रात्रि के साढ़े आठ बजे हैं, समाचारों में देश के कई
राज्यों में बढती हुई गर्मी के समाचार आ रहे हैं, जबकि यहाँ असम में तेज वर्षा हो
रही है. इसके पूर्व ‘सिया के राम’ देखा. शिवानी को सुनते हुए रात्रि भोजन किया. शाम
को वर्षा रुकी तो कुछ देर ड्राइव वे पर ही टहलते रहे. आज से उज्जैन में ‘सिंहस्थ
कुम्भ’ आरम्भ हो रहा है, आज दस लाख लोगों ने स्नान किया शिप्रा नदी में. नर्मदा और
शिप्रा का संगम है उज्जैन में. समाचारों में सुना, प्याज की फसल इतनी हो गयी है कि
दाम बहुत घट गये हैं.
आज एक बार फिर अनुभव हुआ कि स्वयं के संस्कारों को स्वीकारना जिसने सीख लिया,
वही अन्यों के संस्कारों को भी स्वीकार कर सकता है. जो भी और जैसे भी संस्कार उन्हें
मिले हैं, कर्मों को दोहराते रहने से बने हैं. यदि उनको बदलने में उन्हें इतना
वक्त लगता है तो वे दूसरों से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि उनके एक या दो बार कहने से
वे बदल जायेंगे. सबकी गहराई में जो बेशर्त प्रेम का झरना बह रहा है उसे बहने देने का
एकमात्र यही उपाय है कि हरेक को वह जैसा है वैसा ही स्वीकार लिया जाये और फिर उसके
वास्तविक रूप से उसका परिचय कराया जाये ! जब वे स्वयं का निरीक्षण करते हैं और उस
पर निर्णय सुनाते हैं तो भीतर एक संघर्ष चलता है, जिसका परिणाम कभी सुखद नहीं हो
सकता. वे इस दुनिया में अपने मूल स्वरूप को अनुभव करने तथा उसे व्यक्त करने के लिए
आए हैं. उसकी झलक उन्हें कई बार मिलती रही है, स्वयं को अन्यों से ऊंचा बनाने के
चक्कर में वे अपनी ही नजरों में छोटे बनते जाते हैं ! वे अपनी शक्ति को उन बातोँ
में खर्च करते हैं जो उनके ही विरुद्ध हैं, ख़ुशी भी एक ऊर्जा है और जितना वे इसका
निर्माण करते हैं, उतना यह उन्हें स्वस्थ करती है. प्रेम, विश्वास ये सभी
सकारात्मक ऊर्जाएं हैं, जिनका निर्माण उन्हें करना है और बाहर व्यक्त करना है. भीतर
की वृत्ति यदि श्रेष्ठ हो तो दृष्टि भी पावन हो जाती है.
आज रविवार है, दिन में वर्षा कम हुई थी, रुकी थी पर इस समय रात्रि के साढ़े आठ
बजे पुनः मूसलाधार वर्षा आरम्भ हो गयी है. ‘सिया के राम’ देखना शुरू ही किया था,
जिसमें जटायु की कथा दिखाई जा रही थी, कि टीवी पर सिगनल आना बंद हो गया. सब्जी
बाड़ी से तोड़ी सब्जियाँ आज भोजन का अंग बनीं, सुबह हरे प्याज की रोटी, शाम को सहजन
की सब्जी. दोपहर को नन्हे से बात हुई, वह नया बेड खरीद रहा है. दीदी ने बताया,
उनके छोटे पुत्र ने अपनी नयी कम्पनी शुरू
की है. बड़ी नन्द की जेठानी को फोन किया, उनके पुत्र के विवाह में उन्होंने बुलाया
था, पर वे जा नहीं पाए.
कल शाम की योग कक्षा में एक नयी साधिका आई, उसे वर्षों से पीठ में दर्द है,
कोई आसन नहीं कर सकती. शाम को बंगाली सखी के यहाँ गयी, उसने विदेश से लाया एक छोटा
सा उपहार दिया और आलू परांठा खिलाया. टीवी पर सुंदर संदेश सुना, ‘रहमदिल, देह
अभिमान से मुक्त, एक रस, सभी के प्रति जिसमें सद्भावना हो, चाहे वे विरोधी ही
क्यों न हो, ऐसे सद्गुणों से सजी आत्मा, परमात्मा के गुणों की याद दिलाती है. देवताओं
के गले में जो फूलों की माला पहनाई जाती है, वह वास्तव में उनकी गुण माला होती है.
देने की भावना सदा बनी रहे. स्वयं को देवता रूप में तैयार करना है. जब मूर्ति
तैयार हो जाती है तो उसको दर्शन देने के लिए खोल दिया जाता है. साधक भी जब तैयार
हो जाता है तो पर्दा खुल जाता है. परमात्मा की कृपा सहज ही बरसने लगती है, जब कोई
इस पथ पर चलता है और पूर्णता प्राप्त होने पर संसार भी कृपा करने लगता है’. आज
सुबह स्कूल जाते समय सड़क के दोनों ओर पानी ही पानी दिखाई दिया, हजारों लोग बाढ़ से
प्रभावित हुए हैं. बंगलूरू में सूखा पड़ रहा है, वहाँ वर्षा नहीं हुई है पिछले कई
दिनों से.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.07.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3344 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद