Showing posts with label कैम्पटी फॉल. Show all posts
Showing posts with label कैम्पटी फॉल. Show all posts

Friday, February 15, 2019

फुलकारी की कढ़ाई




जून का प्रेजेंटेशन ठीक हुआ आज, छोटा सा ही था, इसके लिए इतनी दूर आना तथा इतने सुंदर वातावरण में रहने का अवसर मिलना भी एक सौभाग्य ही है. सुबह लंच से पूर्व सभी महिलाओं ने अंताक्षरी खेली तथा तम्बोला भी. उसके पूर्व वह दो अन्य महिलाओं के साथ कैम्पटी फॉल देखने गयी. बहुत ऊंचाई से गिरता हुआ जल अद्भुत दृश्य उत्पन कर रहा था. रास्ते में छोटी-बड़ी दुकानें थीं, जहाँ से कुछ खरीदारी भी की. उससे पूर्व पौष्टिक व स्वादिष्ट नाश्ता. दोपहर बाद वे मालरोड के लिए निकले. होटल की शटल बस द्वारा दो अन्य महिलाओं के साथ, जिनके पति भी इसी कांफ्रेंस में भाग लेने आये हैं. वे लोग एक दुकान में गये जहां फुलकारी किये हुए सूट, दुपट्टे तथा साड़ियाँ मिल रही थीं. उसने तीन कुर्तियों का कपड़ा खरीदा. मॉल रोड पर काफी चहल-पहल थी. उन्होंने एक बड़ा सा भुना हुआ भुट्टा भी लिया और तीन टुकड़े कर के खाया. ज्यादा भूख नहीं थी बस ठंड को दूर करने के लिए कुछ खाना था. शाम होते-होते कोहरा छाने लगता और ठंड बढ़ गयी थी. कल रात्रि भोजन से पूर्व ‘गजल संध्या’ भी शानदार थी, दोनों गायक श्रेष्ठ थे तथा गीतों व गजलों का चयन भी अच्छा था. अब वह शाम के डिनर पर जाने के लिए तैयार है. आज शाम भी संगीत का कोई न कोई कार्यक्रम अवश्य होगा. कल दोपहर के भोजन के बाद उन्हें वापसी की यात्रा आरम्भ करनी है. सुबह इसी रेजॉर्ट में कुछ देर घूमकर कुछ तस्वीरें उतारेगी, जब जून अपने कार्य में व्यस्त होंगे.

हवा में ठंडक है और सामने पहाड़ों पर धूप चमक रही है. नीले आकाश पर हल्के श्वेत बादल और पंछियों की आवाजें ! पहाड़ों की हवा कितनी अलग होती है, प्रदूषण मुक्त और शीतल, हरियाली और नीरव एकांत भी पर्वतों पर ही मिल पाते हैं. होटल के कमरे से बाहर निकल कर इस छोटे से लॉन में बैठकर डायरी लिखने का आज अंतिम दिन है. कुछ देर पूर्व ही वे टहलने गये, कुछ और फोटोग्राफी की. कल रात नींद ठीक आई, स्वप्न आयें भी हों तो कुछ याद नहीं. आज पिताजी के पास जाना है, उन्हें जून से मिलकर बहुत अच्छा लगेगा. इसके बाद अब वर्ष भर बाद ही मिलना होगा. परमात्मा ने उसे एक और पाठ इस बार की यात्रा में सिखाया है. देने का सुख कितना बहुमूल्य है, बदले में कुछ भी पाने की तिलमात्र भी ललक यदि भीतर है तो मानो दिया ही नहीं. जो उनकी अपनी निधि है वह तो उनसे मृत्यु भी नहीं छीन सकती, वह है उनका परमात्मा, वह सदा ही है, सदा ही रहेगा ! मसूरी में यह दो-ढाई दिनों का प्रवास एक सुखद यादगार बनकर मन पर अंकित हो गया है.