Wednesday, September 27, 2017

शिलांग की सुन्दरता


रात्रि के साढ़े आठ बजे हैं. आज नेहू में दूसरा और अंतिम दिन है. प्रातः भ्रमण के समय श्वेत जंगली फूलों के चित्र लिए. कैम्पस के अंदर जंगल में चीड़ के वृक्षों के अनेकों छोटे-छोटे पौधे उग आये हैं, उनमें से कुछ साथ ले जाने के लिए पानी और मिट्टी सहित एक छोटे से गिलास में रखे, हो सकता है उनमें से कोई बच जाये. यह अतिथि गृह पुराने तरीके का है. लकड़ी का फर्श है और बड़ा सा बैठक खाना है. जिस कमरे में वे ठहरे हैं वह नया बना है. नौ बजे वे बायो टेक्नोलॉजी विभाग में गये, जहाँ विभागाध्यक्ष ने स्वागत किया. एक छात्रा ने अपना अध्ययन प्रस्तुत किया. बाद में उनका पुस्तकालय भी देखा, जहाँ हिंदी की भी सैकड़ों पुस्तकें थीं.दोपहर का भोजन कालेज की कैंटीन में हुआ. उसके बाद शिलांग के दर्शनीय स्थान देखने निकले. सर्वप्रथम डॉन बोस्को संग्रहालय देखा, जो पूरे उत्तर-पूर्व भारत की तस्वीर पेश करता है. वहाँ से शिलांग की सबसे ऊँची चोटी पर गये, जहाँ कई दुकानें खुल गयी हैं तथा मार्ग भी पहले की तरह हरा-भरा व सुनसान नहीं रहा है. उसके बाद एलिफेंटा झरना देखा. वापसी में त्रिपुरा भवन भी गये. गोल्फ मैदान में कुछ तस्वीरें लीं, झील को दूर से निहारते हुए आगे बढ़े. पोलिस बाजार का एक चक्कर लगाया. जून के एक सहकर्मी जो साथ गये थे, उनकी ससुराल शिलांग में है, वहाँ गये. उनका घर भी लकड़ी का बना है और बहुत पुराना है. जहाँ अति स्नेह से उन्होंने नाश्ता कराया. वापस आकर कुछ देर टहलते रहे. कल सुबह सात बजे गोहाटी हवाई अड्डे के लिए निकलना है.  

कल दोपहर ढाई बजे वे घर लौट आये. घर की सफाई कराते-कराते शाम हो गयी फिर भोजन बनाते-बनाते रात. सुबह उठी तो स्कूल जाना था, बच्चों को सूर्य नमस्कार का अभ्यास कराया, जो उन्हें स्कूल के वार्षिक कार्यक्रम में प्रस्तुत करना है. लौटकर दोपहर का भोजन बनाया और अब समय मिला है कुछ देर बैठकर खुद से बात करने का. दोपहर को सोते समय लगा, वह स्वयं को सोते हुए देख रही है. अभी कुछ देर पहले दो सखियों से बात की, भाई-भाभी से भी, कल पिताजी से की थी. छोटी बहन से व्हाट्सएप पर बात हुई. दीदी से अभी रह गयी है, व्हाट्सएप पर छोटे से वीडियो में उन्हें व्यायाम करते देख उनके नाती को थिरकते देखा, बहुत अच्छा लगा. यात्रा विवरण भी लिखना है, फेसबुक पर तस्वीरें भी लगानी हैं. आज भी ब्लॉग पर कुछ नहीं लिखा, इस वर्ष की तीसरी यात्रा से लेखन में कुछ दिनों का व्यवधान पड़ा है. अभी भी पूरा मुँह खोलने में थोड़ी असुविधा होती है, ठीक एक सप्ताह पहले दांत निकलवाया था. डाक्टर ने मुँह का व्यायाम बताया था. तन और मन को जो भी हो आत्मा तो सदा एक रस है, वही सत्य है, शेष तो सब कुछ बदल रहा है. नन्हा पूना में है, आज रात वापस जायेगा या कल सुबह. उसने नया घर देख लिया है. अच्छी जगह पर है, और एक मित्र के साथ वह उसमें रहेगा. उसे फोन किया पर वह व्यस्त था.


आज सुबह भी नींद समय पर खुल गयी. कोई कह रहा था, वासना दुष्पूर्ण है अर्थात इसका कोई अंत नहीं. आज एक कविता लिखी. मृणाल ज्योति गयी. स्कूल की संस्थापिका की बाँह में दर्द है, उन्हें गर्दन के पास रीढ़ की हड्डी में भी दर्द रहता है. जीवन में कितना दुःख है, पर सभी मानव ने खुद ही एकत्र किया है. बगीचे में सफेद गुलाब की झाड़ी बहुत बढ़ गयी है, उसके लिए द्वार जैसा एक आधार बनवाना है, जून से कहा है बांस मंगवाने के लिए. किचन के बाहर का नल खराब हो गया है, उसकी शिकायत दर्ज करवानी है. बगीचे में तुलसी पुदीना के पौधे बहुत शीघ्र बढ़ रहे हैं, पत्तों का आकार तुलसी जैसा पर सुगंध पुदीने जैसी है. एक सखी का फोन आया, वैदिक गणित सीखने के लिए कह रही थी. जून से उसने पूछा तो उन्होंने कहा पहले ही इतनी व्यस्तता है, हर दिन कम से कम तीन-चार घंटे निकालने होंगे, उसका खुद का भी विशेष मन नहीं है, एक पुस्तक के द्वारा जो अब भी उसके पास है, कुछ वर्ष पहले कई सूत्र सीखे थे. आज स्कूल में फिर एक उड़ता हुआ भंवरा आया और उसकी बाँह पर बैठ गया. मन-प्राण भीतर तक एक उपस्थिति से भीग गये. चेतना हर जगह है, वही तो है, जो विभिन्न रूपों में प्रकट हो रही है !   

3 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-09-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2741 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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    1. बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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