मिनट हैं, उसे अभी दाल में तड़का लगाना है, बथुए को मसलकर दही में डालना
है, सलाद काटना है और फुल्के सेंकने हैं. सो लिखना यहीं बंद. आज जून को मिले नये
साल के सारे ओफ़िशिअल कार्ड्स को भेजने वालों की लिस्ट बना दी है, देखें अब वे इसका
इस्तेमाल भी करते हैं या नहीं ?
जनवरी का महीना देखते-देखते ही बीत गया, यानि नया
साल एक महीना पुराना हो गया. आज स्वस्थ अनुभव कर रही है, सामान्य ढंग से बात भी कर
पा रही है, शायद यह बाहर खाना खाने की वजह से हुआ हो, खैर अब सब ठीक है तो इन पलों
को कायदे से जीना चाहिए. सुबह कुछ पलों के लिए कुछ अच्छा सा फिर नहीं लग रहा था
फिर एक गिलास पानी पिया और ईश्वर को याद किया, जिसे आजकल ज्यादा ही याद करने लगी
है, कबीर दास ने सही कहा है, दुःख में सुमिरन सब करे...नन्हे का स्वेटर बन गया है,
बांह की सिलाई शेष है, अभी करे तो वह स्कूल से आकर पहन सकता है. कल दोपहर टीवी पर
एक फिल्म देखी, “संध्या छाया” बहुत मार्मिक थी, बुढ़ापे में आदमी इतना अकेला हो जाता
है ?
फिर से डायरी का सुंदर पन्ना.....
ReplyDeleteअदिति जी, स्वागत है !
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