जून के दफ्तर में आज
पार्टी है, उन्हीं अधिकारी का विदाई समारोह, वह लंच पर घर नहीं आएंगे, अभी फोन पर
बताया, आज सुबह उनकी पत्नी, जो उनके क्लब की सेक्रेटरी भी रह चुकी हैं, के बारे में
सोचते-सोचते उसकी आँखें भर आयीं, वह एक बार उन्हें घर बुलाना चाहती है, पर जून
नहीं चाहते, उसके जोर देने से शायद मान भी जाएँ. कल शाम वे कितने व्यस्त थे. नन्हा
स्कूल से आया तो गृहकार्य करवाने के बाद उसके एक मित्र के घर ले गये उसका जन्मदिन
था, जून छोड़कर आये तो साढ़े पांच हो चुके थे, पुनः एक घंटे बाद लेने गये, बाद में
आठ बजे उन्हें फिर डिनर पार्टी के लिए जाना था, उन्हीं अधिकारी के यहाँ. उनका
बनाया खाना तो उसे पसंद नहीं आया, सूप कुछ ठीक था, और उनका किचन देखा तो बेहद
आश्चर्य हुआ, इतना टिपटॉप रहने वाली महिला का किचन इतना बेतरतीब व बिखरा हुआ था
कि...सही है किसी का बाहरी रूप देखकर उसको सही रूप में नहीं जाना जा सकता. रात
लौटने में देर हो गये हो गयी, नन्हे को नींद नहीं रही थी वापस आकर, उसकी आँखों में
भी दर्द हो रहा था, सुबह सभी कुछ देर से उठे. कल अंततः सोफा बैक पूरा हो गया. अब नन्हे
का हाई नेक बनाना है, उसके बाद वीसीआर का कवर पूरा करना है जो गर्मियों की एक
दोपहर को एसी रूम में बैठकर शुरू किया था सम्भवतः जुलाई या अगस्त में. आज शाम को
उसने भी एक परिवार को खाने पर बुलाया है. कुछ देर पूर्व उसकी बंगाली सखी का फोन
आया कि उसका या नूना का सेंट्रल स्कूल का इन्टरव्यू लेटर अभी तक क्यों नहीं आया,
जबकि वह इस बात को लगभग भूल ही चुकी थी, जब वह याद दिलाती है तभी याद आता है
वरना...
फिर तीन
दिनों की चुप्पी लेकिन आज कहने को बहुत कुछ है, नन्हे की पहली छमाही परीक्षा हिंदी
की है, सुबह उठा तो समय पर किन्तु वही हर बार की तरह एक नामालूम सी घबराहट व
बेचैनी ने घेरा हुआ था, उसने उसे सामान्य रखने का भरसक प्रयस किया पर वह ठीक से नाश्ता करके नहीं गया. शायद वे भी बचपन
में परीक्षा के पहले दिन थोड़ा नर्वस हो जाते होंगे, और कुछ खाने की इच्छा नहीं
होती होगी. आज क्लब की पत्रिका के लिए कविता देने की आखिरी तारीख है, और वह सोच
रही है, इस बार कोई नई कविता लिखे, अपने उहापोह, संशयों से उबरने का इससे अच्छा
साधन भला और क्या हो सकता है. कल शाम उसकी असमिया सखी अपने बगीचे के सेम देने आई,
उनके बगीचे में इस वर्ष ऐसा कुछ नहीं हुआ जो बांटा जा सके. कल क्लब में सोविनियर की
मीटिंग भी हो गयी, जून और वह गये थे, पन्द्रह मिनट में ही लौट आये, अभी तक उसकी कविता
के अतिरिक्त हिंदी में लेख एक भी नहीं आया था, हिंदी राज भाषा हो या राष्ट्र भाषा
लोग अंग्रेजी को ही प्राथमिकता देंगे.
ईश्वर के
हीटर यानि सूर्य की ऊष्मा को ग्रहण करते धूप में बैठकर लिखने का इस वर्ष का पहला
सुयोग है, इस वर्ष की जगह इन सर्दियों का कहना ही ठीक होगा. कमरे में सिहरन सी
होने लगी थी, इस वर्ष गर्मी की तरह सर्दी भी ज्यादा पड़ रही है. फोन की घंटी बजी
उसने सोचा पड़ोसिन का होगा, दोनों का नम्बर एक ही है, अपना फोन नहीं होने पर दुबारा
फोन करने के लिए कहना होता है. पर जून का ही था, हाफजान जायेंगे.
आज पूरे
एक सप्ताह बाद लिखने बैठी है, पिछले दिनों काफी कुछ घटा, नन्हे के इम्तहान हो गये.
फिर क्लब की पत्रिका के लिए सामग्री का चयन आदि किया, टाइप होकर आ जाने के बाद एक
बार फिर गलतियों का निरक्षण यानि प्रूफ रीडिंग करनी होगी. जीजीएम के भाषण का हिंदी
अनुवाद जून और उसने किया उस दिन, पूरे ढाई घंटे वे बैठे रहे. शायद उन्हें पसंद आया
हो. कल शाम वे एक उड़िया मित्र के यहाँ गये, शुरु में तो अच्छा लगा पर उसके बाद उन मित्र
ने अपने सभी सहकर्मियों की जिनके साथ पिछले दस-ग्यारह वर्ष से काम किया निंदा करनी
शुरू की, मन बेहद उदास हो गया घर आकर काफी देर तक यही सोचती रही, कल शाम जून की
मदद से उसने रजाई का खोल सिला, शनिवार तक रजाई भर जाएगी और कम्बल से जून को
छुटकारा मिल जायेगा, उन्हें उसमें जरुर ठंड लगती होगी.
वर्ष का
अंतिम दिन, मौसम बेहद ठंडा, जैसा कि होना
भी चाहिए. यह साल विदा ले रहा है, मौसम भी उदास है. यह साल उनके लिए बेहद हसीन
साबित हुआ. उसका मन ईश्वर के प्रति कृतज्ञता से भर जाता है..आने वाला वर्ष भी ऐसा
ही होगा इसका विश्वास भी वही दिलाता है, हर अंत एक नये की..शुरुआत है. आने वाले
वर्ष के लिए न कोई वादा किया है न कोई उद्देश्य रखा है..जिन्दगी जिस राह लिए जाएगी
चले जायेंगे...अहिस्ता अहिस्ता, सचमुच अब वह उम्र नहीं रही, अब हालात से समझौता
करके जिए जाने में ही सुख मिलने लगा है. ईश्वर जिस तरह रखे, उसी में संतोष है. यह
पलायन नहीं समझदारी है उसकी नजर में.
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